10 हाथियों की मौत; पानी में किसने मिलाया जहर... कौन है दुश्मन?

हाथियों की मौत के मामले में पानी के नमूने जांच के लिए जबलपुर स्थित स्कूल ऑफ वाइल्ड लाइफ फोरेंसिक एंड हेल्थ यानी एसडब्ल्यूएफएच भेजे गए हैं। वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने मामले की जांच के लिए कमेटी बनाई ​है।

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Vikram Jain
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MP Bhopal Bandhavgarh Tiger Reserve 10 elephants death Case
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BHOPAL.  टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में अचानक 10 हाथियों की मौत ने जंगल की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व हाथियों की कब्रगाह बन गया है। इसमें एक बड़ा अपडेट सामने आया है। सूत्रों के अनुसार, हाथियों ने जिस तालाब से पानी पीया था, उसमें जहरीले तत्व होने की आशंका जताई जा रही है।

10 हाथियों की मौत से मचा हड़कंप

एक अधिकारी ने नाम छापने की शर्त पर बताया कि संभवत: स्थानीय लोगों ने इस तरह की हरकत की है। वजह यह है कि हाथी जंगल के आसपास के किसानों की फसल चट कर जाते हैं। इससे मुक्ति पाने के लिए पानी में जहरीले पदार्थ मिलाए गए और यह पानी पीने से हाथी बीमार पड़ गए। बाद में एक-एक कर 10 हाथियों ने दम तोड़ दिया है। आपको बता दें कि बांधवगढ़ के आसपास बड़े पैमाने पर कोदो कुटकी की खेती होती है। हाथी आए दिन किसानों को परेशान करते हैं। कभी उनकी फसल उजाड़ जाते हैं तो कभी उनके आशियाने मिट्टी ​में मिला देते हैं।

पानी में जहर मिलाए जाने की पुष्टि इससे भी हो रही है कि शॉर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सभी हाथियों के पेट में कोदो मिली है। यानी साफ है कि उन्होंने कोदो खाने के बाद पानी पीया और इसके बाद बीमार पड़ गए। पहले यह सामने आया था कि विषाक्त यानी जहरीली कोदो खाने से हाथियों की मौत हुई है, लेकिन अब पता चला है कि पानी में ही कुछ गड़बड़ था।

दूसरा, कोदो खाने से मौत की बात इसलिए भी विशेषज्ञों के गले नहीं उतर रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश के ही पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी बड़े पैमाने पर कोदो की खेती होती है, वहां मध्य प्रदेश से भी ज्यादा हाथी हैं, लेकिन वहां अब तक हाथियों की मौत का इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया है। 

पानी के नमूने जांच के लिए भेजे

पानी के नमूने लेकर जांच के लिए जबलपुर स्थित स्कूल ऑफ वाइल्ड लाइफ फोरेंसिक एंड हेल्थ यानी एसडब्ल्यूएफएच भेजे गए हैं। ऐहतिहात के तौर पर कोदो के भी सैंपल लिए गए हैं। वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने मामले की जांच के लिए कमेटी बनाई ​है। राज्य सरकार ने भी मामले की जांच के लिए कमेटी बना दी है। मौत का स्पष्ट कारण विस्तृत जांच रिपोर्ट आने के बाद ही सामने आएगा, लेकिन बांधवगढ़ में अचानक 10 हाथियों की मौत ने वन महकमे के काम पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। बेजा लापरवाही चल रही है।

शिकार से भी जुड़े तार

एक साथ 10 हाथियों की मौत को 2022 की एक घटना से भी जोड़कर देखा जा रहा है। तब बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की पनपथा रेंज में एक हाथी का शिकार हुआ था। इस मामले में तब कुछ वन​कर्मियों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन हैरत की बात यह है कि इनमें से एसडीओ फतेह सिंह निनामा आज भी पनपथा अभ्यारण का अधीक्षक है। वहीं पूर्व डीएफओ लावित भारती भी अन्य जगह पदस्थ हैं।

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लापरवाही की इंतेहा

1. एक के बाद एक 10 हाथियों की मौत ने वन प्रबंधन की कलई खोल दी है। टाइगर स्टेट, तेंदुआ स्टेट और चीता स्टेट में वन्यप्राणी खतरे के बीच हैं। इसके पीछे वजह भी है। मध्य प्रदेश में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन नहीं किया गया है। राज्य और जिला टाइगर सेल भी सक्रिय नहीं है।

2. दूसरे शब्दों में कहें तो वन विभाग में दूसरे लेवल पर मॉनीटरिंग का कोई सिस्टम ही नहीं है। वन विभाग ने सूबे में अब तक वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 38 यू के तहत मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमेटी का गठन भी नहीं किया है। अब इसी का नतीजा है कि महकमा लापरवाही कर रहा है।

चिंता अब राहत में बदली...

यहां सबसे बड़ा मुद्दा यह था कि हाथियों की मौत क्या विषाक्त कोदो खाने से हुई है?... शुरुआती पड़ताल मोटा अनाज खाने वालों के लिए राहत भरी है, क्योंकि हमारे देश और विशेषकर मध्य प्रदेश में मोटे अनाज को खासा प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कोदो उगाने वाले किसानों को सरकार प्रमोट कर रही है। कोदो और कुटकी का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4290 रुपए तय किया गया है।

अंग्रेजी में कोडो मिलेट कही जाने वाली कोदो भारतीय भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। करीब 3 हजार वर्षों से कोदो विभिन्न क्षेत्रों में उगाया जा रहा है। यह पौष्टिकता से भरपूर मोटा अनाज न केवल लोगों की सेहत का खजाना है, बल्कि सूखा सहन करने की इसकी क्षमता और मुश्किल परिस्थितियों में पनपने की इसकी ताकत ने इसे समय के साथ खाद्यान्न के रूप में अहम बना दिया है।

सदियों से पौष्टिकता से भरपूर है कोदो

कोदो सदियों से जनजातीय और ग्रामीण समाज में ऊर्जा का स्रोत रही है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कोदो की खेती परंपरागत रूप से की जाती रही है। खासतौर पर मध्य प्रदेश में कोदो आदिवासी समुदायों की खाद्य संस्कृति का हिस्सा है। कोदो में आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, प्रोटीन और फाइबर जैसे कई पोषक तत्व होते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद हैं।

इन बीमारियों से निपटने में कारगर है कोदो

मधुमेह: कोदो में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिससे यह मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी है।

वजन: कोदो में हाई लेवल फाइबर होता है, जो भूख को नियंत्रित करने में मददगार और वजन कम करने में सहायक होता है।

पाचन: कोदो का फाइबर पाचन तंत्र को सुचारू रूप से चलाता है और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत दिलाता है।

हृदय: कोदो में पोटेशियम और मैग्नीशियम की प्रचुरता होती है, जो हार्ट के लिए स्वास्थ्यवर्धक माने जाते हैं। यह रक्तचाप को नियंत्रित रखता है और कोलेस्ट्रॉल को कम करता है।

(डॉ.उमेश पटेल के अनुसार)

कोदो की देशभर में खपत

1. मोटे अनाजों के पुनर्जागरण के बाद देशभर में कोदो की खपत में बढ़ोतरी देखी जा रही है। अनुमानित तौर पर भारत में वार्षिक खपत में मोटे अनाजों में कोदो की हिस्सेदारी भी बड़ी हो गई है। हालांकि, सही अनुमानित आंकड़े में अंतर हो सकता है, पर रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में कोदो सहित अन्य मोटे अनाजों की खपत में 20-30% की वृद्धि देखी गई है।

2. मध्य प्रदेश में कोदो की खेती बड़े स्तर पर होती है। राज्य के कई जिलों जैसे बालाघाट, मण्डला और सिवनी में कोदो की पैदावार काफी होती है। आदिवासी क्षेत्रों में कोदो एक प्रमुख खाद्यान्न है, जो वहां के लोगों की जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा है।

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