JABALPUR. जबलपुर में नौवीं कक्षा की एक छात्रा ने केवल इस बात पर आत्महत्या कर ली कि उसे उसकी मां ने मोबाइल पर गेम खेलने से मना कर दिया था। मोबाइल न मिलने से व्यथित होकर 14 साल की आरुषी ने फांसी पर लटक कर जान दे दी।
मोबाइल चलाने के लिए मना करने पर उठाया कदम
मेडिकल अस्पताल में स्टाफ नर्स के पद पर पदस्थ सुनंदा सिंह की नाइट ड्यूटी चल रही है। बुधवार की रात ड्यूटी के लिए घर से निकल रही सुनंदा ने देखा कि 14 साल की बेटी आरुषि मोबाइल पर गेम खेल रही थी जिसके बाद मां ने बच्ची को गेम खेलने से मना किया और मोबाइल को लॉक कर दिया। इसके बाद सुनंदा अपनी ड्यूटी पर चली गई पर सुनंदा को भी बात का अंदाजा नहीं था कि इससे उसकी बेटी इतनी दुखी हो जाएगी की वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेगी। गुरुवार को सुबह 10 बजे ड्यूटी खत्म होने के बाद माँ जब घर लौटी तो उसने देखा कि नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली आरुषि फांसी के फंदे पर झूल रही थी। मां सुनंदा के चीखने चिल्लाने और रोने की आवाज सुनकर आसपास उसके लोग वहां पर आए पर जांचने पर पता चला कि आरुषि की मौत हो चुकी है।
मां और बेटी ही थी एक दूसरे का सहारा
मां सुनंदा और बेटी आरुषि एक दूसरे का सहारा थी, पिता ने सालों पहले साथ छोड़ दिया था। सुनंदा सिंह के पति की मौत कोरोना के दौरान हो गई थी, जिसके बाद आरुषि ही अपनी मां का इकलौता सहारा थी। सुनंदा को अब भी विश्वास नहीं हो पा रहा कि मोबाइल ना खेलने देने की इतनी छोटी सी बात ने उसका सारा संसार उजाड़ दिया है।
बच्चे की दिनचर्या में इन लक्षणों पर हो जाना चाहिए सचेत
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किशोरों के द्वारा उठाए जा रहे आत्मघाती कदमों के पीछे अवसाद जैसे कारण होते हैं।
अभिभावकों को यह जानना ज़रूरी है कि क्या कोई कारण आपके बच्चे में आत्महत्या के प्रयास की संभावना को बढ़ा सकता हैं। इसके लिए अभिभावकों को अपने बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान रखते हुए इन लक्षणों पर भी नजर रखनी जरूरी है।
* बार-बार उदासी, आंसू आना, रोना
* निराशा
* गतिविधियों में रुचि में कमी या पहले से पसंदीदा गतिविधियों का आनंद लेने में असमर्थता
* लगातार बोरियत या कम ऊर्जा
* दोस्तों या परिवार से दूरी
* कम आत्मसम्मान और अपराधबोध
* चिड़चिड़ापन, क्रोध या शत्रुता में वृद्धि
* रिश्तों में परेशानी
* सिरदर्द या पेट दर्द जैसी शारीरिक बीमारियों की लगातार शिकायतें
* स्कूल से बार-बार अनुपस्थित रहना या स्कूल में खराब प्रदर्शन
* कमजोर एकाग्रता
* खाने या सोने के पैटर्न में बड़ा बदलाव
* घर से भागने की बात या प्रयास
* चिंता
यदि किसी बच्चे में इस तरह के लक्षण दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक लगभग हर दिन बने रहते हैं, तो इसका मूल्यांकन किया जाना जरूरी है, और इसके बाद माता-पिता को मनोवैज्ञानिक की सहायता भी लेनी चाहिए।
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