रविकांत दीक्षित, BHOPAL. मध्यप्रदेश लोकसभा चुनाव ( MP Loksabha Election ) में क्या आदिवासी बीजेपी ( BJP ) से नाराज हैं? क्या आदिवासियों के प्रभाव वाली सीटों पर बीजेपी को मुश्किल हो सकती है? क्या बीजेपी एंटी इनकमबेंसी से जूझ रही है? क्या दलबदल से खेल बिगड़ रहा है? जो भी पर एक बात तो तय है कि ग्राउंड से रिपोर्ट अच्छी नहीं आई है। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मोर्चा संभाल लिया है। चुनाव से पहले RSS के पदाधिकारी और स्वयंसेवक आदिवासी मतदाताओं को सीख दे रहे हैं। अंदरूनी रिपोर्ट है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भले ही बंपर जीत दर्ज की हो, लेकिन अब ताजे आकलन में पता चला है कि आदिवासी बीजेपी से नाराज हैं। उन्हें साधने के लिए RSS ने जनजागरण अभियान शुरू कर दिया है।
यह है RSS की रणनीति
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ चरण के हिसाब से अभियान चला रहा है। यानी जिन सीटों पर पहले वोटिंग है, पहले वहीं फोकस किया गया है। संघ के स्वयं सेवक एवं पदाधिकारी सुदूर जंगलों में पहुंचकर आदिवासियों को मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बैठकें की जा रही हैं। आदिवासियों को सरकार की योजनाएं समझाई जा रही हैं।
आत्मविश्वास नुकसान न पहुंचा दे?
संघ की बैठक में एक तथ्य भी सामने आया है कि जैसे विधानसभा चुनाव में माहौल तो कांग्रेस के पक्ष में था, लेकिन नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए। वैसे ही अब लोकसभा चुनाव में हर तरफ बीजेपी की लहर नजर आती है, लेकिन यह आत्मविश्वास कहीं नुकसान न पहुंचा दे।
जेपी नड्डा भी दे चुके सीख
इंदौर में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कहा था कि अति आत्मविश्वास में न रहें। यह न मानकर चलें कि मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व है ही। प्रचंड लहर है ही और विपक्ष तो एक तरह से गायब ही है, यानी अदृश्य है। जनता हर मुद्दे पर हमारे साथ है ही, इसलिए बहुत बड़ी जीत तय है। अगर आप ऐसा मानकर चल रहे हैं तो यह खुद और पार्टी के साथ अन्याय है।
जयस पेश कर रहा चुनौती!
दूसरा, शिवराज सरकार के समय भले पेसा एक्ट लागू हो गया था, लेकिन आदिवासियों को इसका कोई उल्लेखनीय लाभ नहीं मिला है। बीजेपी के सामने जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) चुनौती पेश कर रहा है। जयस की कोशिश अन्य समाजों को भी जोड़ने की है। बीजेपी के लिए यही सबसे बड़ी चिंता की बात है।
जमीनी नेता को उतारना होगा
उल्लेखनीय है कि जयस ने जब 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ दिया था तो बीजेपी की स्थिति डगमगा गई थी। अब राजनीतिक रणनीतिकार मानते हैं कि बीजेपी को जल्द कदम उठाना होगा। आदिवासी वर्ग को साधने के लिए किसी ऐसे जमीनी नेता को काम देना होगा, जिसका आदिवासियों के बीच अच्छा प्रभाव हो। पार्टी संगठन को यह काम जल्द से जल्द करना होगा।