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BHOPAL, धर्म डेस्क: उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज सोमवार ( 6 अक्टूबर) शरद पूर्णिमा के दिन, भगवान शिव को समर्पित इस विशेष अनुष्ठान का महत्व और भी बढ़ जाता है।
इस दिन तड़के चार बजे मंदिर के कपाट खुलते ही एक दिव्य (बाबा महाकालभस्म आरती) और मनोहारी प्रक्रिया का आरंभ होता है जो भगवान महाकाल के 'राजा स्वरूप' श्रृंगार के साथ संपन्न होती है। पंचामृत अभिषेक के बाद, पुजारियों ने भस्म आरती हेतु भगवान महाकाल का विशेष दिव्य श्रृंगार किया।
तड़के हुआ पंचामृत पूजन और जलाभिषेक
भस्म आरती की शुरुआत अत्यंत पवित्रता और समर्पण के साथ होती है। मंदिर के पंडा-पुजारियों द्वारा सबसे पहले गर्भगृह में स्थापित सभी देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का विधि-विधान से पूजन किया गया।
इसके पश्चात, स्वयं भगवान महाकाल का जलाभिषेक किया गया, जो उनकी शीतलता और शुद्धता का प्रतीक है। इस प्रक्रिया के बाद, दूध, दही, घी, शक्कर और फलों के रस से निर्मित पंचामृत से भगवान का विशेष पूजन संपन्न हुआ।
भगवान महाकाल का राजा स्वरूप श्रृंगार
पंचामृत पूजन के बाद, महाकाल के अद्भुत राजा स्वरूप श्रृंगार की तैयारी शुरू हुई। जटाधारी भगवान महाकाल को भांग, चंदन और त्रिपुंड अर्पित कर उन्हें राजा स्वरूप में सजाया गया।
इन सामग्रियों के साथ ही उन्हें विभिन्न आभूषण भी अर्पित किए गए जो उनके राजसी वैभव को बढ़ाते हैं। मंत्रोच्चार और ध्यान के बीच भगवान को पवित्र हरिओम जल अर्पित किया गया जो इस संपूर्ण अनुष्ठान को और भी अधिक आध्यात्मिक बना देता है। कपूर आरती के पश्चात, इस दिव्य श्रृंगार की अंतिम चरण की पूर्ति होती है।
बाबा की भस्म आरती
श्रृंगार पूर्ण होने के बाद एक वस्त्र से ज्योतिर्लिंग को ढंककर भगवान महाकाल को भस्म (उज्जैन भस्म आरती) अर्पित की गई। उसके बाद भगवान को शेषनाग का रजत मुकुट, चांदी की मुंडमाल, रुद्राक्ष की माला और सुगंधित पुष्पों की गई।
इस दिन विशेष रूप से महाकाल ने मोगरे और गुलाब के सुगंधित पुष्पों की माला धारण की। अंत में, फल और मिष्ठान्न का भोग अर्पित कर आरती की गई। इस अलौकिक दर्शन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और बाबा महाकाल का आशीर्वाद प्राप्त किया।
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