ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों के मुआवजा विवाद पर हाईकोर्ट सख्त, ACS राजेश राजौरा को नोटिस

हाईकोर्ट ने ओंकारेश्वर बांध प्रभावित किसानों के बच्चों को मुआवजा न देने को लेकर एक याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले में एसीएस राजेश राजौरा से जवाब मांगा है।

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Rohit Sahu
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ओंकारेश्वर डैम की वजह से विस्थापित किसानों के परिवारों को लेकर एक बार फिर मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में पहुंचा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से दायर अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट ने ACS राजेश राजौरा को नोटिस जारी किया है। 

हाईकोर्ट ने एसीएस को क्यों भेजा नोटिस? 

इस केस की सुनवाई जस्टिस द्वारकाधीश बंसल की सिंगल बेंच ने की। याचिका में बताया गया कि 7 जून 2013 को राज्य सरकार ने ओंकारेश्वर बांध से प्रभावित किसानों और उनके परिवारों के लिए विशेष पुनर्वास पैकेज घोषित किया था। इसमें जिन किसानों के पास जमीन नहीं है उन्हें और उनके बच्चों को ढाई लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश था। इस आदेश का पालन नहीं होने पर कोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव को नोटिस दिया।

सरकारी आदेश के बाद भी नहीं मिला लाभ

नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से दायर याचिका में आरोप है कि बार-बार मांग के बावजूद अब तक कई प्रभावित परिवारों के बच्चों को यह लाभ नहीं मिला। इसके चलते आंदोलनकारियों ने न्याय की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

ऐसे समझिए पूरी खबर

  • 7 जून 2013 के सरकारी आदेश के अनुसार बच्चों को ₹2.5 लाख मुआवजा मिलना था।
  • अब तक लाभ नहीं मिलने पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई।
  • 29 जुलाई 2024 को कोर्ट ने 8 हफ्तों में निर्णय लेने को कहा था।
  • आदेश लागू न होने पर अवमानना याचिका दाखिल की गई।
  • कोर्ट ने एसीएस राजेश राजौरा को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।

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हाईकोर्ट का पुराना आदेश भी नहीं हुआ लागू

29 जुलाई 2024 को हाईकोर्ट ने इस विषय में आदेश दिया था कि अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, आंदोलनकारियों द्वारा सौंपे गए ज्ञापन पर 8 हफ्तों के भीतर निर्णय लें। लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे नाराज होकर अब अवमानना याचिका दायर की गई है।

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अब हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा सवाल

नर्मदा आंदोलन की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट ने पूछा है कि जब आदेश पहले ही दिया जा चुका था, तो निर्धारित समय सीमा में निर्णय क्यों नहीं लिया गया? इस मामले में अब राज्य सरकार को लिखित जवाब देना होगा।

अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि राज्य सरकार और नर्मदा घाटी विकास विभाग अदालत के निर्देशों का पालन कब और कैसे करेंगे। इस मुद्दे पर सरकारी चुप्पी और टालमटोल की नीति को लेकर प्रभावित परिवारों में रोष है। 

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