सदस्यता अभियान में बीजेपी के पिछड़ने की वजह बनी कार्यकर्ताओं की चुप्पी

सदस्यता अभियान में बीजेपी के पिछड़ने की वजह को लेकर कार्यकर्ता का कहना है कि चुनाव जीतने के बाद सांसद-विधायक उन्हें पहचान ही नहीं रहे थे। इसलिए उन्होंने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब ऐसे नेताओं को भी संगठन की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL.  मतलब निकल गए तो अब पहचानते नहीं,  किसी गजल का ये मुखड़ा अक्सर सुनने को मिल ही जाता है। ये लाइनें आजकल बीजेपी की राजनीति कर रहे कार्यकर्ता गुनगुनाते नजर आ रहे हैं। जी, हम बात कर रहे हैं बीजेपी के सदस्यता अभियान और उन सीटों की जहां लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है। ऐसी तीन दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटें हैं। इन सीटों पर जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य न होने के कारण नुकसान हुआ है।

कार्यकर्ता कह रहे हैं  चुनाव जीतने के बाद सांसद-विधायक उन्हें पहचान ही नहीं रहे थे। इसलिए उन्होंने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब कार्यकर्ताओं को नाराज करने वाले विधायक, सांसदों, महापौर, नगरीय निकाय अध्यक्षों को भी संगठन की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। वहीं लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रदेश संगठन नई रणनीति बना रहा है।

सक्रिय कार्यकर्ताओं का घर बैठना पड़ा भारी

विधानसभा चुनाव 2023 और हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में धमाकेदार जीत से बीजेपी संगठन में खासा जोश है। बीजेपी ने कार्यकर्ताओं के इसी जोश के सहारे इस बार सदस्यता का लक्ष्य डेढ़ करोड़ तक खींच ले जाने की तैयारी कर ली थी। हांलाकि शुरूआती  दौर में कार्यकर्ता और पदाधिकारियों ने फुर्ती दिखाई। इस वजह से आंकड़े में जोरदार उछाल आया था। 

इंदौर की सभी 9 विधानसभा सीटों के अलावा राजधानी भोपाल की दो विधानसभा सीटें भी बेहतर प्रदर्शन के साथ अपने लक्ष्य को शत-प्रतिशत पूरा कर चुकी हैं। इन सीटों पर यह स्थिति विधायक-सांसद और स्थानीय कार्यकर्ताओं के तालमेल की वजह से बनी है। वहीं हरसूद, कुरवाई, बीना, पुष्पराजगढ़, भांडेर, लांजी, थांदला जैसी तीन दर्जन से ज्यादा सीटों पर बीजेपी का सदस्यता अभियान 19 फीसदी से 50 फीसदी तक ही लक्ष्य हासिल कर पाया है। यानी इन विधानसभा क्षेत्रों में जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ताओं तो कहीं  संगठन के पदाधिकारी और सांसद-विधायकों में तालमेल नहीं है। इस वजह से संगठन के सक्रिय कार्यकर्ता घर बैठे रहे और यही स्थिति सांसद-विधायकों पर भारी पड़ रही है।

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चुनाव के बाद अनदेखी से नाराज कार्यकर्ता

विधानसभा में परिस्थितियां विपरीत होने के बाद भी बीजेपी को बंपर सीटें मिली हैं। बूथ लेवल तक के कार्यकर्ता इसे अपनी मेहनत बताते रहे हैं लेकिन चुनाव के बाद धीरे-धीरे विधायक और फिर सांसदों ने उन पर ध्यान देना बंद कर दिया। हालात यह है कि कई विधानसभा क्षेत्रों से स्थानीय पदाधिकारी और विधायकों, नगर पालिका अध्यक्षों के बीच अनबन के मामले भी सामने आ चुके हैं। विदिशा जिले के कुरवाई में विधायक हरिसिंह सप्रे और वरिष्ठ नेता टीकाराम तिवारी का मनमुटाव किसी से छिपा नहीं है। दोनों पक्षों में तीखी बहस के बाद शिकबे- शिकायतें संगठन से लेकर पुलिस तक पहुंच चुकी हैं। वहीं एक दशक से भी ज्यादा समय से सरकार में मंत्री के पद पर काबिज हरसूद विधायक विजय शाह को लेकर भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। उनके परिवार के लोगों के कारण स्थानीय संगठन के पदाधिकारी दबाव में रहते हैं। यही वजह है कि हरसूद इस बार सदस्यता अभियान के मामले में सबसे पीछे रह गया है। यही हालात दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में है। 

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चुनाव जिताऊ कार्यकर्ताओं की नाराजगी से चिंता

प्रदेश नेतृत्व सदस्यता अभियान की बारीकी से समीक्षा कर रहा है। अभियान के दौरान ही संगठन ने विधायक, सांसद, महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष से लेकर हर स्तर के जनप्रतिनिधि और पदाधिकारियों की जिम्मेदारी और लक्ष्य तय कर दिया था। अब जिन क्षेत्रों में नेता लक्ष्य से पीछे रह गए हैं वहां की तात्कालिक परिस्थितियों से लेकर कार्यकर्ताओं के फीडबैक पर समीक्षा की जा रही है। जहां सदस्यता अभियान लक्ष्य  तक नहीं पहुंचा या बहुत पीछे रह गया है वहां बड़ी वजह कार्यकर्ताओं की चुप्पी है। संगठन को इसके पीछे कार्यकर्ताओं की नाराजगी का पता चला है। प्रदेश पदाधिकारी अपने जिताऊ कार्यकर्ताओं की चुप्पी और उनके घर बैठने को लेकर चिंतित हैं। बीजेपी ने पिछला विधानसभा चुनाव तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इन्हीं की दम पर जीता था। वहीं लोकसभा की सभी 29 सीटें भी इन्हीं कार्यकर्ताओं ने दिलाई हैं।

        विधानसभालक्ष्य सदस्यता

प्रतिशत

                 हरसूद           64250               12700              19.77
                 सैलाना            64000               12778                19.97
              पुष्पराजगढ़           68250                12977              19.01
                थांदला           76000                15720 19.68
               गंधवानी           70000               16049  22.93
              भांडेर          57250             17292       30.20
            वारासिवनी          59250               17566     29.65
               बैहर          80250               17706     22.06
               लांजी         73500            17889      24.35
               तराना         59500            19042           32.00

                                               (पहले चरण में सदस्यता अभियान का आंकड़ा)

FAQ

बीजेपी के सदस्यता अभियान का लक्ष्य क्या था?

  • बीजेपी का सदस्यता अभियान का लक्ष्य डेढ़ करोड़ सदस्यों की संख्या तक पहुंचना था।

2. किस कारण से कुछ विधानसभा क्षेत्रों में लक्ष्य हासिल नहीं हुआ?

  • कुछ विधानसभा क्षेत्रों में जनप्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल की कमी के कारण लक्ष्य हासिल नहीं हुआ।

3. कार्यकर्ताओं की नाराजगी का कारण क्या है?

  • कार्यकर्ताओं का कहना है कि चुनाव जीतने के बाद सांसदों और विधायकों ने उन्हें पहचानना बंद कर दिया, जिससे उनकी दिलचस्पी कम हो गई।

4. कौन-कौन सी विधानसभा सीटें बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं?

  • इंदौर की सभी 9 विधानसभा सीटें और भोपाल की 2 विधानसभा सीटें शत-प्रतिशत अपने लक्ष्य को पूरा कर चुकी हैं।

5. संगठन अब आगे क्या कदम उठाने की योजना बना रहा है?

  • संगठन प्रदेश स्तर पर समीक्षा कर रहा है और नई रणनीति बनाने की तैयारी कर रहा है ताकि कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर किया जा सके और सदस्यता लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

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