उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर में इस वर्ष भी होली का पर्व भक्तिभाव और पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया। सुबह भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल को हर्बल गुलाल अर्पित कर होली उत्सव की शुरुआत की गई। भक्तों की भारी भीड़ के बावजूद, सुरक्षा कारणों से मंदिर समिति ने श्रद्धालुओं को गुलाल ले जाने की अनुमति नहीं दी। हालांकि, इससे श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं आई और महाकाल मंदिर परिसर भक्ति और उत्साह के रंगों से सराबोर नजर आया।
भगवान महाकाल को हर्बल गुलाल से किया श्रृंगारित
हर साल की तरह इस बार भी भक्तों ने भगवान महाकाल के साथ होली खेलने की इच्छा जताई, लेकिन पिछले वर्ष हुई अव्यवस्था और सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए, इस बार सुरक्षा व्यवस्था को और कड़ा किया गया। भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल को विशेष रूप से हर्बल गुलाल चढ़ाया गया, ताकि पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखा जा सके। श्रद्धालुओं को केवल दर्शन और आरती का लाभ लेने दिया गया, जिससे मंदिर परिसर में व्यवस्था बनी रही।
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भस्म आरती में विशेष श्रृंगार, देश में सबसे पहले हुआ होलिका दहन
इस वर्ष मंदिर में गुलाल की सीमित मात्रा ही भगवान को अर्पित की गई। संध्या आरती से पहले श्री चंद्रमोलेश्वर, श्री कोटेश्वर-श्री रामेश्वर और श्री वीरभद्र को भी गुलाल अर्पित किया गया। इसके बाद भगवान महाकाल को शक्कर और मखाने की माला धारण करवाई गई और फिर उन्हें हर्बल गुलाल चढ़ाया गया।
पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार, मंदिर परिसर में विश्व में सबसे पहले होलिका दहन संपन्न हुआ। मंदिर के पुजारियों ने विशेष मंत्रोच्चार के साथ होलिका पूजन किया और विधिवत दहन किया, जिससे भक्तों को आध्यात्मिक सुख और धार्मिक आस्था का अनुभव प्राप्त हुआ।
आसान भाषा में पूरी खबर
- भगवान महाकाल को हर्बल गुलाल से भस्म आरती में अर्पण किया गया
- सुरक्षा कारणों से भक्तों को गुलाल ले जाने की अनुमति नहीं थी
- श्री चंद्रमोलेश्वर, श्री कोटेश्वर-श्री रामेश्वर और श्री वीरभद्र को भी गुलाल चढ़ाया गया
- देश में सबसे पहले महाकाल मंदिर में होलिका दहन किया गया
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महाकाल मंदिर में होली उत्सव की परंपरा
महाकालेश्वर मंदिर में होली का उत्सव एक दिन पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है। परंपरा अनुसार, संध्या आरती में बाबा महाकाल को रंग और गुलाल अर्पित किया जाता है। पुजारी और श्रद्धालु मिलकर अबीर, गुलाल और फूलों के साथ भगवान के साथ होली खेलते हैं। आरती के पश्चात मंदिर परिसर में मंत्रोच्चारण के साथ होलिका दहन किया जाता है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन का संबंध भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की कथा से है। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठे, क्योंकि होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
बदलती परंपराएं और आधुनिकता का प्रभाव
समय के साथ होली मनाने की परंपराओं में भी परिवर्तन देखा जा रहा है। गांवों में पहले बसंत पंचमी से ही होली की तैयारियां शुरू हो जाती थीं, लेकिन अब यह उत्साह कम होता जा रहा है। पारंपरिक फाग गीतों की जगह आधुनिक गीतों ने ले ली है, जिससे होली की मौलिकता प्रभावित हो रही है।
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