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मध्य प्रदेश सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 को पारित कर जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर रोक लगाने की कोशिश की थी। इस कानून में शादी और अन्य कपटपूर्ण तरीकों से किए गए धर्मांतरण के मामलों में अधिकतम 10 साल की सजा और एक लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस कानून को लागू करने के बाद पुलिस ने कई मामलों में कार्रवाई की, लेकिन धीरे-धीरे इन घटनाओं में लापरवाही बरती जाने लगी।
2021 से अब तक क्या हुआ?
2021 में इस अधिनियम के तहत 65 केस दर्ज किए गए थे। इसमें से कुछ मामलों में चालान पेश किए गए और इंदौर संभाग के पांच मामलों में सजा भी हुई। हालांकि, बाकी मामलों में क्या हुआ, यह पुलिस के लिए एक अनसुलझा सवाल बन गया है। हाल ही में भोपाल और उज्जैन में कुछ घटनाओं ने इस मामले को फिर से तूल दिया।
लव जिहाद और महिला अपराधों का बढ़ता मामला
भोपाल में पांच छात्राओं के खिलाफ ब्लैकमेलिंग, दुष्कर्म और धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने का मामला सामने आया है। इसके साथ ही उज्जैन में भी 9 नाबालिग लड़कियों को शिकार बनाए जाने की खबर आई है। ये घटनाएं मध्यप्रदेश के नागरिकों और सरकार के लिए एक बड़ा सवाल बन गई हैं।
सीएम मोहन यादव का कड़ा रुख
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गृह विभाग की समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया। पीएचक्यू (प्रदेश पुलिस मुख्यालय) के अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई, हालांकि आंकड़े स्पष्ट नहीं थे। इसके बाद मुख्यमंत्री ने प्रदेश में इन मामलों से जुड़े सटीक आंकड़े जुटाने के आदेश दिए। साथ ही बच्चियों और महिलाओं के बीच जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश भी दिए गए हैं।
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पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल
पुलिस और अन्य सरकारी विभागों को अब इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है, ताकि ऐसे अपराधों को सही तरीके से रोका जा सके। इंदौर, उज्जैन और भोपाल में बढ़ते मामलों को देखते हुए, पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं। अगर इसी तरह लापरवाही बरती जाती रही, तो मध्यप्रदेश में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा।
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धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 के उद्देश्य
धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम का उद्देश्य जबरन धर्म परिवर्तन, विशेषकर शादी और धोखाधड़ी के मामलों में रोक लगाना था। यह कानून राज्य में समाज के सभी वर्गों के बीच धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था।
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