महाकाल की 'शाही सवारी' पर संतों में शास्त्रार्थ, जानें क्या बोले शंकराचार्य, मंत्री क्या सोचते हैं?

महाकाल की शाही सवारी पर शास्त्रार्थ शुरू हो गया है। शंकराचार्य ने इसे साहि सवारि बताया, वहीं अखाड़ा परिषद राजसी सवारी शब्द पर विचार कर रहा है।

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Ravi Kant Dixit
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शाही सवारी'
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विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल की शाही सवारी पर संतों में शास्त्रार्थ शुरू हो गया है। उच्चारण पर संतों के अलग - अलग मत हैं। राजनीति की भी एंट्री हो गई है। 

दरअसल, भादौ माह के दूसरे सोमवार को उज्जैन में भगवान महाकाल की शाही सवारी निकली है। अब इस सवारी के आगे लगे 'शाही' शब्द पर आपत्ति सामने आई है। सीएम डॉ. मोहन यादव के नाम राजसी सवारी करने के आग्रह पर अखाड़ा परिषद ने संकेत दिए कि प्रयाग कुंभ में शाही शब्द से दूरी रखेंगे। राजसिक स्नान नाम देंगे। अखाड़ा परिषद और महंतों के विचारों से अलग शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- यह शाही सवारी नहीं, साहि सवारि है, जिसका अर्थ नाग और गंगा समेत निकलने वाली महाकाल की यात्रा है।

पढ़िए... क्या बोले शंकराचार्य...

ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि कुछ लोग कह रहे हैं, शाही शब्द ठीक नहीं है। मेरा मानना है, मंदिर में उर्दू या फारसी कैसे प्रवेश कर गई। जिस भाषा का शाही शब्द है, उसी का सवारी। शाही और सवारी दोनों शब्द हटाकर नया नामकरण हो, पर अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह किसी मुस्लिम का दिया नाम नहीं है।

इस तरह बताया सही उच्चारण

शंकराचार्य ने कहा, शाही सवारी का सही शब्द व उच्चारण साहि सवारि है, जिससे आशय स अहि = साहि, यहां स का अर्थ सहित या समेत से है, जबकि अहि नाग या सर्प को कहा जाता है, यानी ऐसी यात्रा... जिसमें बाबा महाकाल नाग या सर्प के समेत निकलते हैं। इसी प्रकार स वारि = सवारि यानी स से सहित और वारि यानी गंगा, बाबा महाकाल प्रियतमा गंगा के साथ निकलते हैं। यानी ऐसी यात्रा, जिसमें महाकाल नाग व सिर से बहने वाली गंगा के साथ निकलते हैं, जिसे साहि सवारि कहते हैं। शब्द बदलने की जरूरत नहीं है, सही उच्चारण की जरूरत है।

रवींद्र पुरी बोले- गलत व्याख्या कर रहे हैं शंकराचार्य

शंकराचार्य के मत से इतर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी का मानना अलग है। वे कहते हैं कि शाही सवारी को राजसी वैभव और ठाठ- बाट से ही लिया है। शाही मुगलों की भाषा का है, जिसे हटाना ही श्रेयस्कर होगा। शंकराचार्य की व्याख्या गलत है। 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर राजसी या दूसरे नाम पर विचार करेंगे।

शब्द बदलने में कोई दिक्कत नहीं: व्यास

इधर, इस मामले में पं. आनंदशंकर व्यास का कहना है कि भादौ की दूसरी सवारी को आमजन अंतिम सवारी कहते हैं।  अगले साल फिर सवारी निकलती, इसलिए अंतिम को शाही सवारी नाम दिया गया। शाही यवन शब्द है, इसे बदलने में कोई दिक्कत नहीं है। राजसी ठाठ-बाट से महाकाल की सवारी का वर्णन हो तो ज्यादा अच्छा है।

उल्लेखनीय है कि मंदसौर के पास रेवास देवड़ा के धुंधलेश्वर महादेव मंदिर पर श्रावण में इसी वर्ष भागवताचार्य भीमाशंकर शास्त्री ने धर्म सभा में "सवारी को शाही शब्द की जगह दिव्य और भव्य सवारी" कहें जाने का सुझाव दिया था।

इसलिए उठा ये पूरा मुद्दा

हुआ कुछ यूं था कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 2 सितंबर को सोमवती अमावस्या पर उज्जैन में बाबा महाकाल की पूजा अर्चना की। उन्होंने भक्तों का स्वागत किया। सवारी का अभिनंदन किया। इसी बीच उन्होंने शाही सवारी की जगह राजसी सवारी शब्द का इस्तेमाल किया था। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया कहते हैं, इस बदलाव के लिए स्वयं मुख्यमंत्री को बीड़ा उठाना होगा, तभी दस्तावेजों और आमजन के बोलचाल से 'शाही' शब्द हटेगा। 

मंत्री बोले- गुलामी से जुड़े शब्दों को बदलना जरूरी

महाकाल की 'शाही सवारी' पर MP के मंत्री धर्मेंद्र लोधी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि गुलामी से जुड़े शब्दों को बदलना जरूरी है। उन्होंने कहा, हमें अपनी गौरवशाली परंपरा के हिसाब से काम करना चाहिए। इस मामले में मुख्यमंत्री के साथ चर्चा कर निर्णय लेंगे।

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