एमपी पीएचई को 2800 करोड़ का झटका, 141 इंजीनियरों को नोटिस, मंत्री के जिलों के रेट हैरान कर देंगे आपको

जल जीवन मिशन के तहत पीएचई विभाग ने मोहन सरकार को 2800 करोड़ का नुकसान पहुंचाया है। मंत्री के जिलों में रेट में भारी बढ़ोतरी, 141 इंजीनियरों को नोटिस। जानिए पूरी कहानी।

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Harish Divekar
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जल जीवन मिशन के तहत पीएचई विभाग ने मध्य प्रदेश सरकार को 2800 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया है। इस मामले का खुलासा होने के बाद 141 इंजीनियरों को नोटिस जारी किया गया है।

इन इंजीनियरों ने सर्वे में छूटे हुए घरों में पानी पहुंचाने के नाम पर टेंडर की डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बदलकर उसकी लागत 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा दी थी। यह खेल विभाग के उच्च अधिकारियों और इंजीनियरों के आपसी तालमेल से हुआ था, इसलिए इसकी भनक किसी को नहीं लगी।

कलेक्टरों की शिकायत के बाद PS ने की थी जांच

गांवो में जल जीवन मिशन के तहत सर्वे नहीं होने की शिकायत जिलों के कलेक्टरों के माध्यम से पीएचई के प्रमुख सचिव पी नरहरि तक शिकायत पहुंची थी। इसके बाद पी नरहरि ने गांवों का सर्वे कर जमीनी हालात जाने तो पता चला कि प्रदेश के 8 लाख घरों का सर्वे ही नहीं हुआ है। जांच के बाद आईएएस पी नरहरि ने रिपोर्ट मुख्य सचिव अनुराग जैन को सौपी और मामला मुख्यमंत्री मोहन यादव तक पहुंच गया। 

मंत्री संपतिया उईके के जिले में तो 265 फीसदी रेट पहुंचे

मंत्री संपतिया उईके के गृह जिले मंडला में टेंडर के रेट 117 प्रतिशत तक बढ़ाए गए। वहीं उनके प्रभार वाले जिले सिंगरौली में यह बढ़ोतरी 265 प्रतिशत तक पहुंच गई।

इंजीनियरों की लापरवाही से प्रदेश के 8 लाख से ज्यादा घरों को पानी देने का सर्वे ही नहीं हो पाया। इस कारण मुख्य सचिव ने 2800 करोड़ की बढ़ी हुई लागत को मंजूरी देने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव भेजने को कहा है, और वहीं दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं।

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जल जीवन मिशन के घोटाले का खुलासा और कार्रवाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट जल जीवन मिशन के तहत इस घोटाले का खुलासा आए दिन जिलों से कलेक्टरों की आ रही शिकायतों के बाद हुआ कि उनके जिले कई गांवों में नल कनेक्शन हीं न​हीं लगे। मुख्य सचिव अनुराग जैन के निर्देश पर पीएचई के प्रमुख सचिव पी नरहरि ने इस मामले की जांच की। 

जिनके रिवाइज स्टीमेट, अब उनकी जांच

बता दें कि इंजीनियरों की लापरवाही से प्रदेश के 8 लाख से ज्यादा घरों को पानी देने का सर्वे ही नहीं हो पाया। इस कारण मुख्य सचिव ने 2800 करोड़ की बढ़ी हुई लागत को मंजूरी देने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव भेजने को कहा है, और वहीं दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। अब जिन  टेंडर की DPR (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) की रेट 30 प्रतिशत से ज्यादा हुई है, उनकी चांज की जाएगी।

जांच में पता चला कि प्रदेश में 8425 एकल ग्राम नल-जल योजनाओं के लिए कुल 6340 करोड़ रुपए के टेंडर मंजूर हुए थे, लेकिन कई गांवों में नल कनेक्शन नहीं पहुंचा।

इसके बाद, पानी देने के नाम पर इंजीनियरों से डीपीआर रिवाइज्ड करवाई गईंं। जिससे लागत 9165 करोड़ तक पहुंच गई। यानी कुल 2800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च हुआ।

केंद्र सरकार ने रिवाइज्ड डीपीआर के लिए फंड देने से मना कर दिया, जिससे राज्य सरकार को अतिरिक्त 2800 करोड़ रुपए का बोझ उठाना पड़ा। इसके बाद अधिकारियों पर कार्रवाई शुरू हुई और 141 इंजीनियरों को नोटिस भेजे गए हैं।

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2800 करोड़ का नुकसान: 
जल जीवन मिशन के तहत पीएचई विभाग ने डीपीआर में हेरफेर कर सरकार को 2800 करोड़ का नुकसान पहुंचाया।

141 इंजीनियरों को नोटिस:
मामले के उजागर होने पर 141 इंजीनियरों को नोटिस जारी किए गए, जिन्होंने टेंडर लागत 50-60% तक बढ़ाई थी।

मंत्री के जिलों में रेट में भारी बढ़ोतरी:
मंत्री के गृह जिले मंडला में 117% और प्रभार वाले सिंगरौली में 265% तक रेट बढ़ाए गए।

केंद्र ने फंड देने से किया इनकार:
केंद्र सरकार ने रिवाइज्ड डीपीआर के लिए फंड देने से मना कर दिया, जिससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ा।

फर्जीवाड़ा और जांच:
डीपीआर में बदलाव, पाइप खरीदी में गड़बड़ी और डिज़ाइन में फर्जीवाड़ा उजागर हुआ। अब उच्चस्तरीय जांच और कार्रवाई जारी है।

टेंडर मंजूर होने के बाद हुआ पूरा खेल

डीपीआर के बदलाव का खेल टेंडर मंजूर होने के बाद हुआ। हर निर्माण कार्य से पहले विस्तृत अनुमान (डीपीआर) तैयार किया जाता है, जिसे बाद में रिवाइज्ड करके लागत बढ़ाई जाती है। पीएचई विभाग में अधिकारियों ने इस प्रक्रिया में गड़बड़ी की, और डीपीआर को सही तरीके से मंजूरी नहीं दी। न ही सर्वे को ठीक से किया गया और न ही डिज़ाइन की त्रुटियों पर ध्यान दिया गया।

मजे की बात ये है कि कई जिलों में पुराने पाईप डले होने के बाद फर्जी तरीके से नए पाईप खरीदी के बिल भी ठेकेदारों ने लगाए। इस मामले में राज्य सरकार की ही सामग्री गुणवत्ता परीक्षण संस्था सीपैट ने पत्र लिखकर कहा है कि ठेकेदारों ने जिन कंपनियों के पाईप का परीक्षण संस्था से करवाया था उन कंपनियों से पाईप की खरीदी ही नहीं हुई। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर गांवों में घरों तक पानी पहुंचाने के लिए पाईप कहां से लिए गए। 

पर्दे के पीछे का खेल

सूत्रों के अनुसार, जल जीवन मिशन के तहत डिज़ाइन ईएनसी ऑफिस के एक सीनियर अधिकारी ने तैयार करवाई। इन डिज़ाइनों को गूगल अर्थ से कॉपी-पेस्ट किया गया और निचले अधिकारियों से हस्ताक्षर कराए गए। यही नहीं, अधिकारियों पर दबाव भी डाला गया। अगर इन अधिकारियों के ईमेल की जांच की जाए, तो कई राज सामने आ सकते हैं।

मंत्री संपतिया उइके पर लगे थे 1000 करोड़ कमीशन के आरोप

Sampatiya uikey case 1000 crore

FAQ

जल जीवन मिशन के तहत पीएचई विभाग ने 2800 करोड़ का नुकसान कैसे पहुंचाया?
पीएचई विभाग ने डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) में हेरफेर करके लागत को 50-60% तक बढ़ाया, जिससे सरकार को अतिरिक्त 2800 करोड़ का नुकसान हुआ।
कितने इंजीनियरों को नोटिस जारी किए गए?
141 इंजीनियरों को नोटिस जारी किए गए जिन्होंने टेंडर में लागत बढ़ाई थी और सर्वे में छूटे हुए घरों को शामिल करने के नाम पर डीपीआर को बदल दिया था।
मंत्री के जिलों में रेट में कितनी बढ़ोतरी हुई?
मंत्री के गृह जिले मंडला में 117% और उनके प्रभार वाले जिले सिंगरौली में यह बढ़ोतरी 265% तक पहुंच गई थी।
केंद्र सरकार ने रिवाइज्ड डीपीआर के लिए क्यों फंड देने से मना किया?
केंद्र सरकार ने यह कारण बताते हुए रिवाइज्ड डीपीआर के लिए फंड देने से मना किया कि इसमें कई खामियां थीं, जिससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त 2800 करोड़ का बोझ पड़ा।
डीपीआर में बदलाव और पाइप खरीदी में क्या गड़बड़ी थी?
डीपीआर में बदलाव से लागत बढ़ाई गई और ठेकेदारों ने फर्जी तरीके से पाइप खरीदी के बिल लगाए। सीपैट (सामग्री गुणवत्ता परीक्षण संस्था) ने पाया कि जिन कंपनियों से पाइप खरीदी जानी चाहिए थी, वे कंपनियां वास्तव में पाइप की आपूर्ति नहीं कर रही थीं।

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