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एक जुलाई यानी आज होने वाली सीएम मोहन यादव की केबिनेट मीटिंग हंगामाखेज रहने वाली है। कारण- 1000 करोड़ के आरोप में आदिवासी मंत्री संपतिया उइके की जांच हो जाए और सरकार में किसी को कानोकान खबर भी न हो! Thesootr आपको बताने जा रहा है कि कैसे मध्यप्रदेश में सरकारी अमला आंख-कान खोले बिना ही फाइलें निबटा रहा है।
इतनी ताकतवर सरकार के अफसर अपनी ही मंत्री की किरकिरी करा देंगे, किसने सोचा था? भले ही जांच निराधार साबित हो गई हो, मगर मुख्य सचिव कार्यालय से लेकर ENC तक किसी को फुर्सत ही नहीं थी कि वो जांच के लिए चिट्ठी को आगे बढ़ाने से पहले एक बार भी देख लेते कि मामला केबिनेट मंत्री का है… चलिए पहले इस मामले की टाइमलाइन को समझते हैं…
कैसे एक शिकायत पत्र ने मचा दिया हड़कंप
ये पूरा मामला एक चिट्ठी से शुरू हुआ। संयुक्त क्रांति पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व विधायक किशोर समरीते ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के नाम चिट्ठी लिखी। इसी चिट्ठी की कॉपी लोकायुक्त, मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को भेजी गई। इसमें मंत्री संपतिया उइके पर 1000 करोड़ के कमीशन लेने का आरोप था।
लोकायुक्त ने इस शिकायत को बिना आधार बताकर छोड़ दिया, लेकिन मुख्य सचिव ने चिट्ठी बिना ठीक से पढ़े प्रमुख सचिव को भेज दी। फिर वो चिट्ठी विभाग के अवर सचिव के पास गई और वहां से होते हुए प्रमुख अभियंता (ENC) के पास पहुंच गई।
किसी अफसर ने नहीं देखा मंत्री का नाम
हैरानी की बात ये है कि इस पूरी प्रक्रिया में किसी भी अफसर ने यह नहीं देखा कि चिट्ठी में राज्य सरकार की कैबिनेट मंत्री का नाम है। ना ही किसी ने यह जांचने की कोशिश की कि शिकायत में कोई पुख्ता सबूत है या नहीं। बिना जांचे ही प्रमुख अभियंता संजय अधवान ने मंत्री के खिलाफ जांच के आदेश जारी कर दिए।
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ईएनसी ने जांच बैठाई, फिर खुद ही पलट गए
जांच के आदेश के तहत प्रदेश के सभी मुख्य अभियंताओं और जल निगम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर को 7 दिन में रिपोर्ट देने को कहा गया। साथ ही जल जीवन मिशन के तहत 30 हजार करोड़ के खर्च और मंडला जिले के एक इंजीनियर की संपत्तियों की भी जांच के निर्देश दिए गए।
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ENC ने लिया यू टर्न
जब यह आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो विभाग ने तुरंत यू-टर्न ले लिया। प्रेस नोट जारी कर बताया गया कि मंत्री पर लगाए गए आरोप तथ्यहीन, आधारहीन और मनगढ़ंत हैं। आरोप लगाने वाले ने कोई सबूत नहीं दिया, सिर्फ RTI के एक जवाब को आधार बनाया।
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मंत्री उइके बोलीं- अधिकारियों से बात करेंगी
इस पूरे मामले में मंत्री संपतिया उइके ने भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा –मैं भोपाल से बाहर हूं लेकिन अधिकारियों से पूछ रही हूं कि जांच किस आधार पर की गई? मंत्री ने साफ कहा कि भोपाल लौटने पर वे अफसरों से बात करेंगी और जानना चाहेंगी कि बिना पुष्टि के उनके खिलाफ जांच के आदेश क्यों दिए गए।
सवाल- सीएम के खिलाफ भी ऐसे ही जांच बैठा देंगे अफसर?
इस मामले ने प्रदेश की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सरकार से लेकर मंत्री तक की किरकिरी होने के बाद सवाल उठ रहे हैं। अगर इसी तरह कोई शिकायत मुख्यमंत्री के खिलाफ भी आ जाए, तो क्या अफसर जांच के आदेश दे देंगे? क्या मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जैसे बड़े पदों पर बैठे अफसर किसी नाम या साक्ष्य को देखे बिना चिट्ठियां आगे बढ़ा रहे हैं?
टाइमलाइन से समझिए पूरी खबर
12 अप्रैल 2025:
पूर्व विधायक किशोर समरीते ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को मंत्री संपतिया उइके के खिलाफ 1000 करोड़ के कमीशन का आरोप लगाते हुए शिकायत पत्र भेजा। इस पत्र की कॉपी लोकायुक्त, मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को भी भेजी गई।
2. लोकायुक्त ने बताया निराधार
सूत्रों के मुताबिक, लोकायुक्त ने शिकायत को आधारहीन मानकर कोई कार्रवाई नहीं की।
3. मुख्य सचिव कार्यालय से लगी सील
मुख्य सचिव को शिकायत की कॉपी मिली। 24 अप्रैल 2025 को बिना गंभीरता से जांचे, मुख्य सचिव कार्यालय ने पत्र पर जांच का ठप्पा लगाकर इसे प्रमुख सचिव को भेज दिया। प्रमुख सचिव ने यह पत्र विभाग के अवर सचिव को भेजा गया।
4. अवर सचिव से प्रमुख अभियंता (ENC) तक पहुंचा पत्र
अवर सचिव ने पत्र को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता (ENC) संजय अंधवान तक पहुंचाया। प्रमुख अभियंता (ENC) ने मंत्री के खिलाफ जांच के आदेश जारी कर दिए। सभी मुख्य अभियंताओं और जल निगम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर को 7 दिन में रिपोर्ट देने को कहा गया
5. विभाग का यू-टर्न मारा
जब मामला तूल पकड़ने लगा, विभाग ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि मंत्री पर लगे आरोप तथ्यहीन, आधारहीन और मनगढ़ंत हैं। आरोप लगाने वाले ने कोई साक्ष्य नहीं दिया, सिर्फ RTI के एक जवाब को आधार बनाया
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