मध्य प्रदेश सरकार फिर लेगी कर्ज, 5000 करोड़ का नया उधार, 29 हजार करोड़ चुकाएगी ब्याज

वित्त वर्ष 2025-26 में मप्र सरकार फिर से कर्ज लेगी। इस बार 5000 करोड़ का कर्ज 2 किश्तों में लिया जाएगा। राज्य पर पहले से है 4.21 लाख करोड़ का भार है।

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Rohit Sahu
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वित्तीय वर्ष 2024-25 की शुरुआत को अभी महज एक महीना ही हुआ है, और मोहन यादव सरकार ने एक बार फिर से कर्ज लेने की तैयारी कर ली है। जहां अप्रैल महीने में सरकार ने कोई ऋण नहीं उठाया, वहीं मई के पहले सप्ताह में ही 5 हजार करोड़ रुपए का कर्ज दो किश्तों में लिया जाएगा। यह ऋण भारतीय रिज़र्व बैंक से प्राप्त किया जाएगा, जिसकी प्रक्रिया 6 मई को पूरी होगी और राशि का भुगतान 7 मई को किया जाएगा।

4.21 लाख करोड़ पहुंचा राज्य पर कुल कर्ज

मध्य प्रदेश सरकार पर 31 मार्च 2025 की स्थिति में कुल कर्ज 4.21 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो चुका है। बीते वित्त वर्ष 2024-25 में सरकार ने कुल 57 हजार करोड़ रुपए का कर्ज उठाया था, जिससे प्रदेश पर कर्ज का आंकड़ा बढ़ गया। इस पूरे कर्ज पर सरकार को 29 हजार करोड़ का ब्याज इसी साल चुकाना है।

12, 12 और 14 साल की अवधि के लिए लिया जाएगा कर्ज

वित्त विभाग के अनुसार, यह नया कर्ज तीन अलग-अलग अवधि 12 वर्ष, 12 वर्ष और 14 वर्षों के लिए लिया जाएगा। इससे सरकार को भुगतान के लिए दीर्घकालिक योजना बनाने में सहूलियत होगी। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) के तीन प्रतिशत तक कर्ज लेने की सीमा में है। इसके अतिरिक्त 0.5 प्रतिशत कर्ज नगरीय विकास और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार के लिए भी लिया जा सकता है।

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FRBM एक्ट के दायरे में लिया गया अब तक का कर्ज

सरकार द्वारा अब तक लिया गया समस्त कर्ज राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम के अंतर्गत ही रहा है। नियमों के अनुसार कर्ज की सीमा तय की जाती है और उस पर निगरानी रखी जाती है। वर्ष 2025-26 में सरकार केवल ब्याज भुगतान में लगभग 29 हजार करोड़ रुपए व्यय करेगी। यह राशि किसी एक बड़ी विकास योजना से भी अधिक है और सरकार के बजट पर भारी दबाव बनाए रखेगी।

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कर्मचारियों को बढ़ा भत्ता 

सरकार ने हाल ही में राज्य कर्मचारियों को केंद्र के समान 55 प्रतिशत महंगाई भत्ता देने की घोषणा की है। यह निर्णय नौ साल बाद लिया गया है, लेकिन इससे राजकोषीय बोझ और अधिक बढ़ गया है। वित्त विशेषज्ञों के अनुसार, नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में कर्ज की ब्याज दर अपेक्षाकृत कम होती है। इसी कारण अधिकतर राज्य सरकारें शुरुआती तिमाही में ही उधारी की प्रक्रिया पूरी कर लेती हैं।

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