मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ( ASHA Worker ) की बर्खास्तगी खारिज की है। आशा कार्यकर्ता को अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को उन क्षेत्रों में प्राथमिकता देने वाली राज्य नीति के कारण बर्खास्त कर दिया था, जहां उनकी आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा थी।
शैक्षणिक योग्यता के कारण इस नीति का आवेदन गलत
कोर्ट का मानना है कि इस मामले में उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता के कारण इस नीति का आवेदन गलत था। जस्टिस विवेक जैन की एकल पीठ ने बर्खास्तगी को अनुचित माना और कहा कि आशा कार्यकर्ता के क्वालिफिकेशन 10वीं पास है। ऐसे कैंडिडेट की अनुपस्थिति में 10वीं पास उम्मीदवार पर केवल विशेष परिस्थितियों में ही विचार किया जा सकता है। याचिकाकर्ता 12वीं पास होने के कारण एकमात्र एसटी उम्मीदवार, जो 8 वीं पास है उससे योग्य है।
न्यायालय ने कहा
यह कानून में तय है कि प्रथमिकता केवल तभी दी जा सकती है, जब अन्य चीजें समान हों। एक बार जब न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता 10वीं पास थी तो प्रथमिकता केवल तभी संचालित की जा सकती थी, जब एसटी श्रेणी का उम्मीदवार भी कम से कम 10वीं पास हो। न्यायालय ने सचिव, ए.पी. लोक सेवा आयोग बनाम वाई.वी.वी.आर. श्रीनिवासुलु, (2003) जैसे सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों का हवाला दिया, जहां यह माना गया कि प्रथमिकता शब्द का अर्थ चयन का स्वतः अधिकार नहीं है। प्रथमिकता केवल तभी लागू होती है जब उम्मीदवार समान रूप से योग्य हों। इसे आरक्षण के नियम या अधिभावी कारक के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।
क्या है पूरा मामला
याचिकाकर्ता ( फूलवती प्रजापति ) की आशा कार्यकर्ता के रूप में नियुक्ति को 1 जुलाई को समाप्त कर दिया। यह समाप्ति सीधी के मुख्य मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देश के अनुरूप थी, जो 21 जून 2024 के पत्र पर आधारित थी। पत्र में आदेश दिया गया कि गांव में एसटी आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है, इसलिए उस समुदाय के उम्मीदवार को प्रथमिकता दी जानी चाहिए, जिसके कारण याचिकाकर्ता को बर्खास्त कर दिया गया, जबकि 24 मार्च 2023 के आदेश के अनुसार उसकी नियुक्ति शुरू में वैध थी। याचिकाकर्ता ( फूलवती प्रजापति ) ने नौकरी से हटाए जाने पर समाप्ति को चुनौती देते हुए कहा कि दिया कि उसे सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया। सुनवाई के बिना बर्खास्त कर दिया गया। उसे नियुक्त उसकी योग्यता के आधार पर किया था। उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिकॉर्ड नहीं था। उसकी समाप्ति मनमाने तरीके से गई है क्योंकि इसमें उसकी योग्यता पर विचार नहीं किया। नियुक्ति गांव की जनसंख्या के आंकड़ों पर थी।
राज्य सरकार का यह तर्क
वहीं राज्य ने तर्क दिया कि बर्खास्तगी उनकी नीति के अनुसार ही हुई है। जिसके अनुसार अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति समुदाय के उम्मीदवारों को उन गांवों में प्रथमिकता दी जानी चाहिए, जहां उनकी आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है। विचाराधीन गांव में अनुसूचित जनजाति की आबादी 246 थी, जबकि याचिकाकर्ता जिस अनुसूचित जाति से संबंधित थी, उसकी आबादी 29 प्रतिशत ही थी। राज्य ने तर्क देते हुए कहा कि इस जनसंख्या गतिशीलता के कारण उसकी बर्खास्तगी सही थी, क्योंकि उसकी नियुक्ति 2 अगस्त 2022 के परिपत्र के खंड-9 का उल्लंघन करती है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि न्यूनतम योग्यता रखने वाला कोई भी उम्मीदवार अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित विचार के दायरे में नहीं था, इसलिए प्रतिवादियों ने 21 जून 2024 के आदेश द्वारा प्रथमिकता को गलत तरीके से संचालित किया और 01 जुलाई 2024 के परिणामी आदेश द्वारा याचिकाकर्ता की सेवाओं को समाप्त कर दिया गया।
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