स्कूटी-लैपटॉप जैसी योजनाएं अटकीं, लाड़ली बहना सब पर भारी... कर्ज तले दब रहा मध्यप्रदेश

देश के आठ राज्य मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना को अपना चुके हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले इसका ऐलान कर दिया गया है। यहां पहले कांग्रेस ने दो हजार रुपए हर महीने दिए जाने का ऐलान किया था...

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Ravi Kant Dixit
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BHOPAL. मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना की सफलता ने देश में राजनीतिक दलों को नया सियासी बाण दे दिया है। इससे पॉलिटिकल पार्टियां वोटर्स पर अचूक निशाना साध रही हैं। इसके उलट फ्री बीज की ऐसी योजनाएं राज्यों का पूरा आर्थिक ढांचा कमजोर कर रही हैं। इसे भी मध्यप्रदेश के ही उदाहरण से समझा जा सकता है।
देश के आठ राज्य एमपी की लाड़ली बहना योजना को अपना चुके हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले इसका ऐलान कर दिया गया है। यहां पहले कांग्रेस ने दो हजार रुपए हर महीने दिए जाने का ऐलान किया था। इसके बाद बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में सौ रुपए बढ़ाकर 2100 रुपए देने का दावा किया है। यानी फ्रीबीज की होड़ सी मची है। 
वहीं, हाल ही में ओडिशा में सुभद्रा योजना की शुरुआत की गई है। इसके तहत 21 साल से 60 वर्ष तक की महिलाओं को सालाना 10 हजार रुपए की वित्तीय मदद देने का दावा किया है।

MP: 44 हजार करोड़ का कर्ज लिया

अब मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां की माली हालत किसी से छिपी नहीं है। योजनाओं की पूर्ति के लिए सरकार कर्ज पर कर्ज लिए जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि एमपी पर 31 मार्च 2024 तक की स्थिति में कुल 3 लाख 75 हजार 578 करोड़ रुपए का कर्ज है। यह राशि पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान लिए गए 44 हजार करोड़ रुपए के कर्ज के कारण बढ़ी है। 31 मार्च 2023 तक राज्य सरकार पर 3 लाख 31 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था। इसके उलट आमदनी का अनुमान 2 लाख 63 हजार 817 करोड़ रुपए का ही है। मतलब, जितना बजट है... उससे कहीं ज्यादा राज्य पर कर्जा है और आय भी सीधे-सीधे एक लाख करोड़ से कम है। 

बंद होने की कगार पर पहुंचीं योजनाएं

एमपी में नई सरकार के गठन के बाद से अब तक 18 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज लिया जा चुका है। यह सिलसिला जारी है। बजट गड़बड़ाने से आर्थिक स्थिति का असर दूसरी योजनाओं पर पड़ रहा है। कुछ योजनाएं बंद होने के कगार पर हैं। सरकार ने इन्हें डिब्बे में डालने की तैयारी कर ली है। इसके पीछे वजह लाड़ली बहना योजना ही है। यह स्कीम सब पर भारी पड़ रही है। स्थिति ऐसी है कि मेधावी बच्चों को ना तो इस साल अब तक स्कूटी मिल पाई है और ना ही लैपटॉप। 

स्कूटी योजना: 250 करोड़ खर्च करने होंगे

आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में 12वीं में स्कूल टॉप करने वाले एक छात्र और एक छात्रा को स्कूटी देनी की योजना है। पिछले साल सूबे में 7 हजार 790 ​बच्चों को स्कूटी दी गई थी। इस पर 79 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। इस बार ऐसे 25 हजार से ज्यादा टॉपर्स बच्चे हैं, जो स्कूटी योजना के लिए पात्र हैं। एक स्कूटी की औसत कीमत यदि एक लाख रुपए आंकी जाए तो 25 हजार बच्चों के मान से सरकार को 250 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। 

लैपटॉप योजना: 90 हजार टॉपर्स हैं इस बार

मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में 12वीं में 75 फीसदी से ज्यादा अंक अर्जित करने वाले बच्चों को लैपटॉप के लिए 25 हजार रुपए दिए जाते हैं। बीते साल 78 हजार 641 बच्चों को राशि दी गई थी। इस बार ऐसे बच्चों की संख्या करीब 90 हजार है। यानी 225 करोड़ रुपए चाहिए। इस तरह ये दोनों योजनाएं भी अच्छा खास बजट ले रही हैं। इसलिए फिलहाल तो इन्हें लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है। सूत्रों के अनुसार, सरकार इन दोनों योजनाओं को बंद करने जा रही है। 

चार महीने बाद साइकिल की सुध आई

हां, यह जरूर है कि पिछले दिनों बच्चों को साइकिलें नहीं मिलने की खबर मीडिया में आने के बाद सरकार हरकत में आई है। अब स्कूल शिक्षा विभाग ने सभी जिलों के डीईओ को निर्देश दिए हैं। दावा है कि 4 लाख 50 हजार बच्चों को साइकिल दी जाएगी। ये भी तब है, जब सत्र शुरू हुए चार महीने बीत गए हैं। मतलब, चार महीने से बच्चे परेशानी उठा रहे हैं। अभी भी यह तय नहीं है कि उन्हें साइकिल कब तक मिल पाएगी। 

33 विभागों की 70 योजनाओं पर ब्रेक

इसके इतर सरकार ने 33 विभागों की 70 से ज्यादा योजनाओं पर ब्रेक लगा दिया है। मतलब, विभाग सीधे कोई काम नहीं कर पाएंगे। हालांकि यह एक नियमित प्रक्रिया है, जिसमें सरकार खर्चों पर लगाम लगाने के लिए इसके प्रावधान करती है, लेकिन इसके दायरे में जनता से जुड़े कई विभाग आ गए हैं। मसलन, एमएसपी पर किसानों से फसल की खरीदी पर उन्हें बोनस देना, किसानों को अल्पकालीन कर्ज के ब्याज पर अनुदान देना, मुख्यमंत्री लाड़ली बहना आवास योजना आदि शामिल हैं। 

जीरो बजटिंग का नया फॉर्मूला

बजट का संतुलन बनाने के लिए सरकार अब नए-नए हथकंडे अपना रही है। वित्त विभाग जीरो बजटिंग का गणित लेकर आया है। इसमें बजट का अनुमान जीरो से लगाया जाता है। मतलब पिछले वर्षों में खर्च से जुड़े आंकड़ों को किसी तरह का कोई महत्व नहीं दिया जाता। सम्बन्धी आंकड़ों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। इस प्रणाली में कार्य इस आधार पर शुरू किया जाता है कि अगली अवधि के लिए बजट शून्य है। 
दूसरे शब्दों में कहें तो विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि योजनाएं प्रभावी ढंग से काम कर रही हैं या नहीं। इसके लिए हर योजना की दोबारा समीक्षा करनी होगी, ताकि उनकी उपयोगिता का सही मूल्यांकन हो सके। 

इन राज्यों में फ्री बीज में महिलाओं को राशि... 

  1. लाड़ली बहना योजना, मध्यप्रदेश 

  2. महतारी वंदन योजना, छत्तीसगढ़

  3. गृह लक्ष्मी योजना, कर्नाटक

  4. माजी लाड़की बहन योजना, महाराष्ट्र

  5. मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना, झारखंड

  6. लक्ष्मी भंडार योजना, पश्चिम बंगाल

  7. सुभद्रा योजना, ओडिशा 

  8. मां​गलिर उमरई योजना, तमिलनाडु 

आठ महीने में 11 हजार करोड़ दिए

मध्यप्रदेश में लाड़ली बहना योजना में महिलाओं को हर महीने 1250 रुपए दिए जा रहे हैं। सूबे की 1 करोड़ 29 लाख महिलाओं को यह राशि दी जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कहते हैं कि पिछले आठ महीने में इस योजना के तहत महिलाओं को 11 हजार करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।

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