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जल जीवन मिशन के तहत पीएचई विभाग ने मध्य प्रदेश सरकार को 2800 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया है। इस मामले का खुलासा होने के बाद 141 इंजीनियरों को नोटिस जारी किया गया है।
इन इंजीनियरों ने सर्वे में छूटे हुए घरों में पानी पहुंचाने के नाम पर टेंडर की डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बदलकर उसकी लागत 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा दी थी। यह खेल विभाग के उच्च अधिकारियों और इंजीनियरों के आपसी तालमेल से हुआ था, इसलिए इसकी भनक किसी को नहीं लगी।
कलेक्टरों की शिकायत के बाद PS ने की थी जांच
गांवो में जल जीवन मिशन के तहत सर्वे नहीं होने की शिकायत जिलों के कलेक्टरों के माध्यम से पीएचई के प्रमुख सचिव पी नरहरि तक शिकायत पहुंची थी। इसके बाद पी नरहरि ने गांवों का सर्वे कर जमीनी हालात जाने तो पता चला कि प्रदेश के 8 लाख घरों का सर्वे ही नहीं हुआ है। जांच के बाद आईएएस पी नरहरि ने रिपोर्ट मुख्य सचिव अनुराग जैन को सौपी और मामला मुख्यमंत्री मोहन यादव तक पहुंच गया।
मंत्री संपतिया उईके के जिले में तो 265 फीसदी रेट पहुंचे
मंत्री संपतिया उईके के गृह जिले मंडला में टेंडर के रेट 117 प्रतिशत तक बढ़ाए गए। वहीं उनके प्रभार वाले जिले सिंगरौली में यह बढ़ोतरी 265 प्रतिशत तक पहुंच गई।
इंजीनियरों की लापरवाही से प्रदेश के 8 लाख से ज्यादा घरों को पानी देने का सर्वे ही नहीं हो पाया। इस कारण मुख्य सचिव ने 2800 करोड़ की बढ़ी हुई लागत को मंजूरी देने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव भेजने को कहा है, और वहीं दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं।
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जल जीवन मिशन के घोटाले का खुलासा और कार्रवाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट जल जीवन मिशन के तहत इस घोटाले का खुलासा आए दिन जिलों से कलेक्टरों की आ रही शिकायतों के बाद हुआ कि उनके जिले कई गांवों में नल कनेक्शन हीं नहीं लगे। मुख्य सचिव अनुराग जैन के निर्देश पर पीएचई के प्रमुख सचिव पी नरहरि ने इस मामले की जांच की।
जिनके रिवाइज स्टीमेट, अब उनकी जांच
बता दें कि इंजीनियरों की लापरवाही से प्रदेश के 8 लाख से ज्यादा घरों को पानी देने का सर्वे ही नहीं हो पाया। इस कारण मुख्य सचिव ने 2800 करोड़ की बढ़ी हुई लागत को मंजूरी देने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव भेजने को कहा है, और वहीं दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। अब जिन टेंडर की DPR (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) की रेट 30 प्रतिशत से ज्यादा हुई है, उनकी चांज की जाएगी।
जांच में पता चला कि प्रदेश में 8425 एकल ग्राम नल-जल योजनाओं के लिए कुल 6340 करोड़ रुपए के टेंडर मंजूर हुए थे, लेकिन कई गांवों में नल कनेक्शन नहीं पहुंचा।
इसके बाद, पानी देने के नाम पर इंजीनियरों से डीपीआर रिवाइज्ड करवाई गईंं। जिससे लागत 9165 करोड़ तक पहुंच गई। यानी कुल 2800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च हुआ।
केंद्र सरकार ने रिवाइज्ड डीपीआर के लिए फंड देने से मना कर दिया, जिससे राज्य सरकार को अतिरिक्त 2800 करोड़ रुपए का बोझ उठाना पड़ा। इसके बाद अधिकारियों पर कार्रवाई शुरू हुई और 141 इंजीनियरों को नोटिस भेजे गए हैं।
एमपी पीएचई घोटाला: 5 संक्षिप्त प्वाइंट्स में ऐसे समझें2800 करोड़ का नुकसान: 141 इंजीनियरों को नोटिस: मंत्री के जिलों में रेट में भारी बढ़ोतरी: केंद्र ने फंड देने से किया इनकार: फर्जीवाड़ा और जांच: |
टेंडर मंजूर होने के बाद हुआ पूरा खेल
डीपीआर के बदलाव का खेल टेंडर मंजूर होने के बाद हुआ। हर निर्माण कार्य से पहले विस्तृत अनुमान (डीपीआर) तैयार किया जाता है, जिसे बाद में रिवाइज्ड करके लागत बढ़ाई जाती है। पीएचई विभाग में अधिकारियों ने इस प्रक्रिया में गड़बड़ी की, और डीपीआर को सही तरीके से मंजूरी नहीं दी। न ही सर्वे को ठीक से किया गया और न ही डिज़ाइन की त्रुटियों पर ध्यान दिया गया।
मजे की बात ये है कि कई जिलों में पुराने पाईप डले होने के बाद फर्जी तरीके से नए पाईप खरीदी के बिल भी ठेकेदारों ने लगाए। इस मामले में राज्य सरकार की ही सामग्री गुणवत्ता परीक्षण संस्था सीपैट ने पत्र लिखकर कहा है कि ठेकेदारों ने जिन कंपनियों के पाईप का परीक्षण संस्था से करवाया था उन कंपनियों से पाईप की खरीदी ही नहीं हुई। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर गांवों में घरों तक पानी पहुंचाने के लिए पाईप कहां से लिए गए।
पर्दे के पीछे का खेल
सूत्रों के अनुसार, जल जीवन मिशन के तहत डिज़ाइन ईएनसी ऑफिस के एक सीनियर अधिकारी ने तैयार करवाई। इन डिज़ाइनों को गूगल अर्थ से कॉपी-पेस्ट किया गया और निचले अधिकारियों से हस्ताक्षर कराए गए। यही नहीं, अधिकारियों पर दबाव भी डाला गया। अगर इन अधिकारियों के ईमेल की जांच की जाए, तो कई राज सामने आ सकते हैं।
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