JABALPUR. गरीब और बेसहारा लोगों को आश्रय देने के लिए बनाए गए सरकारी रैन बसेरा अब संचालन एजेंसियों के लिए पार्टी का ठिकाना बने हुए हैं। जबलपुर नगर निगम की टीम के औचक निरीक्षण में रैन बसेरा का संचालक ही पार्टी के लिए मटन पकाते हुए पकड़ा गया। यह निरीक्षण गोकुलदास धर्मशाला स्थित रैन बसेरे में किया गया, इस दौरान यह चौंकाने वाला नजारा देखने को मिला। अब गरीबों और बेघर लोगों के लिए बनाए गए रैन बसेरों में इस तरह की गतिविधियों ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
रैन बसेरे में खुलेआम हो रही थी मटन पार्टी
दरअसल, जबलपुर नगर निगम की टीम शहर के रैन बसेरों का औचक निरीक्षण करने के लिए निकली थी। गोकुलदास धर्मशाला स्थित रैन बसेरे पहुंचे नगर निगम के अधिकारियों ने पाया कि रैन बसेरे के बाहर खुले में मटन पकाया जा रहा था। यह मटन पार्टी रैन बसेरे का संचालन करने वाली ठेका एजेंसी के कर्मचारियों द्वारा आयोजित की जा रही थी।
जानकारी के अनुसार यह लोग केवल मटन ही नहीं पका रहे थे बल्कि इन कर्मचारियों ने शराब भी पी रखी थी। इन एजेंसी के संचालकों ने सरकारी आश्रय स्थल को अपनी पार्टी करने की जगह बना दी है। इस घटना ने न केवल सरकारी योजनाओं के अंतर्गत चल रहे रैन बसेरों की पोल खोली है, बल्कि आश्रय स्थल की सुरक्षा और संचालन पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मुख्यमंत्री ने की थी इस मुद्दे पर बैठक
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में आयोजित कलेक्टर-कमिश्नर कॉन्फ्रेंस में सभी जिलों को निर्देश दिया था कि वे सरकारी रैन बसेरों का निरीक्षण कर वहां की व्यवस्थाओं को सुधारें। इसी निर्देश के तहत जबलपुर नगर निगम ने अपर आयुक्त अंकिता जैन के नेतृत्व में निरीक्षण अभियान शुरू किया। गोकुलदास धर्मशाला स्थित रैन बसेरे में सामने आई घटना ने इन आश्रय स्थलों में व्यवस्था की खामियों को उजागर किया है।
ठेका एजेंसी पर कार्रवाई का आदेश
घटना के बाद अपर आयुक्त अंकिता जैन ने रैन बसेरे का संचालन करने वाली ठेका एजेंसी को कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसके साथ ही, उन्होंने मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए हैं। अंकिता जैन ने कहा कि जांच पूरी होने के बाद दोषी एजेंसी पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इस कार्रवाई में ठेका रद्द करना और भविष्य में एजेंसी को सरकारी कार्यों से प्रतिबंधित करना भी शामिल हो सकता है। उन्होंने कहा, "सरकारी योजनाओं को इस तरह से मजाक नहीं बनने दिया जाएगा। जिम्मेदार लोगों पर सख्त कदम उठाए जाएंगे।"
सरकारी रैन बसेरों के बिगड़ रहे हालात
इस घटना की यह भी सामने आया है कि सरकारी रैन बसेरों का संचालन कितना अनियमित और लापरवाही भरा हो गया है। रैन बसेरों का उद्देश्य गरीब और बेसहारा लोगों को सुरक्षित आश्रय देना है, लेकिन कई जगहों पर ये रैन बसेरे असामाजिक गतिविधियों का केंद्र बनते जा रहे हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश के अन्य जिलों से भी ऐसी शिकायतें सामने आ चुकी हैं, जहां रैन बसेरों में सफाई की कमी, खराब खाने की व्यवस्था और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा देखा गया है।
पिछली घटनाओं से सबक लेने की जरूरत
यह पहली बार नहीं है जब रैन बसेरों में इस तरह की गतिविधियां उजागर हुई हैं। पिछले साल भोपाल और इंदौर के कुछ रैन बसेरों में असामाजिक गतिविधियों की शिकायतें आई थीं। वहां आश्रय लेने वाले लोगों ने आरोप लगाया था कि कर्मचारियों द्वारा उनसे दुर्व्यवहार किया जाता है। कहीं-कहीं रैन बसेरों में असुरक्षा का माहौल भी पाया गया, जहां महिलाएं और बच्चे सुरक्षित महसूस नहीं करते। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि ठेका एजेंसियों द्वारा रैन बसेरों के संचालन में भारी लापरवाही बरती जा रही है।
सिर्फ योजनाएं बनाना पर्याप्त नहीं
इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि केवल योजनाएं बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें सही तरीके से लागू करना और उनके संचालन की नियमित निगरानी करना भी उतना ही जरूरी है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद शुरू हुआ निरीक्षण अभियान प्रशासनिक तंत्र की गंभीरता को तो दिखाता है, लेकिन यह घटनाएं यह भी बताती हैं कि जमीनी स्तर पर जिम्मेदारी निभाने में भारी कमी है। ठेका एजेंसियों पर कड़ी निगरानी और जवाबदेही तय करना अब प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
रैन बसेरा संचालन के लिए सख्त नियम जरूरी
इस घटना के बाद यह जरूरी हो गया है कि सरकार रैन बसेरों के संचालन के लिए सख्त नियम बनाए। ठेका एजेंसियों के कर्मचारियों की पृष्ठभूमि की जांच, नियमित प्रशिक्षण, और सीसीटीवी कैमरों की निगरानी जैसी व्यवस्थाओं को लागू करना जरूरी है। इसके साथ ही, प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रैन बसेरों की नियमित जांच हो और जो एजेंसियां लापरवाह पाई जाएं, उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जाए।
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