आठ साल की चुप्पी के बाद तीन माह में मंत्रालय को डिजिटल करने की तैयारी

मंत्रालय के डिजिटाइजेशन अटकने के पीछे कुछ अफसर और कर्मचारियों के प्रतिरोध को वजह बताया जा रहा है। अफसर- कर्मचारियों का गठजोड़ मंत्रालय को पूरी तरह डिजिटल होते नहीं देखना चाहता।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश मंत्रालय यानी वल्लभ भवन को अपडेट करने की कवायद में अफसर ही रोड़े अटका रहे हैं। ई- ऑफिस के तहत मंत्रालय में 6 साल से दस्तावेज और फाइलों का डिजिटाइजेशन हो रहा है, लेकिन अब तक आधा भी नहीं हुआ है। ऐसे में अब आठ साल से अटके काम को साढ़े 3 माह में अंजाम तक पहुंचाने की तैयारी की जा रही है। अफसरों को पाबंद किया गया है और मंत्रालय और संचालनालयों की फाइलों को तीन कैटेगरी में बांटकर उन्हें ई- ऑफिस सॉफ्टवेयर के मॉड्यल्स पर अपलोड करने का काम अब रफ्तार पकड़ रहा है। हांलाकि, अब तक मंत्रालय और संचालनालयों के बीच ई- ऑफिस कनेक्टिविटी उतनी मजबूत नहीं है, लेकिन इस काम को पूरा करने में अब सरकार के स्तर पर दिलचस्पी दिखाई जा रही है।

मंत्रालय के डिजिटाइजेशन अटकने के पीछे कुछ अफसर और कर्मचारियों के प्रतिरोध को वजह बताया जा रहा है। अफसर-  कर्मचारियों का गठजोड़ मंत्रालय को पूरी तरह डिजिटल होते नहीं देखना चाहता। क्योंकि मंत्रालय में फाइलों के अटकने और उन्हें आगे बढ़ाने के मैकेनिज्म को कुछ अफसर और कर्मचारियों के धड़े ने मुनाफे का साधन बना रखा है। यही गठजोड़ आठ साल से ई- मैनेजमेंट सिस्टम को गतिमान नहीं होने दे रहा है।

अब तक अधूरा डिजिटाइजेशन का काम

सरकार ने साल 2016 में मंत्रालय को डिजिटल सिस्टम से जोड़ने की तैयारी शुरू की थी। मई महीने में सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से प्रमुख सचिव ने मंत्रालय भवन में संचालित विभाग प्रमुखों को निर्देशित भी किया था। तब विभागों में कुछ महीने तक सुगबुगाहट भी हुई थी लेकिन फिर धीरे-धीरे डिजिटाइजेशन का यह काम अटकता चला गया। विभागों में भरी पड़ी फाइल और  दस्तावेजों को डिजिटाइजेशन के लिए उपलब्ध कराया जाना था। इसके लिए सरकार के स्तर पर व्यापक काम भी हुआ लेकिन जिम्मेदारों ने पल्ला झाड़ लिया। इसी वजह से ये काम 8 साल में भी पूरा नहीं हो सका है।

मंत्रालय के साथ ही सतपुड़ा, विंध्याचल, पालिका भवन और कुछ दूसरे भवनों में संचालित संचालनालयों को भी ई- ऑफिस व्यवस्था से जोड़ा जाना था, लेकिन यह काम भी अब तक अधूरा ही पड़ा है। वहीं विभागों और अफसरों के दफ्तरों के बीच अब भी बाबू और कर्मचारी फाइलें लेकर दौड़ते दिखते हैं। वैसे मंत्रालय में सामान्य फाइलों के साथ ई- फाइल भी चलन में आती जा रही हैं, लेकिन सिस्टम अधूरा होने से मैन्युअल फाइल का उपयोग करना मजबूरी बना है।

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सरकार की मंशा को अफसरों का ठेंगा

मंत्रालय के डिजिटाइजेशन के काम को लेकर अफसर और कर्मचारी दो धड़ों में बंटे हुए हैं। बड़ा वर्ग तो जल्द से जल्द मंत्रालय में फाइलों के आगे बढ़ाने के सिस्टम को ऑनलाइन किए जाने का पक्ष ले रहा है। वहीं एक छोटा सा वर्ग पुराने ढर्रे से बाहर नहीं निकलना चाहता। यानी उन्हें विभागों में फाइलों को मैन्युअली घूमते- घुमाते देखना पसंद हैं। यानी ये चंद लोग और उनकी गुटबंदी  सरकार की मंशा पर भारी पड़ रही है। यदि ऐसा नहीं है तो जीएडी के निर्देशों के 8 साल बाद भी वल्लभ भवन का फाइल मैनेजमेंट डिजिटल क्यों नहीं हुआ ?

क्या वजह है कि वरिष्ठ अफसरों के आदेश के बाद भी कर्मचारी डिजिटाइजेशन के लिए विभागों का पुराना रिकॉर्ड जमा नहीं करा रहे हैं ? वहीं बार- बार आग लगने की घटनाओं के बाद भी विभागों के कमरों में पुरानी फाइल और महत्वपूर्ण दस्तावेज रद्दी के रूप में भरे जा रहे हैं।

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दो माड्यूल पर फाइलों का मैनेजमेंट

मंत्रालय में साल 2018 से ई- ऑफिस सॉफ्टवेयर लागू हो चुका है। इसमें फाइलों के प्रबंधन के लिए दो माड्यूल हैं। सॉफ्टवेयर पर पहला मॉड्यूल फाइल मैनजमेंट सिस्टम (FMS) का है, जिसमें फाइलों को पूरी तरह ई- फाइल के रूप में चलाया जा सकता है। इसके साथ ही ई- ऑफिस में रजिस्टर कर फाइलों को पी- फाइल के रूप में ट्रैकिंग की जा सकती है। इसमें नोटशीट, ड्राफ्ट और दूसरे दस्तावेज भौतिक रूप से भी संधारित किए जा सकते हैं। इससे संबंधित कार्रवाई को फाइल के नंबर और संदर्भित विषय के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है। दोनों मोड एक साथ होने के कारण ही यह सिस्टम हाइब्रिड सिस्टम बन गया है।   

साढ़े तीन माह में कैसे पूरा होगा मंत्रालय का डिजिटाइजेशन

मंत्रालय और संचालनालयों के डिजिटाइजेशन की धीमी गति को सरकार अब तेज कर रही है। इसके लिए तकनीकी एक्सपर्ट और अफसरों को भी विभागीय स्तर  पर निर्देशित किया जा चुका है। इसी वजह से मंत्रालय और अन्य दफ्तरों में फाइलों की छंटनी, स्कैनिंग और डिजिटाइजेशन के लिए सॉफ्टवेयर पर अपलोड़िंग का काम भी गति पकड़ रहा है। फाइलों को तीनों कैटेगरी में व्यवस्थित करने कर्मचारियों को पाबंद किया गया है। पहली कैटेगरी में उन अस्थायी फाइलों को डिजिटाइजेशन के लिए रखा जा रहा है जिन्हें बाद में नष्ट किया जाना है।

दूसरी कैटेगरी उन नस्तियों की है जिनमें शामिल फाइलों की जरूरत नहीं होगी भविष्य में वे केवल रेफरेंस डॉक्युमेंट के रूप में उपयोग में आएंगी। इन्हें मॉड्यूल पर मेटाडेटा के साथ अपलोड किया जाएगा। सतपुड़ा भवन के रिकॉर्ड रूम में सुरक्षित ऐसी 70 हजार से ज्यादा फाइलों को अब तक अपलोड किया जा चुका है। जबकि जनवरी 2025 तक मंत्रालय की फाइलों को मॉड्यूल पर अपलोड करने का काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। फाइलों को इस अवधि के बाद अपनी फाइलों को रिकॉर्ड रूम में जमा कराना होगा। इस अवधि के बाद विभागों को ही फाइलों के अपडेशन का काम करना होगा।

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