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कमलेश सारडा@नीमच
मध्य प्रदेश का नीमच इन दिनों शिक्षा व्यवस्था की असल तस्वीर पेश कर रहा है। यहां लाबखेड़ी गांव के सरकारी प्राथमिक स्कूल में सिर्फ एक छात्रा पढ़ती है। छात्रा का नाम तेजस्विनी है वह कक्षा तीन में है। स्कूल में इस एक छात्रा के लिए 2 टीचर हैं। स्कूल की व्यवस्था और दोनों टीचर की सैलरी, छात्रा की किताबों आदि का खर्च मिलाकर हर साल सरकार करीब 25 लाख रुपए खर्च कर रही है। जी हां, खर्च कम नहीं – बल्कि इतना है कि हाई-क्लास प्राइवेट स्कूल को भी शर्म आ जाए।
टीचर्स डबल, स्टूडेंट सिंगल, सरकार का खर्च 10 गुना
इस स्कूल में दो शिक्षक हैं। दोनों फुल टाइम पर हैं, इन्हें पूरी तनख्वाह मिलती है। दोनों की सैलरी पर 2 लाख महीने खर्च हो रहे हैं। इनका काम एक ही छात्रा को पढ़ाना है। बाकी का बजट स्कूल के मेंटेनेंस, बिजली, पानी, स्टेशनरी और मिड डे मील में जाता है। बीते साल तीन छात्र थे, और तीन शिक्षक थे।
स्कूल बंद नहीं करना चाहते जिम्मेदा, सुधार की जरूरत
पूर्व सरपंच भोन सिंह चौहान का कहना है कि स्कूल बंद करना हल नहीं है, लोगों को समझाना और बच्चों को स्कूल तक लाना ही बढ़ा सवाल है। स्कूल के शिक्षक धर्मेंद्र सिंह की दलील और भी खास है। अभिभावक बच्चों को प्राइवेट स्कूल भेजते हैं, CM Rise स्कूल ज्यादा पसंद किए जाते हैं। सरकारी के नियम के चलते 6 साल से छोटे बच्चे को एडमिशन नहीं दिया जाता ऐसे में बच्चे प्राइवेट स्कूल चले जाते हैं।
नीमच में ऐसे 30 स्कूल और, जहां छात्र ढूंढे नहीं मिलते
गुलाबखेड़ी की हालत कोई इकलौती नहीं, यह तो केवल उदाहरण है। नीमच जिले में ऐसे 25 से 30 स्कूल हैं जहां छात्र 10 से कम हैं।
537 प्राइमरी स्कूलों में लगभग 48,757 छात्र और 1029 शिक्षक कार्यरत हैं। कुछ स्कूलों में शिक्षक ज्यादा और छात्र न के बराबर हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी बोले ऐसे 3 से 4 दर्जन स्कूल
जिला शिक्षा अधिकारी एस.एम. मांगरिया का कहना है कि जिले में ऐसे 3-4 दर्जन स्कूल हैं जहां बच्चे कम हैं। एडमिशन अभी प्रोसेस में हैं। स्कूलों को बंद करने या दूसरे स्कूलों में मर्ज करने का अभी तक हमारे पास कोई आदेश नहीं आया है। हमारा लक्ष्य फिलहाल स्कूलों में नामांकन की संख्या बढ़ाना है। वहीं सैलरी को लेकर उन्होंने कहा ये संवर्ग के हिसाब से 38 हजार से 1 लाख तक हो सकता है।
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पास का सरकारी स्कूल बना रोल मॉडल
गुलाबखेड़ी से सिर्फ एक किलोमीटर दूर मुंडला गांव का सरकारी स्कूल बेंचमार्क बन चुका है। यहां 110 छात्र पढ़ते हैं, कक्षा 1 से 8 तक, और शिक्षा का स्तर सराहनीय है। बच्चे अंग्रेज़ी की किताबें पढ़ते हैं, पढ़ाई का माहौल शानदार है। अब सवाल – अगर मुंडला में सरकारी स्कूल सफल है, तो गुलाबखेड़ी क्यों नहीं? क्या वजह है कि गांव के ही बच्चे दूसरे स्कूल जा रहे हैं? या शिक्षक के भरोसे स्कूल चलाना, अब बस वेतन पाने की सुविधा बन गया है?ॉ
सरकार पर पहले से कर्ज, ऐसे मामलों में जवाबदेही की कमी
एक ओर प्रदेश सरकार पर लाखों करोड़ का कर्ज है, वहीं दूसरी ओर इस तरह के स्कूल सरकारी खजाने पर भारी बोझ बन रहे हैं। यह मामला केवल एक स्कूल का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम में कहीं न कहीं मौजूद जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। जरूरत इस बात की है कि शिक्षा पर खर्च होने वाले हर रुपये का सही उपयोग हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि अधिक से अधिक छात्र इससे लाभान्वित हों, न कि यह केवल कुछ कर्मचारियों के वेतन का जरिया बनकर रह जाए।
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