जज साहब ने बिना लिखित आदेश आरोपी को किया बरी, फिर हाईकोर्ट ने लगा दी क्लास

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बिना लिखित आदेश आरोपियों को बरी करने पर एक सिविल जज की बर्खास्तगी को उचित ठहराया, इसे न्यायिक गरिमा का घोर उल्लंघन बताया।

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Neel Tiwari
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 MP News: न्यायपालिका की गरिमा और जवाबदेही को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा है कि बिना लिखित आदेश के आरोपी को बरी करना न्याय नहीं, न्याय का मखौल है। यह टिप्पणी हाईकोर्ट ने उस सिविल जज की याचिका को खारिज करते हुए की, जिन्हें बिना निर्णय दर्ज किए आरोपियों को बरी करने के गंभीर आरोपों के चलते सेवा से बर्खास्त किया गया था।

बिना आदेश पारित किए बरी करना गंभीर चूक

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विनय जैन की खंडपीठ ने पूर्व सिविल जज महेंद्र सिंह ताराम द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि वे सीरियस प्रोफेशनल मिसकंडक्ट यानी अनैतिक व्यवहार के दोषी हैं। न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत रिकॉर्ड के अनुसार, विजिलेंस निरीक्षण के दौरान यह उजागर हुआ कि साल 2012 में उन्होंने तीन आपराधिक मामलों में बिना कोई अंतिम आदेश लिखे आरोपियों को बरी कर दिया, और दो मामलों में बिना आदेश ही कार्यवाही स्थगित कर दी थी।

न्यायिक उत्तरदायित्व से किया गया खिलवाड़

खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि कोई भी न्यायिक अधिकारी केवल व्यक्तिगत परिस्थितियों या काम के बोझ के आधार पर अपने संवैधानिक दायित्वों से मुंह नहीं मोड़ सकता। यह न सिर्फ न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को डगमगाता है, बल्कि आरोपी, वादी और समाज – सभी के लिए अन्यायपूर्ण स्थिति पैदा करता है।

हाईकोर्ट ने कहा– बर्खास्तगी का निर्णय पूरी तरह सही

जज महेंद्र सिंह ताराम ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि वे उस समय निजी समस्याओं से जूझ रहे थे और मानसिक दबाव के कारण उनसे गलतियां हुईं। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ अन्य जजों को केवल वेतनवृद्धि रोकने की सजा दी गई, जबकि उन्हें सीधा नौकरी से निकाल दिया गया। लेकिन हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा यह कोई सामान्य लापरवाही नहीं, बल्कि न्यायिक दायित्व की खुली उपेक्षा है। नौकरी से निकालने का निर्णय सही है।

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न्यायपालिका की गरिमा सर्वोपरि: हाईकोर्ट

यह मामला न केवल एक न्यायिक अधिकारी की चूक का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका अपने आंतरिक आचरण और जवाबदेही को लेकर कितनी गंभीर है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि जज होना केवल अधिकार नहीं, अपार जिम्मेदारी भी है और उसमें ज़रा सी भी लापरवाही पूरे सिस्टम पर प्रश्नचिह्न लगा सकती है।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायिक प्रशासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की मिसाल पेश करता है। यह संदेश स्पष्ट है – न्यायिक प्रक्रिया में लापरवाही की कोई जगह नहीं है, चाहे वह किसी भी स्तर का अधिकारी क्यों न हो।

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