सांसद अनीता देना चाहती थीं इस्तीफा, रिश्ते आड़े आए तो मंत्री नागर सिंह हुए आग बबूला

मध्यप्रदेश में एक मंत्री के इस्तीफे की बात ने सियासी भूचाल ला दिया है। भोपाल से दिल्ली तक सरगर्मी तेज हो गई है। दोपहर तक तो मंत्री किसी का फोन तक नहीं रिसीव कर रहे थे। इसके बाद दिल्ली से नाराजगी जाहिर की गई तो इनके तेवर नरम पड़ गए...

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Ravi Kant Dixit
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BHOPAL. इस्तीफा देने की बात कहकर मंत्री नागर सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में सियासी भूचाल ला दिया है। भोपाल से दिल्ली तक सरगर्मी तेज हो गई है। दोपहर तक तो मंत्री चौहान किसी का फोन तक नहीं रिसीव कर रहे थे। इसके बाद सियासत ने करवट बदली। दिल्ली से नाराजगी जाहिर की गई तो चौहान के तेवर नरम पड़े। बीजेपी ने तत्काल उन्हें भोपाल तलब कर लिया है। बीजेपी के दिग्गज नेताओं मसलन सीएम डॉ.मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा जैसे शीर्ष नेताओं से उनकी मुलाकात होगी। विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल नागर सिंह चौहान ने अपना हट वापस ले लिया है। 

अब आते हैं इनसाइड स्टोरी पर...

थोड़े पीछे चलें तो नागर सिंह चौहान को वन जैसा भारी भरकम विभाग दिया गया था। पहले इस विभाग के मंत्री कुंवर विजय शाह थे। कुल मिलाकर एक आदिवासी नेता से लेकर दूसरे आदिवासी नेता को वन विभाग सौंपा गया था। फिर लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने नागर सिंह की पत्नी अनीता चौहान को टिकट दे दिया। वे जीत गईं। इसी के बाद कयास लगाए जाने लगे थे कि नागर सिंह चौहान का कद कम किया जा सकता है। 

जब पत्नी ने की इस्तीफे की पेशकश 

अब रामनिवास रावत मंत्री बने तो सत्ता-संगठन ने उन्हें वन विभाग सौंप दिया। जब यह खबर चौहान परिवार को मिली तो सांसद अनीता सिंह खुद भड़क उठीं। उन्होंने कहा कि मैं अपने पति यानी नागर सिंह चौहान की राजनीति को दाव पर लगाकर सांसद नहीं रहना चाहती हूं। कुल मिलाकर अनीता सांसद पद से इस्तीफा देने का मन बना लिया था। 

...और मंत्री का दर्द बाहर का गया

जब रिश्तों में राजनीति आड़े आई तो नागर सिंह चौहान ने सार्वजनिक रूप से दु:ख बयां कर दिया। उन्होंने कहा, मैं इस्तीफा दे दूंगा, क्योंकि मंत्री रहते हुए मैं आदिवासी हितों की रक्षा नहीं कर पा रहा हूं। आलीराजपुर, झाबुआ, रतलाम, बड़वानी, धार, खरगोन के आदिवासी भाइयों ने मुझ पर भरोसा जताया है। उनका विश्वास है कि मैं विकास करूंगा, लेकिन मुख्य पद ले लेने के बाद मैं विकास नहीं कर पाऊंगा।  

आदिवासी विभाग को लेकर जाहिर की थी मंशा 

मंत्री नागर सिंह का कहना है कि आदिवासी होने के नाते उन्होंने आदिवासी विभाग को लेकर मंशा जाहिर की थी। सत्ता-संगठन की ओर से उन्हें वन विभाग का सौंपा गया था। अब मंत्री का कहना है कि कांग्रेस से आए कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें पद दिए जा रहे हैं, जो कहीं न कहीं गलत है। आलीराजपुर कांग्रेस का गढ़ रहा है। वहां हमने मेहनत कर काम किया है। मेरे विभाग ले लेने के बाद अब मंत्री बने रहने का औचित्य नहीं रहता है।

अंदरखाने की खबर तो ये है...

सूत्रों के अनुसार, नागर सिंह चौहान को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उनका विभाग छीना जा सकता है। सब कुछ यूं अचानक हो जाने से वे तनाव में आ गए। सूत्रों के अनुसार, इसी के बाद घर में बात हुई तो राजनीति में रिश्ते आड़े आ गए। उनकी पत्नी रतलाम सांसद अनीता सिंह ने कहा कि मैं अपने पति की राजनीति दांव पर लगाकर सांसद नहीं रहना चाहती, लिहाजा पहले उन्होंने इस्तीफे की बात कही और अपनी बात शीर्ष नेतृत्व यानी दिल्ली तक पहुंचा भी दी। फिर नागर सिंह ने मीडिया में बयान दे दिया। 

अनीता इस्तीफा देतीं तो क्या होता?

अब सवाल यही है कि अनीता सिंह चौहान यदि इस्तीफा देतीं तो क्या होता? दरअसल, राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका होता। इस बार बीजेपी सांसदों की संख्या के मामले में वैसे ही कमतर है। ऐसे में प्रदेश स्तर की चूक से एक और सांसद कम हो जाना पार्टी को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था। दूसरा आदिवासी वोटबैंक के लिहाज से भी गलत मैसेज जाता। लिहाजा, नागर सिंह चौहान को मनाने की भरसक कोशिश की गई और फिलहाल बीजेपी इसमें कामयाब भी होती दिख रही है।  

दोनों ने चुनाव में नहीं की दावेदारी 

खास यह भी है कि विधानसभा चुनाव-2023 के वक्त नागर सिंह चौहान ने अपनी तरफ से दावेदारी पेश नहीं की थी। वहीं, लोकसभा चुनाव-2024 में पहले उनकी पत्नी का नाम भी किसी तरह से दौड़ में नहीं था। स्थानीय स्तर पर कई नेता सत्ता-संगठन के स्तर पर दावेदारी कर रहे थे। बाद में बीजेपी ने उन्हें सांसद का टिकट दे दिया। दोनों पति-पत्नी को जनता का साथ मिला और अच्छी लीड के साथ जीत दर्ज की। 

क्यों उठा आखिर पूरा विवाद 

आपको बता दें कि कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन करने वाले रामनिवास रावत को सरकार ने 13 दिन पहले मंत्री बनाया था। हर दिन उन्हें विभाग दिए जाने के कयास लगते थे। अंतत: 21 जुलाई को रामनिवास रावत को वन एवं पर्यावरण विभाग सौंपा गया। इस विभाग का जिम्मा पहले मंत्री नागर सिंह चौहान के पास था। अब नागर सिंह के पास अनुसूचित जाति कल्याण विभाग रह गया है।

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