/sootr/media/media_files/2025/04/03/zSldA0XHEx11RGgS4AEh.jpg)
संदीप यादव, प्रिंसिपल सेक्रेट्री हेल्थ Photograph: (the sootr)
मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में अफसर शाही का यह आलम है की प्रदेश के एकमात्र स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए विभाग के पास फंड भी है और जगह भी, लेकिन अधिकारियों की सुस्ती के चलते यह अब तक एक ख्वाब बना हुआ है और कैंसर से पीड़ित मरीज या तो मेडिकल अस्पताल में पुरानी मशीन के भरोसे इलाज के लिए कतार में खड़ा होने को मजबूर है या फिर निजी अस्पताल में महंगा इलाज करवाने को।
केंद्र सरकार के द्वारा 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में कैंसर की बीमारी से लड़ने के लिए गाइडलाइन तैयार की थी जिसके बाद 20 राज्यों में कैंसर के सर्व सुविधायुक्त इलाज के लिए State Cancer institute (SCI) शुरू करने का निर्णय लिया गया था। मध्य प्रदेश राज्य में इंस्टिट्यूट के लिए जबलपुर को चुना गया था और साल 2016 में केंद्र सरकार से मध्य प्रदेश सरकार को 130 करोड़ रुपए का फंड स्वीकृत किया गया था। इसमें से लगभग 46 लाख रुपए खर्च कर कैंसर इंस्टिट्यूट के लिए ढांचा और रेडिएशन मशीनों के लिए बंकर बना लिए गए लेकिन आज 9 साल बीत जाने के बाद भी जिन मशीनों से मरीजों का इलाज होना है उन्हें खरीदने में जिम्मेदार असफल साबित हुए हैं।
हाईकोर्ट में दायर हुई जनहित याचिका
इस मामले में जबलपुर हाईकोर्ट में अधिवक्ता विकास महावर के द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार के द्वारा फंड दिए जाने के बाद भी उस फंड का राज्य सरकार के द्वारा सही इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। यहां तक की प्रदेश के एकमात्र स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट के लिए हायर किए गए कर्मचारियों को भी अन्य जगहों पर ट्रांसफर कर इस कैंसर इंस्टिट्यूट के अस्तित्व को खत्म करने की साजिश रची जा रही है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि केंद्र सरकार के द्वारा दिए गए फंड का सही इस्तेमाल कर इस स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए जरूरी मशीनों की जल्द खरीदारी की जाए क्योंकि जो इलाज कैंसर के मरीजों को अस्पताल में मुफ्त में मिल सकता है इस इलाज के लिए उन्हें निजी अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।
यह भी पढ़ें... इंदौर बावड़ी कांड में मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष और सचिव बरी, कोर्ट ने कहा पुलिस ने नहीं की सही जांच
हाईकोर्ट में नहीं चले सरकार के बहाने
इस मामले में हाईकोर्ट में सरकार और स्वास्थ्य विभाग के द्वारा दिए गए अलग-अलग बहानों में से कोई भी काम नहीं आया। पहले तो विभाग के द्वारा यह बताया गया कि मेडिकल अस्पताल में कैंसर मरीजों का ट्रीटमेंट कोबाल्ट मशीन से हो रहा है। लेकिन, याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने यह तथ्य रखा कि यह कोबाल्ट मशीन मेडिकल हॉस्पिटल के कैंसर डिपार्टमेंट की एक पुरानी मशीन है और इसके जरिए किए जा रहे है इलाज की बात कर सरकार अपनी जवाबदारी से नहीं बच सकती।
इसके साथ ही कोर्ट के द्वारा जब सरकार के खाते में जमा 84 करोड रुपए से कैंसर के इलाज के लिए इक्विपमेंट ना खरीदे जाने पर सवाल किया गया था। सरकार के द्वारा बताया गया कि इस मशीन की खरीदी के लिए तीन बार निविदाएं निकाली जा चुकी हैं लेकिन तकनीकी कर्म के चलते यह निविदाएं निरस्त हो गई हैं। हाई कोर्ट ने जब निविदाओं के निरस्त होने का सही कारण पूछा तो शासकीय अधिवक्ता कोई भी जवाब ना दे नहीं दे पाए।
यह भी पढ़ें... MP वालों को दे रहे महंगी, लेकिन दूसरे राज्यों को कम रेट में बेच रहे बिजली
मुख्य सचिव स्वास्थ्य विभाग को पेश होने का आदेश
हाई कोर्ट ने इसके बाद सख्त लहजा अपनाते हुए यह आदेश दिया कि स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव इस मामले की अगली सुनवाई में स्वयं हाई कोर्ट में पेश होंगे और वह जवाब देंगे कि आखिर यह निविदाएं क्यों निरस्त हो रही हैं और इतने साल बीत जाने के बाद भी अब तक कैंसर अस्पताल के इंस्ट्रूमेंट क्यों नहीं खरीदे जा सके है। इसके बाद शासकीय अधिवक्ता ने कोर्ट से निवेदन किया कि मशीनों की खरीद एमपी पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉरपोरेशन का काम इसलिए स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव को पेश रहने के आदेश से छूट दी जाए। लेकिन, हाई कोर्ट ने यह माना कि जब अन्य प्रदेशों और शहरों में इस तरह की मशीन पहले ही खरीदी गई है और संचालित हैं तो आखिर मध्य प्रदेश सरकार के सामने ऐसी क्या समस्या है जो यह मशीन खरीदी नहीं जा पा रही है। कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा कि अब एमपी पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉरपोरेशन के एमडी और स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव दोनों अगली सुनवाई में हाई कोर्ट में मौजूद रहेंगे। मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल को तय की गई है।
यह भी पढ़ें... Summer Special Train : गर्मियों की छुट्टियों में रेलवे का बड़ा एलान, तीन समर स्पेशल ट्रेनों की दी सौगात
निजी अस्पतालों का फायदा, मरीज हलाकान
State Cancer इंस्टिट्यूट मैं कैंसर के मरीजों के इस्तेमाल के लिए अन्य मशीनों के साथ मुख्यतः लीनियर एक्सीलेटर मशीन खरीदनी है। यह मिशन हाई रेडिएशन उत्पन्न करती है और उन्नत तकनीक की होने के कारण रेडिएशन के दौरान यह कैंसर से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को तो नष्ट करती है पर स्वस्थ कोशिकाओं पर इसका असर नहीं होता जिसके कारण इस इलाज के अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। सरकार की ओर से बताया जा रहा है कि इन मशीनों का निर्माण गिनी चुनी कंपनियां ही करती हैं। इस कारण इसे खरीदने में देरी हो रही है, लेकिन राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों के स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट कि यदि बात की जाए तो वहां पर यह मशीन कार्यरत है और भली भांति मरीजों का इलाज कर रही है।
जबलपुर में इस मशीन के ना होने का सीधा फायदा उन निजी अस्पतालों को मिल रहा है जो कैंसर की रेडिएशन थेरेपी के लिए मोटी रकम वसूलते हैं। अधिकारियों के सुस्त रवैये का सीधा असर उन मरीजों पर हो रहा है जो कैंसर का महंगा इलाज निजी अस्पतालों में करने में असक्षम है और जबलपुर में स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट खोलने की आस के साथ अब तक दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
यह भी पढ़ें... ग्वालियर हाईकोर्ट का अहम फैसला, पराई औरत से संबंध का आरोप पति के खिलाफ क्रूरता