Bhopal. लगता है माननीयों का कैबिनेट बैठकों से मोहभंग हो रहा है। कभी आठ काबिना मंत्री पहुंचते हैं तो कभी दस माननीय कैबिनेट बैठक में मौजूद रहते हैं। 'द सूत्र' ने पिछली कुछ कैबिनेट बैठकों को स्कैन किया, इसमें कई मंत्रियों की गैरमौजूदगी सामने आई।
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मध्यप्रदेश कैबिनेट में इस समय कुल 31 मंत्री हैं। इनमें 21 कैबिनेट, 6 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 4 राज्यमंत्री हैं। ज्यादातर कैबिनेट बैठकों में सभी काबिना मंत्री नहीं पहुंचते हैं। सबसे पहले बात हालिया मीटिंग की। 15 जनवरी को मंत्रालय में बैठक हुई। इसमें मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के अलावा डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा के साथ कैबिनेट मिनिस्टर कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद सिंह पटेल, करण सिंह वर्मा, उदयप्रताप सिंह, एदल सिंह कंषाना, चैतन्य कश्यप ही मौजूद रहे। यानी सीएम सहित काबिना मिनिस्टर्स की कुल संख्या सिर्फ 9 ही रही। 12 मंत्री गैरहाजिर रहे। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब आधे से ज्यादा कैबिनेट मंत्री बैठक में नहीं पहुंचे। अमूमन हर बार कैबिनेट बैठक में यही स्थिति रहती है।
पिछली तीन मीटिंग का लेखा जोखा
अब यदि 7 जनवरी को हुई कैबिनेट बैठक को देखें तो उसमें भी तीन मंत्री नहीं पहुंचे थे।
26 दिसंबर को हुई कैबिनेट बैठक में करीब 13 काबिना मंत्रियों की ही उपस्थिति रही थी।
10 दिसंबर की मीटिंग में 13 कैबिनेट मंत्रियों की मौजूदगी में प्रस्ताव पास किए गए थे।
मंत्रियों की मौजूदगी जानने के लिए 'द सूत्र' ने जनसंपर्क विभाग की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए फोटो और वीडियो को स्कैन किया। साथ ही मंत्रियों के सोशल मीडिया अकाउंट्स भी खंगाले। इसी आधार पर जानकारी एकत्रित की गई।
नफा-नुकसान: आसान तरीके से समझ लीजिए...
दरअसल, कैबिनेट बैठक में प्रदेश के काबिना मंत्रियों की अनुपस्थिति से कई प्रभाव पड़ते हैं, जो प्रशासनिक, संवैधानिक और राजनीतिक स्तर पर असर डालते हैं।
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1. निर्णय लेने की प्रक्रिया में बाधा
कैबिनेट बैठकें सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर निर्णय लेने का प्रमुख मंच होती हैं। यदि महत्वपूर्ण मंत्री अनुपस्थित रहते हैं तो कुछ प्रस्तावों पर सहमति नहीं बन पाती, जिससे निर्णयों में देरी हो जाती है। हालांकि एजेंडा पहले से तय होता है, लेकिन फिर भी संबंधित मंत्री को बैठक में उपस्थित होना चाहिए। कुछ मामलों में अनुपस्थित मंत्रियों की विशेषज्ञता या क्षेत्रीय अनुभव के बिना निर्णय लेना बाद में सियासी तौर पर मुश्किल हो जाता है।
2. संविधानिक और कानूनी प्रभाव
संविधान के अनुच्छेद 166 के तहत राज्य के प्रशासनिक कार्य कैबिनेट के सामूहिक उत्तरदायित्व के आधार पर किए जाते हैं। यदि मंत्री गैरहाजिर रहते हैं तो यह उत्तरदायित्व कमजोर होता है। वहीं, हर मंत्री अपने विभाग का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी गैर-मौजूदगी में उनके विभाग से जुड़े विषयों पर ठोस चर्चा और निर्णय संभव नहीं हो पाते, जिससे विकास योजनाएं प्रभावित होती हैं। साथ ही कैबिनेट बैठक में ही मंत्रियों की गैर-हाजिरी से प्रशासनिक अनुशासन पर सवाल उठता है। यह बताता है कि मंत्री अपने कामों के प्रति गंभीर नहीं हैं।
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3. राजनीतिक असंतोष का संकेत
यदि मंत्री लगातार अनुपस्थित रहते हैं तो यह सरकार के अंदरूनी असंतोष या गुटबाजी का संकेत हो सकता है। जैसे पिछले दिनों मंत्री
कैलाश विजयवर्गीय लगातार कैबिनेट बैठकों में गैरहाजिर रहे थे। तब तर्क यह दिया गया था कि उनके पास महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी थी, लिहाजा वे प्रदेश में समय नहीं दे पा रहे थे, लेकिन इस बीच उनके प्रतिद्वंद्वियों ने यह भी कहा कि प्रदेश के बाकी मंत्रियों के पास भी महाराष्ट्र की सीटों का जिम्मा था, लेकिन वे कैबिनेट बैठकों में मौजूद रहे थे। तब भी विजयवर्गीय की गैरहाजिरी को सरकार से नाराजगी से जोड़कर देखा गया था।
कैलाश-प्रहलाद ने जताई थी आपत्ति
विशेषज्ञ कहते हैं कि कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का होना सबसे जरूरी होता है, क्योंकि मीटिंग का एजेंडा पहले से तय होता है। बैठक में मौजूद मंत्री आपस में चर्चा करते हैं और अंत में सीएम मुहर लगा देते हैं, लेकिन हाल के मामलों को देखते हुए स्थिति उलट हो रही है। पिछली कैबिनेट बैठक में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद सिंह पटेल ने एक सड़क के प्रोजेक्ट पर आपत्ति जताई थी। जब यह खबर बाहर आई तो अंदरूनी तौर पर कई सियासी बातें कही गई थीं। मंत्रियों की आपत्ति को सरकार की नाराजगी से भी जोड़कर देखा गया था।