चीफ जस्टिस के बंगले में नहीं था मंदिर, रजिस्ट्रार जनरल ने बताई स्थिति

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने एक पत्र जारी किया। इस पत्र में उन्होंने मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत के बंगले में मंदिर तोड़े जाने के आरोपों का खंडन किया। ये आरोप उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने लगाए थे।

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Neel Tiwari
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MP Jabalpur Chief Justice Suresh Kumar Kait Bunglow Temple

MP Jabalpur Chief Justice Suresh Kumar Kait Bunglow Temple Photograph: (the sootr)

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार के रविंद्र नाथ त्रिपाठी के द्वारा की गई शिकायत के बाद हाई कोर्ट बार काउंसिल ने भी शिकायत का समर्थन किया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस से शिकायत करते हुए यह आरोप लगाए गए थे कि चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत के बंगले में मंदिर को तुड़वाया गया है। इस शिकायत में यह आरोप था  कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत के बंगले से भगवान हनुमान का मंदिर हटाया गया है। इस शिकायत की प्रति मीडिया को उपलब्ध कराए जाने के बाद इससे जुड़ी खबरें प्रकाशित हुई थी। हाईकोर्ट बार कौंसिल अध्यक्ष डी के जैन ने भी इस शिकायत की पुष्टि की थी। लेकिन हाइकोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए इन दावों को झूठा, भ्रामक और पूरी तरह निराधार बताया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि ये खबरें जनता को गुमराह करने और न्यायिक प्रणाली की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने का प्रयास हैं।

निवास पर कभी नहीं था कोई मंदिर : पीडब्ल्यूडी

हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल धरमिंदर सिंह द्वारा जारी आधिकारिक बयान में कहा गया कि इस मामले पर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने भी जांच और पुष्टि की है। पीडब्ल्यूडी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत के बंगले पर कभी भी भगवान हनुमान का मंदिर स्थापित नहीं था। मंदिर हटाने के झूठे आरोपों के पीछे कोई तथ्य नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी खबरें मीडिया के कुछ वर्ग द्वारा सिर्फ न्यायपालिका को बदनाम करने के उद्देश्य से बनाई गई हैं।

Temple case
Temple case Photograph: (the sootr)

 

न्यायपालिका को बदनाम करने का सुनियोजित प्रयास

रजिस्ट्रार जनरल के बयान में यह भी कहा गया है कि इन निराधार आरोपों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा पर हमला किया गया है। ऐसी झूठी खबरें न केवल जनता को गुमराह करती हैं बल्कि यह न्यायपालिका को गलत रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है। इस प्रकार के कृत्य न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता और सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करने का षड्यंत्र प्रतीत होते हैं।

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न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप और अवमानना

उच्च न्यायालय ने इस बात पर विशेष ध्यान दिलाया कि ऐसी भ्रामक खबरें न्याय प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप के समान हैं। इसे न्यायालय की अवमानना के रूप में देखा जा सकता है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और पवित्रता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

मीडिया और जनता से जिम्मेदारीपूर्वक आचरण की अपील

न्यायालय ने मीडिया संगठनों और आम जनता से अपील की है कि वे ऐसी अपमानजनक और असत्यापित जानकारी को फैलाने से बचें। रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता को बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। इस जवाब से न्यायालय ने मीडिया से आग्रह किया कि किसी भी समाचार को प्रकाशित करने से पहले उसकी सत्यता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित किया जाए।

ऐसे शुरू हुआ था पूरा मामला

दरअसल मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के रवींद्रनाथ त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस सहित प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को एक शिकायती पत्र भेजा था। 23 दिसंबर को भेजे गए इस पत्र की प्रतियों के सहित जानकारी मीडिया को 27 जनवरी को मिली। शिकायती पत्र में चीफ जस्टिस के बंगले में स्थित हनुमान मंदिर को तोड़ने का आरोप लगाया गया था और हाई लेवल जांच कमेटी शेष मामले की जांच करने की मांग की गई थी। इसके बाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की पुष्टि के बाद इससे जुड़ी हुई खबरें प्रकाशित हुई थी। इसके बाद हाई कोर्ट रजिस्ट्रार जनरल के द्वारा इन सभी आरोपों को निराधार बताते हुए इनका खंडन किया गया है।

खंडन के साथ ही रजिस्ट्रार जनरल ने दिया कड़ा संदेश

इस खंडन के माध्यम से रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय ने यह साफ संदेश दिया है कि वह अपनी स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने यह कहा कि इस तरह की रिपोर्ट्स का उद्देश्य केवल न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को धूमिल करना है। रजिस्ट्रार जनरल ने स्पष्ट किया कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों के लिए प्रतिबद्ध है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल ने झूठे आरोपों का खंडन करते हुए मीडिया संगठन और आम जनता से यह आग्रह किया है कि ऐसी अपमानजनक और असत्यापित जानकारी को प्रसारित करने से बचें।

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