BHOPAL : अनियोजित सिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के कारण खड़ी होने वाली दिक्कतों से अब लोगों को जूझना नहीं पड़ेगा। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग डेवलपमेंट प्लान का परीक्षण देश की नामचीन संस्थानों से कराएगा। मशविरे के बाद यदि इन संस्थाओं से हरी झंडी मिली तभी प्रोजेक्ट जमीन पर उतारे जाएंगे। यानी विभाग ऐसे किसी प्रोजेक्ट को क्लीयरेंस नहीं देगा जिन्हें आने वाले सालों में बंद करना पड़े, उनका स्वरूप बदलने की जरूरत हो या इनकी वजह से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़े। अब तक डेव्लपमेंट प्रोजेक्ट्स को नगरीय निकायों के इशारे पर स्वीकृति देने का चलन रहा है। इस वजह से कई शहरों में या तो करोड़ों के प्रोजेक्ट बंद हो चुके हैं या उन्हें बदलने पर ही लागत से ज्यादा खर्च करना पड़ा है।
ये है विभाग की नई तैयारी
प्रदेश सरकार भी अब केंद्र की तरह हर विकास प्रोजेक्ट का परीक्षण कराएगी। यानी विभाग, नगरीय निकाय या विभाग की एजेंसियों से तैयार प्लान को अपने स्तर पर क्लीयरेंस नहीं देगा। इसके लिए विभाग ने देश की चार तकनीक एक्सपर्ट संस्थाओं का चयन किया है। इन संस्थाओं के प्रबंधन से भी सरकार के स्तर पर चर्चा की जा रही है। तकनीकी क्षेत्र के इन प्रमुख संस्थानों के एक्सपर्ट डिजाइन-ड्राइंग के साथ ही हर स्तर पर परीक्षण करेंगे। किसी काम को जमीन पर उतारने में कोई अड़चन तो नहीं होगी, लागत कैसे कम की जा सकती है और उसका लाभ ज्यादा लोगों को मिले इसकी सलाह भी एक्सपर्ट अपनी रिपोर्ट में देंगे। इससे विकास के बड़े प्रोजेक्टों की लागत और समय अवधि घटेगी और इससे प्रदेश के विकास को रफ्तार मिलेगी।
इन तकनीकी संस्थाओं को भेजा प्रस्ताव
प्रदेश सरकार से स्वीकृति के बाद नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने देश के चार बड़े संस्थानों से चर्चा शुरू कर दी है। इसके लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर नई दिल्ली, आईआईटी खड़गपुर, सीईपीटी यूनिवर्सिटी अहमदाबाद और मैनिट भोपाल का जिम्मा सौंपा जाएगा। विभागीय मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की सहमति के बाद इसका प्रस्ताव भी इन संस्थाओं को भेजने की तैयारी पूरी हो चुकी है। अधिकारियों के अनुसार इन संस्थानों के पास सभी तरह के एक्सपर्ट हैं। नई तकनीकी, उपकरण से लेकर हर तरह के संसाधनों से लैस इन कंपनियों से परामर्श विकास परियोजनाओं को बेहतर स्वरूप दे सकता है। जबकि विभाग डिजाइन ड्राइंग से लेकर निर्माण की गुणवत्ता की जांच तक ठेकेदार और कंसल्टेंट कंपनियों पर ही आश्रित होते हैं। केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय पूर्व में विकास परियोजनाओं पर इन संस्थाओं के सहयोग से काम कर चुका है। भोपाल में बड़े तालाब के संरक्षण की परियोजना पर पूर्व में अहमदाबाद की एसईपीटी यूनिवर्सिटी से मदद ली जा चुकी है। तकनीकी संस्थाओं की निगरानी में तैयार प्रोजेक्ट न केवल ये प्रोजेक्ट तय से कम अवधि में पूरे हुए बल्कि उनकी लागत भी कम हो गई और दूसरे प्रोजेक्ट के मुकाबले तकनीकी उलझन भी कम आई थीं। इस स्थिति को देखते हुए अब मध्य प्रदेश का नगरीय प्रशासन विभाग इसे अमल में लाने जा रहा है।
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भोपाल के प्रोजेक्ट्स से होगी शुरुआत
राजधानी में जल्द ही बड़े प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने वाला है। प्रदेश को विकास के मामले में आगे ले जाने वाली सरकार अब विकास को भी नियोजित विकास में बदलना चाहती है। इसके लिए नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने तैयारी कर ली है। भोपाल में अब एलिवेटेड कॉरिडोर, फ्लाईओवर या आरओबी, नई सड़क, बस स्टैंड, अस्पताल और अन्य प्रोजेक्ट इन संस्थाओं की निगरानी में ही तैयार होंगे। यानी डिजाइन ड्राइंग से लेकर पूरे प्रोजेक्ट की हर छोटी से छोटी जानकारी इन संस्थाओं के एक्सपर्ट की नजर में होगी। उनके क्लीयरेंस के बाद ही विभाग इनके ड्राफ्ट को हरी झंडी देगा।
पुराने कामों की फजीयत से लिया सबक
विकास कार्यों के नियोजन पर सरकार इस कारण ध्यान दे रही है क्योंकि पुराने कुछ मामलों में अब तक फजीहत हो रही है। राजधानी में विरोध के बावजूद तकनीकी परीक्षण कराए बिना नगर निगम ने बीआरटीएस बनवा दिया था जिसे कुछ महीने पहले तोड़ना पड़ा। इस कॉरिडोर के कारण बीते एक दशक में कई हादसे हुए और लोगों को जान भी गंवाना पड़ी। मल्टीलेवल पार्किंग की जगह के चयन में भी सर्वे नहीं कराया गया और 150 करोड़ से ज्यादा खर्च कर दिए गए। सुभाष फाटक क्षेत्र में आरओबी का निर्माण, हमीदिया अस्पताल की मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में तकनीकी गड़बड़ी छोड़ दी गई जिसके कारण इसका पूरा उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। निर्माणाधीन ऐशबाग आरओबी शुरुआत से ही विवाद और तकनीकी उलझनों से घिरा है। इन कामों पर सरकार का अनुमानित लागत से ज्यादा खर्च हो चुका है और लोगों को फायदा भी नहीं मिला है।
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