नए वर्सेज पुराने भाजपाई... राजनीतिक पुनर्वास की आस में सब्र टूट रहा, अब फूटने लगा गुस्सा!

मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दिनों पुराने और नए भाजपाई अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। किसी को समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या होगा? । 'द सूत्र' ने सूबे में आयतित बनाम खांटी नेताओं की पड़ताल की तो कई रोचक तथ्य निकलकर सामने आए।

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Ravi Kant Dixit
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Bhopal : मध्यप्रदेश की सियासत में इन दिनों पुराने और नए भाजपाई अपने सियासी भविष्य को लेकर चिंतित हैं। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा कि आगे होगा क्या? एक तरफ आयतित नेताओं को बीजेपी में पद और प्रतिष्ठा दोनों मिल रही है। दूसरी तरफ बरसों तक बीजेपी में सम्मानजनक पदों नेता अब अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर छाई धुंध छंटने का इंतजार करते नजर आ रहे हैं।

इसके उलट कांग्रेस का हाथ थामकर राजनीति कर रहे नेता अब 'कमल दल' में आकर अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। ज्यादा सियासी बवाल बुंदेलखंड में मचा है। फिर नंबर आता है महाकौशल अंचल का। 'द सूत्र' ने सूबे में आयतित बनाम खांटी नेताओं की पड़ताल की तो कई रोचक तथ्य निकलकर सामने आए।

पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

बुंदेलखंड: आयतित नेताओं को पद और प्रतिष्ठा

सबसे पहले बात बुंदेलखंड के मुख्यालय सागर की करते हैं। यहां दिलचस्प तस्वीर नजर आती है। विधानसभा चुनाव के बाद यहां पुराने भाजपाई लगता है मानो हाशिए पर चले गए हैं। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले गोविंद सिंह राजपूत मोहन सरकार में इस इलाके का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनके भाई हीरा सिंह राजपूत सागर जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। महापौर पद पर संगीता तिवारी हैं। इनके पति सुशील तिवारी कांग्रेस नेता रहे हैं। दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़े, लेकिन हार मिली।

निराश नजर आते हैं गोपाल भार्गव

इसके उलट पांच दशक से बीजेपी में सक्रिय और 18 साल मंत्री रहे गोपाल भार्गव निराश नजर आते हैं। पिछले दिनों उनके दो सोशल मीडिया पोस्ट खासे चर्चा में रहे। अव्वल तो वे जब सागर में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव हुई तो कार्यक्रम से बीच में ही चले गए थे। इधर, मंच से सीएम डॉ.मोहन यादव उनका नाम पुकारते रहे थे। वहीं, अब दो दिन पहले भार्गव ने रेप के बढ़ते मामलों पर अप्रत्यक्ष रूप से सरकार को घेरने की कोशिश की। उन्होंने एक तस्वीर पोस्ट कर लिखा, वर्तमान परिदृश्य में क्या हम रावण दहन के अधिकारी हैं।

भूपेंद्र सिंह की पोस्ट के क्या हैं सियासी मायने

दूसरी तरफ पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने पिछले दिनों जब मीडिया में कुछ खबरें आईं तो फेसबुक पर इसकी सफाई दी थी। उन्होंने लिखा था, फेसबुक पर लिखा था कि 45 वर्षों से राजनीति में होने और विपरीत समय में प्रताड़ना सहने के बाद भी मेरे पूरे परिवार के एक भी सदस्य ने कुर्सी के मोह में भाजपा के अलावा किसी और पार्टी या विचारधारा को अपने जीवन में स्थान नहीं दिया। किसी सदस्य ने कांग्रेस में जाने का कभी विचार भी मन में नहीं आने दिया। संघ और भाजपा के प्रति यही वैचारिक दृढ़ता और अनुशासन आज हमारी सर्वश्रेष्ठ पूंजी है। कुर्सियों का मोह हमने तब नहीं किया तो अब कुर्सियों के लिए मोह और समझौते क्या करेंगे! कुर्सियों की चाह मन में होती तो सारे संघर्ष और जेलों की यातनाएं क्यों सही होतीं? ये तो हुई एक बात। दूसरी तरफ उनके समर्थक खुरई को जिला बनाने के लिए अभियान छेड़े हुए हैं।

विधायक और महापौर में ठनी

आपको बता दें कि सागर में मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के बीच भी सियासी अनबन बरसों से चली आ रही हैं। सूत्रों के अनुसार, सागर विधायक शैलेंद्र जैन और महापौर संगीता तिवारी के बीच भी बातचीत बंद है। नगर निगम पार्षदों ने पिछले दिनों मेयर संगीता तिवारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इसकी अगुआई विधायक शैलेंद्र जैन ने ही की थी। तब, बीजेपी के दो दर्जन से ज्यादा पार्षदों ने भोपाल पहुंचकर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से मुलाकात कर मेयर की शिकायत की थी। सभी पार्षद सागर विधायक शैलेंद्र जैन के साथ मंत्री विजयवर्गीय से मिले थे। खास यह था कि सागर से मंत्री गोविंद सिंह राजपूत भी इस दौरान मौजूद रहे थे।

छतरपुर में खटीक को झुकना पड़ा

छतरपुर जिले में केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक के खिलाफ बीजेपी नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है। कांग्रेस से आए पूर्व मंत्री मानवेंद्र सिंह ने तो उनकी बर्खास्तगी तक की मांग कर डाली थी। बाद में मानवेंद्र के पुत्र कामाख्या प्रताप सिंह की आपत्ति के चलते दिग्गज बीजेपी नेता व केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक को झुकना पड़ा। खटीक बुंदेलखंड के सबसे सीनियर आठ बार के सांसद हैं। वहीं, छतरपुर विधायक व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष ललिता यादव ने खटीक पर कांग्रेसियों का पक्ष लेने और विधायकों के काम में हस्तक्षेप के आरोप लगाए थे। इसके बाद तस्वीर सामने आई, जिसमें वीरेंद्र खटीक छतरपुर में अधिकारियों की बैठक ले रहे हैं, लेकिन इसमें क्षेत्र का कोई भी विधायक नहीं पहुंचा।

राजनीतिक पुनर्वास की आस में ये नेता

अब बात उन आयतित नेताओं की करते हैं, जिन्होंने चुनाव से ऐन पहले पाला बदला था। ये नेता अब अपने राजनीतिक पुनर्वास की बांट जोह रहे हैं। चाहे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी हों या फिर विधायक निर्मला सप्रे... इनकी हालत बीजेपी में बिन बुलाए मेहमान जैसी है। इसके अलावा पचौरी के साथ उनके समर्थक पूर्व विधायक संजय शुक्ला, अर्जुन पलिया के अलावा पूर्व विधायक गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी और पूर्व विधायक विशाल पटेल ने इस उम्मीद से बीजेपी का दामन थामा था कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद उनका राजनीतिक पुनर्वास हो जाएगा, लेकिन अब तक बात नहीं बनी है।

निर्मला सप्रे भी दुविधा भी...आखिर क्यों नहीं दे रहीं इस्तीफा?

राजनीतिक पुनर्वास को लेकर विधायक निर्मला सप्रे भी दुविधा में हैं। शायद यही वजह है कि बीना से कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर विधायक बनीं निर्मला सप्रे ने अभी तक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है। वे असमंजस में हैं। अब इस मामले में तो साफ है कि निर्मला बीना को जिला बनाने की शर्त पर बीजेपी में गई थीं, उम्मीद भी जताई जा रही थी कि सीएम डॉ.मोहन यादव बीना अथवा सागर दौरे में बीना को जिला बनाने का ऐलान कर देंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

विश्नाई फोड़ते रहे हैं बम, इधर, सक्सेना और जाफर ओझल!

महाकौशल की राजनीति में भी खुशी और गम वाले हालात हैं। जबलपुर के पाटन से विधायक व पूर्व मंत्री अजय विश्वनोई भी समय समय पर सियासी बम फोड़ते रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने सरकार को घेरा था। विश्नोई ने लिखा था, मेरे बेटे के सुझाव पर सरकार ने कुछ नहीं किया। इस पोस्ट में उन्होंने डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला से कदम उठाने की मांग की थी।

वहीं, छिंदवाड़ा में बीजेपी को सफलता दिलाने में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाने वाले पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना, पूर्व विधायक गंभीर सिंह, कांग्रेस प्रवक्ता रहे सैय्यद जाफर, विधायक कमलेश शाह समेत दर्जनों नेता बीजेपी संगठन में बिन बुलाए मेहमान की तरह दिखाई देते हैं।

अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह को उम्मीद थी कि रामनिवास रावत की तरह उन्हें भी मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। ऐसे ही महाकौशल से कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले नेताओं में पूर्व विधायक नीलेश अवस्थी, पूर्व महाधिवक्ता शशांक शेखर राजनीति की मुख्य धारा से ओझल हो गए हैं।

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