MP News : मध्यप्रदेश में चलाई जा रही आयुष्मान योजना के तहत चौंकाना वाला खुलासा हुआ है। इस खुलासे में सामने आया है कि राज्य के 1.70 लाख से भी ज्यादा मरीज पिछले पांच साल में इलाज के लिए दूसरे राज्य चले गए। इस दौरान राज्य सरकार ने इन मरीजों के इलाज पर करीब 486 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के सवाल के जवाब में यह जानकारी विधानसभा के बजट सत्र में दी गई। यह आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश के डॉक्टरों पर मरीजों भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।
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चिंता का कारण बन रहा आंकड़ा
यह आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग के लिए चिंता का कारण बन चुका है, क्योंकि कई मरीजों ने ऐसे स्थानों पर इलाज कराया है, जहां स्वास्थ्य सेवाएं उतनी विकसित नहीं हैं। देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर के सांबा, पंजाब के बठिंडा और बिहार के बेगूसराय सहित अन्य शहरों में भी मप्र के लोग इलाज कराने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के झांसी में 10,306 मरीजों ने इलाज कराया था और इसके बाद ही 32.09 करोड़ रुपए इलाज के लिए दिए गए थे। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 6,917 मरीजों का उपचार हुआ था और इसके लिए 14.42 करोड़ रुपए मंजूर किए गए।
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जुड़ी है मप्र की सीमाएं
मप्र की सीमाएं छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से मिलती हैं और यही कारण है कि सीमावर्ती जिलों से लोग दूसरे राज्यों में इलाज के लिए जा रहे हैं। वही मप्र सरकार ने वडोदरा में 37,883 मरीजों के इलाज पर 116.55 करोड़ रुपए खर्च किए और अहमदाबाद में 35,299 मरीजों के इलाज पर 112.20 करोड़ रुपए मंजूर किए।
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वडोदरा में सबसे ज्यादा इलाज
गुजरात स्थित वडोदरा में सबसे मरीजों ने सबसे ज्यादा यानि 37,883 का इलाज हुआ है। वही देखा जाए तो पर मप्र सरकार ने कुल 116.55 करोड़ रुपए खर्च किए है। वडोदरा से आलीराजपुर और धार जिले की सीमा लगी हुई है। अहमदाबाद में 35,299 मरीजों का इलाज किया गया और इसमें कुल 112.20 करोड़ रुपए की राशि मंजुर की गई।
ये कहना है जिम्मेदारों का
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अनियमितताओं की शिकायतें मिली, चल रही जांच
डॉ. योगेश भरसट, सीईओ, आयुष्मान भारत मप्र 5 जिलों में अनियमितता की शिकायतें मिली हैं, जिनकी जांच चल रही है। जांच पूरी होने के बाद, नेशनल हेल्थ अथॉरिटी से अनुमति लेकर ही आगे की कार्रवाई की जाएगी, क्योंकि अन्य राज्यों में इलाज कराने के लिए इसकी मंजूरी जरूरी होती है। हम सीधे दूसरे राज्यों के अस्पतालों पर कार्रवाई नहीं कर सकते, बल्कि संबंधित राज्य की हेल्थ अथॉरिटी से संपर्क कर सकते हैं।
इन कारणों से डॉक्टरों पर भरोसा हो सकता है कम
ये आंकड़े बताते हैं कि बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए राज्य की सीमाओं से बाहर का रुख कर रहे हैं। हाल की घटनाओं ने इस अविश्वास को और गहरा कर दिया है। दमोह में एक फर्जी डॉक्टर की लापरवाही से 7 लोगों की जान चली गई, तो वहीं रतलाम में एक मरीज आईसीयू से खुद ही बाहर निकल आया—वो भी हाथ में यूरिन बैग लिए हुए। वहीं कई परिजन आरोप लगाते हैं, निजी अस्पतालों में लूट होती है। ये दृश्य न केवल प्रशासन की लापरवाही को उजागर करते हैं, बल्कि मरीजों की तकलीफ, डर और बेबसी को भी बयां करते हैं।