CG में कोई फीस नहीं, राजस्थान में वन टाइम सिस्टम, MP में लुट रहे युवा... अब फीस के फंदे से मुक्ति दिलाओ मोहन

मध्यप्रदेश में बेरोजगारी और भारी परीक्षा फीस युवाओं के लिए गंभीर समस्या बन गई है, जबकि पड़ोसी राज्यों में बेहतर नीतियां हैं। 'वन टाइम फीस' की मांग उठाते हुए, युवाओं को आर्थिक बोझ से मुक्ति दिलाने की आवश्यकता है।

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हमारे देश में लगता है कि बेरोजगारी अब स्थाई समस्या बन चुकी है। युवाओं के सपने टूट रहे हैं, परिवारों की खुशियां छिन रही हैं। समाज का ताना-बाना बिगड़ रहा है। नीति-निर्माताओं का भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है। युवाओं के लिए बातें तो बड़ी-बड़ी होती हैं, पर हकीकत में कुछ नहीं होता। 

मध्यप्रदेश में 'दूबरे और दो अषाढ़, बई पै पर गए तीन तुषार' वाली कहावत चरितार्थ होती है। यानी राज्य में वैसे ही नौकरियों के सीमित अवसर हैं, ऊपर से सरकारी नीतियां युवाओं का हौसला तोड़ रही हैं। 

प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं में हर बार युवाओं से भारी भरकम फीस वसूली जा रही है, ये स्थिति तब है, जब कर्मचारी चयन मंडल यानी ईसीबी का खजाना भरा पड़ा है। 'द सूत्र' राज्य के युवाओं लिए 'वन टाइम फीस' का मुद्दा लेकर आया है। यह अभ्यर्थियों की सबसे बड़ी मांग है। यहां युवाओं को साल में जितनी परीक्षाएं देनी होती हैं, उतनी ही बार परीक्षा फीस चुकानी होती है, जबकि होना यह चाहिए कि सरकार उनसे सिर्फ एक बार फीस ले। अव्वल विशेषज्ञ तो यह कहते हैं कि सरकार को फीस लेनी ही नहीं चाहिए। 

इस मामले को समझने के लिए 'द सूत्र' की टीम ने मध्यप्रदेश के आसपास के राज्यों के विशेषज्ञों से बातकर वहां का सिस्टम समझा। इसमें सामने आया कि पड़ोसी राज्यों के मुकाबले मध्यप्रदेश में युवाओं से लूट मची है। 

देखिए हमारी ये खास खबर...

किस राज्य में क्या है स्थिति

छत्तीसगढ़: परीक्षा के लिए फीस नहीं लेता व्यापमं 

सबसे पहले बात मध्यप्रदेश से अलग होकर राज्य बने छत्तीसगढ़ की ही कर लेते हैं। यहां व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं जितनी परीक्षाएं कराता है, उनमें युवाओं से किसी तरह की कोई परीक्षा फीस नहीं ली जाती। इसका परिणाम यह है कि यहां युवाओं पर कोई आर्थिक बोझ नहीं आता। 

राजस्थान: वन टाइम फीस का सिस्टम लागू 

राजस्थान में सरकार ने 'वन टाइम फीस' की व्यवस्था लागू की है। अभ्यर्थी एक बार फीस जमा करके राज्य की सभी सरकारी भर्तियों में आवेदन कर सकते हैं। सामान्य वर्ग और क्रीमीलेयर ओबीसी के उम्मीदवारों के लिए 600 रुपए, जबकि अन्य श्रेणियों के लिए 400 रुपए की फीस तय की गई है। 

गुजरात: हर परीक्षा के लिए सौ रुपए फीस तय

पड़ोसी राज्य गुजरात में भी मध्यप्रदेश से कहीं ज्यादा बेहतर व्यवस्था बनाई गई है। गुजरात में राज्य सेवा आयोग यानी पीएएसी और राज्य की कुछ दूसरी भर्ती परीक्षाओं में अभ्यर्थियों से सिर्फ 100 रुपए फीस ली जाती है। इसके अतिरिक्त कैंडिडेट्स को और किसी तरह का कोई शुल्क नहीं देना होता है। 

उत्तरप्रदेश: स्टेट स्टाफ सिलेक्शन में 125 रुपए फीस 

उत्तरप्रदेश में हर परीक्षा के लिए फीस तय की गई है, लेकिन स्टेट स्टाफ सिलेक्शन जो परीक्षाएं लेता है, उसकी फीस 125 रुपए तय है। मतलब, स्टेट की चुनिंदा परीक्षाओं में अभ्यर्थियों को सिर्फ 125 रुपए ही चुकाने होते हैं। वहां पुलिस भर्ती और दूसरी परीक्षाओं के लिए अलग-अलग फीस स्ट्रक्चर तय है। 

... तो पढ़ा आपने। कैसे हमारे पड़ोसी राज्यों में ही बेहतर व्यवस्था है। बड़ी आबादी वाला उत्तरप्रदेश सिर्फ 125 रुपए ले रहा है तो गुजरात 100 रुपए। मध्यप्रदेश में तो इतने रुपए ईसीबी फोटोकॉपी में ही खर्च करा लेता है। 

1266 करोड़ कमाए, खर्च 744 करोड़ हुए ही हुए 

इधर, हमारे मध्यप्रदेश में कैंडिडेट्स से बेजा वसूली हो रही है। ये स्थिति तब है, जब ईसीबी के खजाने में 400 करोड़ रुपए से ज्यादा जमा हैं। आंकड़े देखें तो वर्ष 2008 से लेकर वर्ष 2023 तक अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं में कुल 2 करोड़ 13 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए हैं। इस अवधि में परीक्षा फीस और दूसरे शुल्क से ईसीबी को 1 हजार 266 करोड़ रुपए मिले। वहीं, खर्च सिर्फ 744 करोड़ रुपए हुए हैं। 

दूसरे विभागों में बांट रहे, अपने यहां अंधेरगर्दी

मध्यप्रदेश कर्मचारी चयन मंडल अपनी कमाई दूसरे विभागों तक को दे रहा है। वर्ष 2022 में ईसीबी के पास 798 करोड़ रुपए की एफडी थी। इनमें 332 करोड़ राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा थे, जबकि 466 करोड़ प्राइवेट सेक्टर की बैंकों में थे। आज राशि घटकर 400 करोड़ रुपए रह गई है। मतलब, ईसीबी युवाओं से जो पैसा ले रहा है, वह दूसरे विभागों को भी बांट रहा है, जबकि वह अपने पैसों से राज्य में 'वन टाइम फीस' की व्यवस्था लागू कर सकता है।

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