मध्य प्रदेश के इतिहास में पहली बार भाजपा ने लोकसभा की सभी 29 सीटें जीती। देशभर में भाजपा की सीटें कम हुई है, फिर मध्य प्रदेश में ये कमाल पार्टी ने कैसे किया? इसी सवाल के जवाब से भाजपा हाईकमान उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री से सवाल करेगा, क्योंकि वहां सीटें कम हुई हैं। दरअसल प्रदेश में इस जीत में दो ही फैक्टर हैं पहला, भाजपा की आक्रामक रणनीति और दूसरा, कांग्रेस की अब तक की सबसे कमजोर तैयारी। इसके साथ ही राजनीतिक वातावरण में कई सवाल भी तैरने लगे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को अब सवालों का पूरा पेपर ही हल करना होगा। छिंदवाड़ा में अपने गढ़ में भाजपा की सेंध के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने भी सवाल खड़ा हो गया है कि आगे क्या? इधर, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दिल्ली का टिकट कन्फर्म होने के साथ ही यह पूछा जाने लगा कि पार्टी उन्हें अब क्या जिम्मेदारी देगी?
मध्य प्रदेश में रिजल्ट से जुड़ी 3 खास बातें
1. प्रदेश के इतिहास में कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई है।
2. इंदौर में नोटा ने दूसरे नंबर पर रहकर रिकॉर्ड बनाया। यहां कांग्रेस प्रत्याशी के पाला बदलने से भाजपा का मुकाबला नोटा से था।
3. इंदौर में शंकर लालवानी ने रिकॉर्ड 11 लाख से ज्यादा वोटों से जीते। उनके अलावा पांच लाख से ज्यादा वोटों से जीते पांच प्रत्याशी जीते।
भाजपा को इतनी बड़ी जीत ऐसे मिली रही है?
1. विधानसभा चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह ने पार्टी के पदाधिकारियों से जो होमवर्क कराया था, वह काम आया। शाह ने हर संभाग में बैठकें लेकर एक-एक बूथ के बारे में सवाल किए थे। ये तक बताया था कि झंडे-बैनर लगाने से कोई अफसर रोके तो उससे किस तरह और क्या बात करना है।
2. उन सीटों पर खास ध्यान दिया जहां पार्टी को थोड़ी बहुत भी आशंका थी। खासकर आदिवासी सीटों पर। इसमें भी उन विधानसभा सीटों को टारगेट किया गया, जहां विधानसभा चुनाव में हार मिली थी। विधानसभा चुनाव में धार की आठ विधानसभा सीटों में पांच कांग्रेस ने और तीन भाजपा ने जीती थी। भाजपा को ओवर ऑल 4076 वोट की लीड मिली थी। इस वजह से पार्टी ने धार को रेड जोन में रखा था। इसी तरह मंडला की आठ में पांच सीटें कांग्रेस ने जीतकर संसदीय क्षेत्र में ओवर ऑल 16082 वोटों की लीड ली थी। ऐसी एक-एक सीट की जिम्मेदारी तय की गई और लगातार रिव्यू किया।
3. पार्टी ने जो बड़ा और अलग काम किया वह था- कांग्रेस के संगठन के ढांचे को कमजोर करना। चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान कांग्रेस में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की। हर स्तर पर। कई जिलों में तो कांग्रेस की पूरी की पूरी कार्यकारिणी को भाजपा में शामिल कर लिया।
4. कांग्रेस के विधायक से लेकर प्रत्याशियों को भी नहीं छोड़ा। चुनाव के दौरान कांग्रेस के तीन विधायकों को अपने पाले में कर लिया। इंदौर में तो अक्षय कांति बम को अपने खेमे में शामिल कर कांग्रेस को मुकाबले से ही बाहर कर दिया। ये युद्ध के उस वार की तरह था, जिसमें दुश्मन को संभलने का मौका भी नहीं मिलता है।
कांग्रेस से कहां चूक हुई ?
1.हर स्तर पर। विधानसभा ने पार्टी ने पूरे दमखम के साथ भाजपा का मुकाबला किया था, लेकिन लोकसभा में तो ऐसा लग रहा था कि संगठन की बजाय उम्मीदवार ही अपने दम पर चुनाव लड़ रहे थे। फंड और संसाधनों के मामले भी तंग थे।
2. उम्मीदवारों के चयन में पार्टी से गलतियां हुईं। इंदौर में अक्षय कांति बम इसके उदाहरण है। उन्होंने ऐसे वक्त पाला बदला कि कांग्रेस बिना चुनाव लड़े मुकाबले से बाहर हो गई। 'नोटा' को अपना प्रत्याशी बताना पड़ा।
3.कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ के लिए छिंदवाड़ा में ही डटे रहे तो दिग्विजय ने राजगढ़ में खुद के लिए पूरी ताकत लगाई। अपनी सीट का चुनाव निपटने के बाद दिग्विजय जरूर दूसरी सीटों पर प्रचार करने गए, लेकिन कमलनाथ कुछ क्षेत्रों में ही पहुंचे।
4.प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को अपनी ऊर्जा भाजपा के भर्ती अभियान के असर को कम करने में रही। मध्यप्रदेश के लिए कांग्रेस हाईकमान रिव्यू के बाद बड़ा फैसला ले लें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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