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आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह पर्व धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस विशेष रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होकर पृथ्वी पर अमृत वर्षा करता है।
वर्ष 2025 में, पूर्णिमा तिथि का आरंभ 6 अक्टूबर, सोमवार को सुबह करीब 11:00 बजे से हो रहा है और इसका समापन अगले दिन 7 अक्टूबर, मंगलवार को सुबह करीब 9:10 बजे होगा।
इसलिए व्रत, लक्ष्मी पूजा और खीर को चांदनी में रखने का कार्य इसी दिन करना सबसे शुभ है। इसी कड़ी में, उज्जैन के महाकाल मंदिर में भी 6 अक्टूबर को ही यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा।
स्नान, दान और तर्पण के लिए 7 अक्टूबर
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पूर्णिमा तिथि अगले दिन 7 अक्टूबर की सुबह सूर्योदय के समय भी मौजूद रहेगी। इसलिए, स्नान, दान और पितरों के लिए तर्पण का कार्य 7 अक्टूबर को किया जाना चाहिए। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना और दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायक माना जाता है।
चूंकि शरद पूर्णिमा का पर्व मुख्य रूप से रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा में मनाया जाता है, इसलिए अधिकांश ज्योतिषाचार्यों और पंचांगों के मुताबिक 6 अक्टूबर को ही व्रत, लक्ष्मी पूजा और खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखने का कार्य करना सबसे अधिक शुभ है। 7 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि सुबह जल्दी समाप्त हो जाएगी।
महाकाल में पूर्णिमा पर आरती का समय में बदलाव
ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन में भी शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का उत्सव 6 अक्टूबर को ही धूमधाम से मनाया जाएगा। मंदिर प्रबंध समिति के मुताबिक:
महाकाल में पूर्णिमा तिथि:
उज्जैन के पंचांग के मुताबिक, पूर्णिमा दोपहर 12:24 बजे से मंगलवार सुबह 9:18 बजे तक रहेगी।
विशेष भोग:
भगवान को मेवा युक्त खीर का भोग लगाया जाएगा और संध्या आरती के बाद भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाएगा।
चंद्रोदय का समय:
ज्योतिषाचार्य पं. अजयकृष्ण शंकर व्यास के मुताबिक, 6 अक्टूबर को शाम 5:34 बजे पूर्ण चंद्रमा उदित होगा। इस दिन मीन राशि में चंद्र-शनि का योग बनेगा, जिससे खीर प्रसाद को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।
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8 अक्टूबर से महाकाल की आरती में बदलाव
बता दें कि,महाकाल मंदिर (महाकाल की आरती) में शरद पूर्णिमा के बाद 8 अक्टूबर (कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा) से शीतकाल के कारण तीन आरतियों के समय में बदलाव किया जाएगा।
पुजारी पंडित प्रदीप गुरु के मुताबिक, यह परिवर्तन ऋतु परिवर्तन के आधार पर किया जाता है, जब दिन छोटे हो जाते हैं। ये बदलाव शीतकाल के कारण 8 अक्टूबर से लागू होंगे।
दद्योदक आरती:
पुराना समय: सुबह 7 बजे
नया समय: सुबह 7:30 बजे
समय अवधि: 7:30 से 8:15 बजे तक
भोग आरती:
पुराना समय: सुबह 10 बजे
नया समय: सुबह 10:30 बजे
समय अवधि: 10:30 से 11:15 बजे तक
संध्या आरती:
पुराना समय: शाम 7 बजे
नया समय: शाम 6:30 बजे
समय अवधि: 6:30 से 7:15 बजे तक
इन आरतियों के समय में कोई बदलाव नहीं
भस्म आरती (Bhasma Aarti - सुबह 4 से 6),
सांध्य पूजन (Sandhya Pujan - शाम 5 से 5:45), और
शयन आरती (Shayan Aarti - रात 10:30 से 11)।
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शरद पूर्णिमा पर अमृत प्राप्ति और लक्ष्मी पूजा
शरद पूर्णिमा की रात को 'कोजागरी' (कौन जाग रहा है) कहा जाता है। यह रात मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष पूजा और अमृत प्राप्ति के लिए समर्पित है।
मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का अभिषेक
मान्यता है कि इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जो भक्त रात भर जागकर उनका ध्यान-पूजन करते हैं, उन पर उनकी विशेष कृपा बरसती है।
शरद पूर्णिमा की रात भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का विशेष अभिषेक करें। पूजन में कमल का फूल, सफेद वस्त्र, फल और खीर अवश्य अर्पित करें। इससे घर में सुख-समृद्धि आती है।
चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने का महत्व
यह (शरद पूर्णिमा कब हैं) इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। चंद्रमा जब अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है, तो उसकी किरणें औषधीय गुणों से युक्त अमृत के समान होती हैं।
गाय के दूध और चावल से बनी खीर को खुले आसमान के नीचे (छलनी से ढक कर) चंद्रमा की चांदनी में रखें। सुबह इस खीर का सेवन प्रसाद के रूप में करें। यह खीर शरीर को निरोगी बनाने वाली मानी जाती है और कई रोगों से बचाव करती है।
चंद्र देव को अर्घ्य और मंत्र जप
चंद्रोदय होने पर चंद्र देव को दूध, जल, चावल और सफेद फूल मिलाकर अर्घ्य दें। चंद्रमा के लिए 'ॐसोंसोमायनमः' या 'ॐश्रींश्रींचंद्रमसेनमः' मंत्र का जप करें। यह मन को शांति प्रदान करता है और चंद्र दोष को दूर करता है।
दान और दीपदान का फल
दीपदान:
शरद पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा महत्व) की रात किसी पवित्र नदी या मंदिर में दीपदान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे मां लक्ष्मी और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सफेद वस्तुओं का दान:
दूध, दही, चावल, चीनी या सफेद वस्त्रों का दान करने से चंद्र देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में शीतलता, सुख तथा धन-धान्य की वृद्धि होती है।
शरद पूर्णिमा लक्ष्मी पूजा एक ऐसा पर्व है जो स्वास्थ्य, समृद्धि और धार्मिक आस्था का अद्भुत संगम है। तो 6 अक्टूबर को इस महामुहूर्त में उज्जैन के बाबा महाकाल का लाभ उठाएं और मां लक्ष्मी तथा चंद्र देव का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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