मध्य प्रदेश के पेंशनर्स ने राज्य सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है। उन्होंने हाई कोर्ट में तीन याचिकाएं दाखिल कर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है। रविवार को पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन की बैठक में रणनीति का खुलासा किया गया। बैठक के दौरान संरक्षक गणेश दत्त जोशी, प्रदेश अध्यक्ष अमोद सक्सेना, जिला अध्यक्ष सुरेश शर्मा, प्रमोद सिंघल और हरेंद्र तिवारी जैसे कई प्रमुख पदाधिकारियों ने संबोधित किया।
पेंशनर्स का राज्य सरकार पर आरोप
पेंशनर्स का आरोप है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49(6) का गलत इस्तेमाल करके राज्य सरकार महंगाई राहत (डीआर) देने में छत्तीसगढ़ की अनुमति का हवाला देकर देरी करती है। उन्होंने अपनी याचिका में इस कानून का विरोध करते हुए कहा है कि महंगाई राहत के लिए छत्तीसगढ़ से अनुमति लेने का कोई नियम नहीं है।
इसके अलावा, दूसरी याचिका छठवें वेतन आयोग के तहत वार्षिक वेतन वृद्धि को लेकर है, जिसमें यह कहा गया है कि यह वृद्धि पेंशनर्स को 18 महीने बाद दी गई थी। तीसरी याचिका 30 जून और 31 दिसंबर को मिलने वाली वेतन वृद्धि को लेकर है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया था कि यह वेतन वृद्धि सभी पेंशनर्स को मिलनी चाहिए, न कि केवल उन लोगों को जो अदालत गए थे।
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वेतन पुनरीक्षण नियम-2009 में संशोधन की लंबित मांग
पेंशनर्स का आर्थिक शोषण: पेंशनर्स का दावा है कि पिछले 24 वर्षों से उनके आर्थिक शोषण की जा रही है। वेतन पुनरीक्षण नियम-2009 में संशोधन न होने के कारण पेंशनर्स को एक वेतन वृद्धि का नुकसान हो रहा है। पेंशनर्स ने मार्च 2012 में केंद्रीय सर्कुलर के आधार पर मध्य प्रदेश वेतन पुनरीक्षण नियम-2009 में संशोधन की मांग की थी, जिसे वित्त विभाग ने सहमति दी थी, लेकिन 12 साल बाद भी आदेश को लंबित रखा गया है।
पेंशनर्स का यह भी आरोप है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम-2000 की धारा 49(6) का गलत तरीके से उपयोग करते हुए उन्हें 24 वर्षों से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। इस अधिनियम के तहत किए गए निर्णयों से अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को 1 जनवरी 2006 से वेतन वृद्धि का लाभ दिया गया, लेकिन प्रदेश के कर्मचारियों को इससे वंचित रखा गया।
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