आज 3 दिसंबर को अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (International Day of Persons with Disabilities) मनाया जा रहा है। जिसका मुख्य उद्देश्य दिव्यांगजन के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के प्रति समाज को जागरूक करना है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हर व्यक्ति, चाहे वह शारीरिक या मानसिक रूप से सक्षम हो या नहीं, समाज का अभिन्न हिस्सा है। इस दिन का महत्व केवल दिव्यांगजन की उपलब्धियों का सम्मान करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि उनके सामने आने वाली चुनौतियों को दूर किया जाए और उनके लिए समान अवसर प्रदान किए जाएं।
आज देशभर में दिव्यांगों को लेकर कई कार्यक्रम किए जाएंगे। मध्य प्रदेश में भी कार्यक्रमों का आयोजन होगा। सामाजिक न्याय और दिव्यांगजन कल्याण मंत्री नारायण सिंह कुशवाह (Minister Narayan Singh Kushwaha) ने अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर प्रदेश के दिव्यांगजनों की क्षमताओं और उपलब्धियों का उत्सव मनाने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि यह दिन हमें दिव्यांगजनों की शक्ति और संघर्ष को सम्मानित करने का अवसर प्रदान करता है, साथ ही हमें एक समावेशी समाज के निर्माण की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता को और सुदृढ़ करने की प्रेरणा देता है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में 1.3 अरब से ज्यादा लोग विकलांगता से प्रभावित हैं, जो वैश्विक आबादी का 16 प्रतिशत हिस्सा हैं। भारत में 2011 की जनगणना के मुताबिक दिव्यांग लोगों की संख्या 2.68 करोड़ थी, जो देश की कुल आबादी का 2.21 प्रतिशत है। इनमें से 12.6 मिलियन पुरुष और 9.3 मिलियन महिलाएं शामिल हैं।
दिव्यांगता को मात देने वाले प्रेरणास्त्रोत
हालांकि, दिव्यांगता को अक्सर एक कमजोरी और बाधा के रूप में देखा जाता है, लेकिन दुनियाभर में हजारों ऐसे विकलांग लोग हैं, जिन्होंने अपनी स्थिति को चुनौती के रूप में लिया और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी मेहनत और प्रतिभा से सफलता हासिल की। उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी अपनी कमजोरी नहीं माना। उनकी कहानी आज भी हमें प्रेरणा देती है। आज अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस यानी अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर हम आपको उन मध्य प्रदेश के प्रेरणादायक लोगों की कहानियां बता रहे हैं, जिन्होंने अपनी शारीरीक कमजोरी को पीछे छोड़कर असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं।
जूडो खिलाड़ी कपिल परमार की प्रेरक कहानी
कपिल परमार, एक प्रतिभाशाली जूडो खिलाड़ी, जिन्होंने पेरिस पैरालंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर न केवल देश बल्कि मध्य प्रदेश का नाम भी रोशन किया है, आज युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं। कपिल ने अपनी कड़ी मेहनत, समर्पण और अद्वितीय जज्बे के साथ यह उपलब्धि हासिल की। पेरिस पैरालंपिक में शानदार प्रदर्शन करते हुए कपिल परमार ने जूडो में अपने वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता। उनके इस अद्वितीय संघर्ष और सफलता से यह साबित होता है कि दिव्यांगता कोई रुकावट नहीं है, बल्कि यदि सच्ची मेहनत और जुनून हो, तो किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है। कपिल की इस सफलता ने न केवल खेल जगत में बल्कि पूरे समाज में प्रेरणा का संचार किया है।
सितंबर 2024 में हुए पेरिस पैरालंपिक में कपिल परमार ने पुरुषों की 1-60 किलोग्राम श्रेणी में ब्राजील के एलिल्टन डी. ओलीवेरिया को हराया था। परमार ने यह मुकाबला रिकॉर्ड 10-0 से अपने नाम किया है। परमार ने भारत की झोली में 25वां मेडल डाला था। 2022 एशियाई खेलों में परमार ने इसी वर्ग में सिल्वर पदक हासिल किया था। जानकारी के मुताबिक पैरा जूडो में जे1 श्रेणी दृष्टिबाधित, या फिर उनकी कम दृष्टि वाले खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं।
बचपन में लगा था करंट
कपिल परमार एमपी के एक छोटे से गांव शिवोर के रहने वाले हैं। बचपन में परमार के साथ एक हादसा हुआ था, खेत में खेलते समय उन्हें पंप से बिजली का करंट लगा था। जोरदार झटके में बेहोश हुए कपिल परमार को अस्पताल में भर्ती किया गया था। जिसके बाद वह छह महीने तक कोमा में रहे। कपिल के पिता टैक्सी ड्राइवर हैं।
रुबीना फ्रांसिस: संघर्ष और सफलता की प्रेरक कहानी
मध्य प्रदेश की बेटी रुबीना फ्रांसिस ने भी पेरिस पैरालंपिक में देश का मान बढ़ाया है। जबलपुर के मोटर मैकेनिक की बेटी रुबीना फ्रांसिस ने रिकेट्स की समस्या से ग्रसित होने के बाद भी पैरालंपिक में भारत को पांचवा पदक दिलाया। 1999 में जन्मीं रुबीना फ्रांसिस बचपन से ही दिव्यांग हैं। वह पैरों से 40 प्रतिशत दिव्यांग हैं। साथ ही रिकेट्स नामक बीमारी से पीड़ित हैं। हालांकि, उन्होंने अपनी शारीरिक कमजोरी को कभी बाधा बनने नहीं दिया। उन्होंने अपना दमखम दिखाया और पैरालंपिक में भारत का नाम ऊंचा किया है।
अकादमी का खर्च निकालना भी मुश्किल
रुबीना के पिता साइमन फ्रांसिस की ग्वारीघाट रोड पर एक बाइक रिपेयरिंग की दुकान थी, जिसे नगर निगम ने तोड़ दिया था। इस घटना के बाद रुबीना को अपनी शूटिंग अकादमी के लिए खर्च जुटाने में समस्या का सामना करना पड़ा। लेकिन यहां भी रुबीना के भाई ने उनका साथ दिया। भाई ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ काम करके अपनी बहन को आर्थिक मदद दी और उसकी शूटिंग यात्रा को आसान बनाने में योगदान दिया।
रुबीना की उपलब्धियां
रुबीना ने 2024 में द्विपक्षीय नियम के तहत पेरिस पैरालंपिक के लिए ओलंपिक कोटा हासिल किया। इसके पहले, 2021 में अंतर्राष्ट्रीय शूटिंग स्पोर्ट फेडरेशन (ISSF) द्वारा उन्हें महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 में पांचवां स्थान प्राप्त हुआ। उन्होंने 2018 एशियाई पैरा खेलों में भी भाग लिया था, और 2022 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अल ऐन में आयोजित विश्व शूटिंग पैरा स्पोर्ट चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने में सफलता प्राप्त की।
अब 2024 पेरिस पैरालंपिक में रुबीना ने महिला 10 मीटर एयर पिस्टल एसएस1 के फाइनल में तीसरे स्थान पर रहते हुए 211.1 का स्कोर कर कांस्य पदक हासिल किया और देश का मान बढ़ाया।
रुबीना की यह सफलता न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह उन लाखों दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा भी है, जो अपनी मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को सच करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
दिव्यांग दिवस का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल: दिव्यांग दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर 1992 में की गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 1983 से 1992 तक के दशक को दिव्यांगजनों के लिए संयुक्त राष्ट्र का दशक घोषित किया था। इस दशक का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के लिए बेहतर जीवन, उनके अधिकारों की रक्षा, और समाज में उनकी समावेशिता को बढ़ावा देना था।
वर्ष 1992 में प्रस्ताव: इसके बाद, 1992 में 47वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें हर साल 3 दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इस दिन का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के प्रति समाज को जागरूक करना था। साथ ही, यह दिन उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जानकारी देने, उनके जीवन को बेहतर बनाने, और उनकी चुनौतियों को समझने का एक अवसर प्रदान करता है।
दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार: यह दिन विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को प्रमोट करता है, उनके जीवन के स्तर को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाने की प्रेरणा देता है, और समाज में उनके समावेश की दिशा में कार्य करने की जरूरत को उजागर करता है। दिव्यांगों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने और उन्हें समाज में समान अवसर प्रदान करने की दिशा में यह दिन एक महत्वपूर्ण कदम है।
विश्व दिव्यांग दिवस का उद्देश्य
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और उन्हें मिलने वाले अवसरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
- दिव्यांग व्यक्तियों को उनके अधिकारों को प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करना।
- समावेशी समाज के निर्माण के लिए समाज में बदलाव लाना।
- दिव्यांग व्यक्तियों को समाज में समान अधिकार और अवसर देने की दिशा में कार्य करना।
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