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मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में 11 साल बाद इंसाफ की जीत हुई। बलात्कार और हत्या के झूठे आरोप में फांसी की सजा पाने वाले अनोखीलाल को अदालत ने निर्दोष करार दिया। इस मामले में पुलिस और न्यायिक प्रक्रिया की कई खामियां सामने आईं। 11 साल जेल में बिताने के बाद अब अनोखीलाल सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। इस घटना ने फास्ट-ट्रैक कोर्ट के फैसलों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
11 साल जेल में कैसे कटी जिंदगी ?
अनोखीलाल की कहानी किसी फिल्मी ड्रामा से कम नहीं है। 2013 में 9 साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के आरोप में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। पुलिस और अदालत की कार्रवाई इतनी तेज थी कि महज 13 दिनों के भीतर उन्हें दोषी करार दे दिया गया। इस दौरान अनोखीलाल के पास अपना बचाव करने का कोई मौका ही नहीं मिला। उन्हें सरकारी वकील के भरोसे छोड़ दिया गया। जेल में बिताए 11 साल में उन्होंने पढ़ाई की और 10वीं की परीक्षा पास की। उन्होंने बताया कि जेल में योग और पूजा ने उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाया।
कैसे मिला इंसाफ और क्या थीं पुलिस की खामियां ?
11 साल की लंबी लड़ाई के बाद अंततः खंडवा की जिला अदालत ने अनोखीलाल को बरी कर दिया। अदालत ने पाया कि डीएनए सबूत सही ढंग से जांचे नहीं गए थे और पुलिस ने जल्दबाजी में उन्हें फंसाया था। पुलिस की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उन्होंने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोषी ठहराया। मामले में गवाहों के बयान भी विरोधाभासी थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डीएनए रिपोर्ट के आधार पर किसी निर्दोष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। पुलिस की इस लापरवाही ने न केवल एक निर्दोष व्यक्ति को फंसाया बल्कि न्याय प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए।
जेल से बाहर आकर कैसी है अनोखीलाल की जिंदगी?
जेल से बाहर आने के बाद अनोखीलाल की जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी है। 11 साल बाद दुनिया बहुत बदल चुकी थी। उन्होंने बताया, "मैं अब लोगों को पहचान नहीं पाता हूं, यहां तक कि अपनी मातृभाषा कोरकू भी भूल गया था।" घर लौटने के बाद वह मजदूरी का काम करने लगे हैं और अब एक किराये के कमरे में रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि पुराने दोस्तों से संपर्क टूट चुका है और वे अब ज्यादा बाहर नहीं जाते। दिनभर काम करने के बाद शाम को घर लौटकर सीधे कमरे में चले जाते हैं। उन्होंने कहा, "अब मेरा एक ही मकसद है, पैसे कमाना और परिवार का कर्ज चुकाना।"
क्या है कानून में सुधार की जरूरत ?
इस मामले ने देशभर में हलचल मचा दी। 2013 में निर्भया कांड के बाद बलात्कार के मामलों में त्वरित कार्रवाई की मांग जोर पकड़ने लगी थी। इसी जल्दबाजी में अनोखीलाल को बिना पुख्ता सबूत के दोषी ठहरा दिया गया। उनकी फांसी की सजा पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की प्रक्रिया में खामियां पाईं और मामले को दोबारा ट्रायल के लिए खंडवा जिला अदालत भेज दिया। इस केस ने दिखा दिया कि फास्ट-ट्रैक कोर्ट में त्वरित सुनवाई के नाम पर निर्दोषों को भी दोषी ठहराया जा सकता है।
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