MP में धार्मिक शहरों का पानी सबसे खराब, इसमें वायरस बेहिसाब

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने चौंकाने वाली सच्चाई का खुलासा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, नर्मदा और क्षिप्रा जैसी प्रमुख नदियों के तटों पर स्थित धार्मिक नगरों के पानी में प्रदूषण की गंभीर स्थिति है।

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Sanjay Sharma
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मध्य प्रदेश में धार्मिक शहरों में सबसे ज्यादा जल प्रदूषण। Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. नदियों के शुद्धिकरण के नाम पर मध्य प्रदेश सरकार बीते एक दशक में करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है। सबसे ज्यादा रुपए धार्मिक महत्व रखने वाली नर्मदा नदी पर खर्च हुआ है। क्षिप्रा को गंदे पानी से मुक्त कराने और इसके सौंदर्यीकरण पर करोड़ों खर्च किए गए हैं। सिंहस्थ से पहले एक बार फिर क्षिप्रा को सदानीरा बनाने 900 करोड़ का भारी भरकम बजट रखा गया है। आप सोच रहे होंगे हम धर्मनगरी और नदियों के प्रदूषण का राग क्यों आलाप रहे हैं। तो आपको बता देते हैं सबसे पवित्र नदियों और प्रदेश के प्रमुख धार्मिक नगरों में पानी पीने लायक नहीं बचा है।

धार्मिक नगरों में सबसे ज्यादा गंदगी नदियों और जलस्त्रोतों में उढ़ेली जा रही है। इसका खुलासा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में किया है। नर्मदा और क्षिप्रा के तट पर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण धर्मस्थल बसे हैं। इसलिए उनके नाम भी चर्चा में सबसे ऊपर रहना स्वभाविक है। इनके अलावा प्रदेश के दूसरे धार्मिक शहरों के पानी में भी प्रदूषण का जहर घुला हुआ है।

धर्मस्थलों के पास नदियां सबसे ज्यादा गंदी

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट मध्य प्रदेश की 89 नदियों के 293 स्थानों से लिए पानी के सैंपलों के आधार पर तैयार की गई है। इसमें 96 स्थानों से लिए सैंपलों में पानी अपेय पाया गया है। यानी इस पानी को पीकर आप बीमार हो सकते हैं, क्योंकि प्रदूषण की वजह से इसमें बीमार करने वाले वायरस और विषैले पदार्थ घुल चुके हैं। बेहिसाब प्रदूषण वाले इन 96 सैंपलों में से 60 ऐसे हैं जो धर्मस्थल या धार्मिक महत्व के शहरों के आसपास से जुटाए गए थे। इन सैंपलों का प्रदूषण साफ इशारा करता है कि हमारे प्रदेश के धर्म स्थलों के आसपास किस हद तक गंदा पानी, सीवेज और कचरा हमारी जीवनधारा रही नदियों में मिलाया जा रहा है।

कमाई के लालच में नदियों को मैला करने की छूट

राजधानी भोपाल के नजदीक से बहने वाली बेतवा मध्य प्रदेश में रायसेन, विदिशा, सागर के अलावा निवाड़ी, टीकमगढ़ और छतरपुर जिलों से गुजरती है, लेकिन अपने उद्गम झिरी से चंद किलोमीटर दूर मंडीदीप के पास इसमें औद्योगिक कचरा और गंदा रसायनयुक्त पानी मिल जाता है। इसी वजह से धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण भोजपुर में बेतवा का पानी सी- कैटेगरी का मिला है। विदिशा के चरणतीर्थ घाट पर भी बेतवा का पानी बी- श्रेणी का पाया गया है। जबलपुर के पास नर्मदा नदी का पानी भी दूषित है। बीते साल यानी जनवरी 2023 में जबलपुर नगर निगम ने नर्मदा के शुद्धिकरण के लिए 16 करोड़ रुपए की कार्ययोजना बनाकर टेंडर भी जारी कर दिया था। लेकिन सुधार की आस अब भी लगी है। नदी को प्रदूषित करने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जबलपुर नगर निगम पर 11 करोड़ से ज्यादा का जुर्माना ठोंका जा चुका है।

चित्रकूट, उज्जैन, जबलपुर की स्थिति खराब

प्रमुख धार्मिक क्षेत्र चित्रकूट में मंदाकिनी नदी का जल उद्गम के अलावा दूसरी जगह पीने के लिए उपयोगी नहीं है। स्फटिक शिला और रामघाट पर तो इसका आचमन आपकी सेहत बिगाड़ सकता है। यहां पानी को देखकर आप इससे हाथ धोने में भी हिचकिचा जाएंगे। यहां पानी बी- कैटेगरी में मिला है। चंबल नदी के किनारे धार्मिक स्थल जूना नागदा, इटलावदा, गीदार में भी पानी डी-श्रेणी वाला पाया गया है। देवास के नजदीक जलप्रदाय केंद्र से पहले क्षिप्रा नदी का पानी पानी के लिए उपयोगी है लेकिन हवनखेड़ी, नागदमन, उज्जैन में गौ घाट, रामघाट, सिद्धवट और उसके आगे यह डी-कैटेगरी का है। पानी ऊपर से ही काला और दूषित नजर आता है। इसको पीकर आप बीमार हो सकते हैं। 

ये है जल प्रदूषण का पैमाना

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लगातार जल वायु और ध्वनि प्रदूषण की मॉनिटरिंग करता है। जल प्रदूषण की निगरानी और जांच के लिए बोर्ड के अधिकारियों के निर्देशन में टीमें निर्धारित मात्रा में चिन्हित जलस्त्रोतों से सेंपिलंग करते हैं। इन सैंपलों की प्रयोगशाला में जांच होती है और उसमें पाए गए तत्वों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है। प्रदूषित जल को 5 कैटेगरी  में बांटा जाता है। A-  कैटेगरी वाला पानी ही सीधे पीने के उपयोग में लिया जा सकता है क्योंकि ये वायरसमुक्त होता है। B- कैटेगरी वाले पानी में वायरसों की भरमार होती है, C- कैटेगरी वाले पानी में वायरस के अलावा धात्विक रासायनिक तत्व होते हैं। जबकि D- कैटेगरी के पानी में अवांछनीय अशुद्धियां होती है और इस पानी का किसी भी तरह का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

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