पुलिस मुख्यालय भोपाल (पीएचक्यू) में फर्जी प्रो-लॉन्ग सर्टिफिकेट के जरिए करोड़ों का घोटाला उजागर हुआ है। विभाग के अकाउंट ब्रांच के अफसरों ने मेडिकल बिलों से 4 करोड़ का घोटाला कर दिया। अभी भी मामले की जांच जारी है, रकम और भी बढ़ सकती है।अब तक की छानबीन में सामने आया है कि करीब 40 कर्मचारियों के 75 से अधिक सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए हैं।
PHQ के इन अफसरों ने किया घोटाला
यह फर्जीवाड़ा पीएचक्यू की अकाउंट शाखा के अफसर नीरज अहिरवार, क्लर्क हर्ष बानखेड़े और हरिहर सोनी की मिलीभगत से अंजाम दिया गया। तीनों आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी सहित विभिन्न धाराओं में FIR दर्ज है। गिरफ्तारी के बाद वे 52 दिन जेल में रहे और फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।
कैसे हुआ घोटाला
जांच में पता चला कि आरोपी हर्ष और हरिहर ने स्वास्थ्य विभाग के नाम से 20 से 35 लाख रुपए तक के फर्जी प्रो-लॉन्ग सर्टिफिकेट तैयार किए। इन सर्टिफिकेट्स पर जाली मोहर और हस्ताक्षर लगाए गए, और बिल तैयार कर ट्रेजरी से पास करवाए गए। घोटाले का तरीका बेहद चालाकी भरा और तकनीकी रूप से एडवांस था।
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एक ही बिल को कई बार ट्रेजरी में अपलोड किया गया। ट्रेजरी सॉफ्टवेयर पकड़ ने पाए इसके लिए बिल के फॉन्ट साइज बदल दिए जाते थे, जिससे सिस्टम उसे अलग डॉक्यूमेंट समझकर पास कर देता था। कई बार तो एक ही घंटे में दो बार ट्रांसफर तक किए गए। ऐसे मामलों में ट्रेजरी ऑफिसर की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
स्वास्थ्य विभाग ने दी ये सफाई
जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, अब तक 100 से ज्यादा कर्मचारियों के सर्टिफिकेट की पड़ताल की गई है। इनमें से 40 प्रो-लॉन्ग सर्टिफिकेट फर्जी निकले। स्वास्थ्य विभाग ने यह साफ कर दिया है कि घोटाले में उपयोग किए गए सर्टिफिकेट उनके कार्यालय से जारी नहीं किए गए। यह पूरी जांच 2019 से 2024 के बीच के बिलों पर केंद्रित है। पीएचक्यू की वेलफेयर और अन्य शाखाओं के कर्मचारी भी रडार पर हैं।
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प्रो-लॉन्ग सर्टिफिकेट क्या होता है?
प्रो-लॉन्ग सर्टिफिकेट गंभीर बीमारियों जैसे टीबी, कैंसर आदि के लंबे इलाज के लिए दिया जाता है। यह प्रमाणपत्र स्वास्थ्य विभाग सालभर के लिए जारी करता है, जिसका समय-समय पर नवीनीकरण जरूरी होता है। आरोप है कि एक बार सर्टिफिकेट बनवाने के बाद उसकी कॉपी से फर्जी बिल तैयार कर, लाखों रुपए के बिलों को पास करवाया गया।
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