मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या के दोषी की फांसी की सजा को बदलकर उम्रकैद कर दिया है। आरोपी नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी पाया गया था। 25 जून को एमपी हाईकोर्ट ने अहम फैसले में उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस दीपनारायण मिश्रा की दो जजों की बेंच ने कहा कि दोषी की उम्र मात्र 24 साल है, उसका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। जेल में उसका व्यवहार भी अनुशासित रहा है। अदालत ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए यह भी स्पष्ट किया कि सभी सबूतों से आरोपी दोषी साबित होता है।
क्या है मामला
पीड़िता अपनी दादी के साथ गांव लौट रही थी, जब एक रिश्तेदार ने उसे साइकिल से घर छोड़ने की बात कही। बाद में बच्ची लापता हो गई और उसका शव जंगल में मिला। घटनास्थल से आरोपी के घर तक डॉग स्क्वायड द्वारा गंध का पीछा किया गया, डीएनए साक्ष्य जुटाए और दादी ने आरोपी को आखिरी बार बच्ची के साथ देखा था। इन सभी सबूतों के आधार पर दोषी के खिलाफ अपराध साबित हुआ। इसी आधार पर निचली अदालत ने उसे फांसी की सजा दी थी।
दोषी के वकील का तर्क
दोषी की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि डीएनए रिपोर्ट तैयार करने वाले अधिकारी की गवाही नहीं हुई, जिससे उसकी वैधता पर सवाल उठते हैं। साथ ही, यह भी कहा गया कि दोषी सामाजिक रूप से वंचित वर्ग से आता है और सुधार की संभावना है। वहीं, सरकारी पक्ष ने तर्क दिया कि पीड़िता की दादी की गवाही, डॉग स्क्वायड की रिपोर्ट और डीएनए टेस्ट सभी ने एक समान कहानी बताई है, जिससे आरोपी की भूमिका पूरी तरह स्पष्ट होती है।
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कोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदला
कोर्ट ने इन सब तथ्यों पर विचार करते हुए कहा कि फांसी की सजा केवल उन्हीं मामलों में दी जानी चाहिए, जो ‘दुर्लभतम’ श्रेणी में आते हैं। चूंकि इस मामले में दोषी की उम्र कम है, और वह पहले किसी अपराध में दोषी नहीं ठहराया गया है, साथ ही जेल में उसका व्यवहार भी ठीक रहा है, इसलिए उसे प्राकृतिक जीवनकाल तक जेल में रखने यानी उम्रकैद की सजा दी जाती है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दोषी को कम से कम 25 साल से पहले रिहा नहीं किया जाएगा।
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हाईकोर्ट ने निरस्त की फांसी की सजा | MP High Court