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BHOPAL : 11 दिसंबर 2023...यह वही तारीख थी, जब डॉ.मोहन यादव बीजेपी विधायक दल के ग्रुप फोटो में तीसरी पंक्ति में बैठे थे। अगली पंक्ति में थे दिग्गज शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद सिंह पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, गोपाल भार्गव और वीडी शर्मा। तब घड़ी में 3 बजकर 30 मिनट हो रहे थे। अबके जैसी सर्द हवाएं उस दिन भी वह रही थीं। किसी को अंदाजा नहीं था कि अगले 45 मिनट में क्या होने वाला है।
बीजेपी ने दिया नई परम्परा को जन्म
इसके बाद बीजेपी दल की बैठक हुई। हरियाणा से पर्यवेक्षक के रूप में आए मनोहरलाल खट्टर ने मंच पर बैठे शिवराज सिंह चौहान को वह पर्ची दे दी। शिवराज ने ही डॉ.मोहन यादव का नाम पुकारा। अव्वल तो मोहन ने सुना ही नहीं, जब दोबारा उनके नाम का ऐलान हुआ, तब वे उठे और मंच पर पहुंचे। उसके बाद जो हुआ, वह सबको पता है। इस तरह बीजेपी विधायक दल ने 58 साल के डॉ.मोहन यादव को अपना मुखिया चुन लिया। डॉ.यादव के 99 वर्षीय पिता की खुशी का भी ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कहा, बेटे के सीएम बनने की खबर से मेरी उम्र बढ़ गई। इसी के साथ बीजेपी ने नई परम्परा को जन्म दे दिया, जो बाद में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी अपनाई गई। फिर यही फॉर्मूला 2024 में हरियाणा में लागू किया गया।
अब आते हैं विस्तार पर...
विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 163 सीटें जीती। इस प्रचंड जीत के बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी कोई नया दांव खेलेगी, लेकिन ये कम भी लोगों को अंदाजा था कि ये चाल डॉ.मोहन यादव के रूप में होगी। सियासी हलचल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने मोहन को चुना। शिवराज सिंह चौहान ने इस्तीफा दिया। इसके बाद डॉ.यादव ने राज्यपाल मंगूभाई पटेल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश किया। 13 दिसंबर को उन्होंने शपथ ली।
20 साल से ओबीसी चेहरे के पास रही कमान
खास यह भी है कि प्रदेश में वर्ष 2003 से लेकर 2023 तक साढ़े अठारह साल की बीजेपी सरकार में हमेशा ओबीसी मुख्यमंत्री रहे। उमा भारती से शुरू हुआ यह सिलसिला बाद में बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के साथ जारी रहा। अब ओबीसी वर्ग से ही आने वाले डॉ.मोहन यादव प्रदेश के मुखिया बने। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ओबीसी वर्ग की आबादी भी है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 68 ओबीसी नेताओं को टिकट दिए थे, जिनमें से 44 ने जीत दर्ज की। वहीं, कांग्रेस ने 59 ओबीसी नेताओं को टिकट दिए थे, इनमें से सिर्फ 16 को जीत मिली।
सरकार में सोशल इंजीनियरिंग, 41% मंत्री ओबीसी
दूसरा, सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां सबसे अधिक 50.09 प्रतिशत आबादी ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की है। वहीं, राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो राज्य में सभी वर्गों के कुल वोटरों में ओबीसी वोटर 48 फीसदी के करीब हैं। 20 जिलों में 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोटर हैं। इसमें से आधे जिले तो ऐसे हैं, जहां ओबीसी की संख्या 70 से 80 प्रतिशत तक है। यही वजह है कि मोहन कैबिनेट में भी ओबीसी वर्ग का ध्यान रखा गया है। सोशल इंजीनियरिंग के तहत सीएम डॉ.मोहन यादव समेत 41 फीसदी मंत्री (13) ओबीसी वर्ग से आते हैं।
आपके 5 सवाल और 5 जवाब
2. क्या यह पीएम मोदी का रणनीतिक निर्णय है?
बिल्कुल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व अक्सर अप्रत्याशित और रणनीतिक फैसलों के लिए जाना जाता है। 2014 के बाद से बीजेपी ने कई राज्यों में सत्ता बरकरार रखते हुए नए चेहरे सामने लाए। मोहन यादव को सीएम बनाकर मोदी ने संदेश दिया है कि पार्टी में आम कार्यकर्ता भी शीर्ष पद तक पहुंच सकता है।
4. संघ की भूमिका कितनी बड़ी है?
डॉ.मोहन यादव के चुनाव में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। डॉ.यादव संघ के सुरेश सोनी के करीबी माने जाते हैं। उनके स्वभाव और संघ से जुड़ाव ने उन्हें आरएसएस और पीएम मोदी की पसंद बनाया। उमा भारती की सरकार के बाद यह पहला मौका है, जब संघ की सिफारिश पर बड़ा फैसला लिया गया।
बीजेपी ने दूसरे राज्यों में उतारा
डॉ.मोहन यादव को सूबे की कमान सौंपने के बाद बीजेपी ने उन्हें दूसरे राज्यों में उतारा। पहले तो MP में चुनाव की आचार संहिता लगने के बाद से सीएम ने सभी 29 लोकसभा क्षेत्र कवर किए। इस बीच उन्होंने 139 सभाएं की। 49 रोड शो किए। विधानसभा क्षेत्रों में उनके कुल 178 कार्यक्रम हुए। इस चुनाव के बीच डॉ.यादव प्रचार के लिए उत्तरप्रदेश भी गए। उन्होंने अमेठी से BJP प्रत्याशी स्मृति ईरानी के समर्थन में रोड शो किया। सीएम बिहार और दिल्ली भी गए। फिर जम्मू कश्मीर गए। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बीच भी उनकी सभाएं हुईं। यहां बीजेपी की जीत का स्ट्राइक रेट अच्छा रहा। इस तरह पार्टी ने ओबीसी और खासकर यादव वोटर्स को साधने की पूरी कोशिश की।
अब मोहन यादव का सफर भी जान लीजिए...
1. मोहन यादव वर्ष 1982 में माधव विज्ञान कॉलेज में छात्र संघ के सह-सचिव बने। फिर 1984 में अध्यक्ष चुने गए। एबीवीपी उज्जैन के नगर मंत्री और 1986 में विभाग प्रमुख रहे।
2. 1988 में एबीवीपी मध्यप्रदेश के प्रदेश सहमंत्री और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने। फिर 1989-90 में परिषद की प्रदेश इकाई के प्रदेश मंत्री और 1991-92 में परिषद के राष्ट्रीय मंत्री बनाए गए।
3.1993 से 1995 तक आरएसएस, उज्जैन नगर के सह खंड कार्यवाह, सायं भाग नगर कार्यवाह और 1996 में खंड कार्यवाह, फिर नगर कार्यवाह रहे। 1997 में भाजयुमो की प्रदेश कार्यसमिति में रहे।
4. फिर 6 साल तक उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष (राज्य मंत्री दर्जा) रहे। 2013 में पहली बार विधायक बने। 2018 में दूसरी बार विधायक बने और शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री बनाए गए।
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