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मध्यप्रदेश विधानसभा के बर्खास्त अपर सचिव सत्यनारायण शर्मा की बहाली को लेकर फिर हलचल तेज हो गई है। हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय को कड़ी फटकार लगाते हुए 15 दिन की डेडलाइन तय की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि 15वीं विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष गिरीश गौतम द्वारा जारी बहाली आदेश का पालन 16 मई तक हर हाल में किया जाए।
बहाली आदेश सालों से फाइलों में दबा
सत्यनारायण शर्मा को वर्ष 2012 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उन पर नियमों के विरुद्ध नियुक्ति और योग्यता न रखने के आरोप लगे थे। इसके बाद उन्होंने यह आदेश चुनौती दी। वर्षों तक मामला कानूनी दांव-पेच में उलझा रहा। 15वीं विधानसभा में अध्यक्ष गिरीश गौतम के समक्ष उन्होंने पुनर्विचार की मांग की, जिस पर सुनवाई के बाद बहाली का निर्णय हुआ। हालांकि इस पर कोई प्रशासनिक आदेश जारी नहीं हुआ और फाइल अध्यक्ष के स्तर पर ही अटक गई।
बहाली के लिए अपनाया गया 'नो वर्क नो पे' फॉर्मूला
तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने इस निर्णय पर अपनी नोटशीट में ‘नो वर्क नो पे’ का जिक्र किया था। इसका अर्थ है कि बर्खास्त अवधि का वेतन सत्यनारायण शर्मा को नहीं मिलेगा। स्पीकर गिरीश गौतम ने इस पर कहा कि मेरे सामने यह प्रकरण आया था। विधिवत सुनवाई और दस्तावेजों की समीक्षा के बाद मैंने बहाली का आदेश दिया था।
विधानसभा सचिवालय में मंथन तेज, कानूनी राय ली जा रही
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद विधानसभा सचिवालय में आदेश को लागू करने को लेकर तेज गतिविधियां शुरू हो गई हैं। सचिवालय कानूनी सलाह ले रहा है ताकि कोई तकनीकी अड़चन न आए। चूंकि अदालत ने सीधे आदेश के पालन को कहा है, इसलिए प्रशासनिक अमला दबाव में है।
नई विधानसभा और नई फाइलों में फिर आया मामला
2013 के चुनाव के बाद मामला शांत था। 16वीं विधानसभा बनने के बाद सचिवालय को कुछ फाइलें प्राप्त हुईं जिनमें सत्यानारायण शर्मा से संबंधित फाइल भी शामिल थी। इनमें पूर्व अध्यक्ष की नोटशीट स्पष्ट रूप से बहाली की बात भी शामिल थी। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया है कि पूर्व अध्यक्ष के निर्णय को प्रभाव में लाया जाए।
मौजूदा अध्यक्ष कुछ कर पाते, इससे पहले कोर्ट का दखल
वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर इस विषय में विचार करते, उससे पहले ही मामला अदालत में पहुंच गया। अब कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पूर्व स्पीकर के निर्णय का क्रियान्वयन रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि बहाली की प्रक्रिया तुरंत पूरी की जाए और सचिव को 15 दिन के भीतर ज्वाइनिंग दी जाए।
हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बाद अब बहाली टालना आसान नहीं है। हालांकि सचिवालय अदालत के फैसले को उच्च खंडपीठ में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है, लेकिन जब तक कोई राहत नहीं मिलती, तब तक आदेश का पालन करना ही पड़ेगा।
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