BHOPAL. हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिए... जिंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए... एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जाएंगे... धीरे-धीरे ही सही, राह पे चलते रहिए... मशहूर कवि कुंवर बेचैन की ये पंक्तियां निराशा के भंवर से निकलने की राह दिखाती हैं... निराशा के ऐसे ही भंवर में फंसे मध्यप्रदेश के हजारों अतिथि विद्वानों को एक बड़ी राहत मिली है... लंबे समय से नियमित करने समेत बाकी मांगों को लेकर आंदोलन, प्रदर्शन, आवेदन और निवेदन कर रहे अतिथि विद्वानों की पीड़ा अब राष्ट्रपति तक पहुंच चुकी है... स्थानीय जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, पीसीसी अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक अपनी समस्याएं पहुंचाने के बाद भी जब अतिथि विद्वानों की कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी... जिस पर राष्ट्रपति भवन ने संज्ञान लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव को जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
लगातार दर्द और तकलीफें झेल रहे अतिथि विद्वान लगातार प्रयास करते रहे और आखिरकार वो अपनी समस्या राष्ट्रपति तक पहुंचाने में कामयाब रहे... अब ये देखना होगा कि प्रदेश सरकार राष्ट्रपति भवन से मिले निर्देशों पर क्या रुख अपनाती है।
सरकार की अनेदखी का खामियाजा भुगत रहे अतिथि विद्वान
मध्यप्रदेश में ऐसे 4 हजार से ज्यादा अतिथि विद्वान हैं जो बेवजह सरकार की अनेदखी का खामियाजा भुगत रहे हैं। ये अतिथि विद्वान बीते 20-25 सालों से सरकारी कॉलेजों में सेवाएं दे रहे हैं। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि सरकार चुनाव के वक्त बड़े-बड़े वादे तो कर देती है लेकिन उन पर अमल नहीं करती। अतिथि विद्वान लंबे समय से नियमितिकरण की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार है कि गूंगी बहरी बनी हुई है।
राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर बताईं समस्याएं
बार-बार आवेदन निवेदन आंदोलन और प्रदर्शन कर-करके थक-हार चुके अतिथि विद्वानों को जब कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने सीधे राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर अपनी समस्याएं बताईं, जिस पर राष्ट्रपति भवन ने संज्ञान लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव को जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। राष्ट्रपति सचिवालय के अवर सचिव पीसी मीणा ने अतिथि विद्वानों की चिट्ठी का जवाब दिया है। यानी अब गेंद मोहन सरकार के पाले में आ चुकी है और सरकार को जल्द से जल्द अतिथि विद्वानों को लेकर कोई न कोई फैसला लेना होगा।
कमलनाथ सरकार में खुद शिवराज और मोहन ने किया था समर्थन
अब आपको कुछ देर के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कार्यकाल में लेकर चलते हैं। जब विपक्ष में रहते हुए बीजेपी के दिग्गज नेता शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि विद्वानों के समर्थन में कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जरा इन सोशल मीडिया पोस्ट्स पर नजर दौड़ाइए, जिसमें MP मांगे जवाब हैशटैग के साथ शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि विद्वानों की मांगें उठाई थीं, जब एक बार फिर बीजेपी सत्ता में आई और शिवराज सिंह चौहान सूबे के मुखिया बने तो सितंबर 2023 में भरे मंच से उन्होंने अतिथि विद्वानों को नियमित करने समेत उनके लिए कई बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं और बाकायदा कैबिनेट मीटिंग में बैठक कर आदेश भी जारी किए जा चुके थे।
अतिथि विद्वानों की जिस महापंचायत में शिवराज ने बड़ी-बड़ी घोषणाएं की थीं, उसी महापंचायत में उच्च शिक्षा मंत्री रहते डॉ. मोहन यादव ने शिवराज की तमाम घोषणाओं का मुस्कुराते हुए समर्थन किया था और अतिथि विद्वानों को उनका हक दिलाने की पैरवी की थी। इसी बीच विधानसभा चुनाव आ गए और एक बार फिर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बन गई, लेकिन शिवराज मुख्यमंत्री नहीं बने। सूबे की कमान डॉ. मोहन यादव को सौंप दी गई और अतिथि विद्वानों के लिए की गईं शिवराज की तमाम घोषणाएं धरी की धरी रह गईं और अतिथि विद्वानों का हक आज नहीं मिल पाया, जिसे लेकर अतिथि विद्वान बेहद निराश, हताश और परेशान हैं।
आखिर कहां फंस रहा पेंच, क्यों नियमित नहीं हो पा रहे अतिथि विद्वान
अब आपको बताते हैं कि आखिर पेंच कहां फंस रहा है? दरअसल, मध्यप्रदेश के 4000 से ज्यादा अतिथि विद्वानों बीते करीब 20-25 साल से 570 सरकारी कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं, उनकी सबसे बड़ी पीड़ा ये है कि सरकार के बड़े-बड़े वादों और आश्वासनों के बावजूद उन्हें नियमित नहीं किया जा रहा है... और तो और उनकी सेवाएं हर साल ली जाती हैं और हर साल कॉलेजों में पढ़ाने के लिए अपनी योग्यता को साबित करनी पड़ती है। कई आंदोलन और प्रदर्शन के बाद सरकार ने उन्हें उम्र सीमा में छूट तो दे दी है लेकिन परीक्षा की बाध्यता का पेंच फंसा दिया है, जबकि पुलिस आरक्षक भर्ती में होमगार्ड जवानों को भी ग्रेस मार्क्स मिलते हैं लेकिन अतिथि विद्वानों का 20 साल का अनुभव सरकार के लिए कोई मायने रखता... वहीं, अब उनके सामने खुद से 15-20 साल कम उम्र के युवाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने की भी चुनौती है।
सरकार के साथ ही MPPSC के फैसलों से भी खासी निराशा
इधर, अतिथि विद्वान सरकार के साथ ही MPPSC के फैसलों को लेकर भी खासे निराश हैं। उनका कहना है वो दो दशक से ज्यादा वक्त से कम वेतन और कम सुविधाओं में कॉलेजों में सेवाएं दे रहे हैं और पीएचडी से लेकर हर तरह की अनिवार्य योग्यता उनके पास है। 1991 से 2017 तक यानी 26 साल से MPPSC ने प्रोफेसर भर्ती नहीं कराई और हैरानी की बात ये है कि सरकार ने भी इतने वक्त तक कोई ध्यान नहीं दिया। जिसकी वजह से हजारों योग्य उम्मीदवार इंतजार ही करते रह गए। अब जाकर MPPSC ने पहल की है, पहले निर्धारित उम्र सीमा से ज्यादा उम्र होने की वजह से उम्मीदवार परीक्षा में नहीं बैठ पा रहे थे और अब जब सरकार ने उम्र सीमा में 10 साल की रियायत दे दी है तो बदला हुआ पैटर्न और खुद से आधी उम्र के युवाओं के साथ प्रतिस्पर्धा की चुनौती आड़े आ रही है।
अब सिर्फ राष्ट्रपति से ही उम्मीदें
दूसरी तरफ MPPSC उनके 20-25 साल के पढ़ाने के अनुभव को नहीं मान रही है। ऐसे में अतिथि विद्वानों के पढ़ाने के अनुभव का क्या होगा। बहरहाल, बिना किसी गलती के सजा भुगत रहे अतिथि विद्वानों को अब सिर्फ राष्ट्रपति से ही उम्मीदें रह गई हैं और उनकी चिट्ठी के जवाब में राष्ट्रपति सचिवालय से मिले जवाब के बाद अतिथि विद्वानों में नई ऊर्जा फूट पड़ी है। अब वो आशाभरी निगाहों से इंतजार कर रहे हैं कि मोहन सरकार कोई न कोई ठोस कदम जरूर उठाएगी।
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