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Photograph: (The Sootr)
एमपी पुलिस भर्ती 2025: मप्र में सिपाही भर्ती के लिए 15 सितंबर से आवेदन शुरू हो गए हैं। माना जा रहा है कि करीब दस लाख युवा उम्मीदवार इसके लिए आवेदन करेंगे। पदों की संख्या 7500 है। इसी माह सब इंस्पैक्टर यानी एसआई भर्ती का भी विज्ञापन संभावित है जो 8 साल बाद आएगा।
वहीं 22 सितंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में मप्र के 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का केस सुनवाई में आएगा। इसमें सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि वह अंतरिम राहत नहीं बल्कि अंतिम आदेश जारी करेगा।
इन सभी के बीच यह सवाल उठा है कि आखिर में मध्यप्रदेश में किस कैटेगरी को कितना आरक्षण है और क्या नियम है। वहीं सबसे चौंकाने वाली बात है कि सिपाही भर्ती के विज्ञापन में आरक्षण संबंधी प्रावधानों में एक-दो नहीं सुप्रीम कोर्ट के पूरे सात केस में हुए फैसलों का हवाला दिया है। इसमें एक फैसला इंद्रा साहनी केस का भी है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट पुलिस भर्ती में आरक्षण पर क्या फैसला देती है।
पहले बताते हैं आपको मप्र में आरक्षण की स्थिति
आरक्षण सामान्य तौर पर वर्टिकल और हॉरिजेंटल दो तरह का होता है। वर्टिकल कैटेगरी वाइज होता है, फिर इसमें से पुरूष/महिला, दिव्यांग व अन्य कैटेगरी को हारिजेंटल बांटा जाता है। जैसे अनारक्षित, एसटी, एससी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस यह वर्टिकल हुआ और फिर इसमें से 35 फीसदी पद महिलाओं को देना यह होरिजेंटल हुआ।
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मप्र में आरक्षण एक्ट
मप्र में मूल रूप से मप्र का मप्र लोक सेवा (एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण) एक्ट 1994 पास है। इसमें-
- अनारक्षित के लिए- 50 फीसदी
- एससी के लिए- 16 फीसदी
- एसटी के लिए- 20 फीसदी
- ओबीसी के लिए- 14 फीसदी आरक्षण है।
बाद में 2019 में इसमें एक संशोदन ईएडब्ल्यूएस के लिए हुआ और उन्हें भी वर्टिकल 10 फीसदी आरक्षण दिया गया और सामान्य वर्ग के गरीब वर्ग के लिए यह अलग कैटेगरी बनी।
साथ ही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के समय मप्र में मार्च 2019 में मप्र लोक सेवा (एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण) एक्ट संशोधन 2019 आया, जिसके तहत 1994 के मूल एक्ट में एक बदलाव किया गया और इसमें ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण 14 फीसदी को 27 फीसदी शब्द से प्रतिस्थापित किया गया, यानी ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया गया।
इसके बाद अनारक्षित के लिए 27 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी, एससी के लिए 16, एसटी के लिए 20 और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी का प्रावधान हो गया।
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सिपाही भर्ती के विज्ञापन में क्या है
मध्य प्रदेश सिपाही भर्ती परीक्षा 2025 के विज्ञापन में 7500 सीट है और इसका वर्गीकरण 87-13 फीसदी फार्मूले से किया गया है और इसमें 13 फीसदी पद काल्पनिक तौर पर अनारक्षित और ओबीसी दोनों के खाते में डाले गए हैं, यानी जिसके हक में फैसला होगा, यह काल्पनिक पद उस कैटेगरी के लिए हकीकत में बदल जाएंगे और दूसरे लिए शून्य माने जाएंगे।
सिपाही भर्ती में इस तरह बंटे हैं पद...
- 27 फीसदी अनारक्षित- 2025 पद
- 16 फीसदी एससी आरक्षित- 1200 पद
- एसटी 20 फीसदी- 1500 पद
- 27 फीसदी ओबीसी- 2025
- ईओडब्ल्यूएस 1- फीसदी 750
(कुल 7500 पद- 13 फीसदी पद जो 975 होते हैं वह होल्ड रहेंगे और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही किसी के पक्ष में जाएंगे)
(वहीं हारिजेंटल आरक्षण के तहत फिर आगे पदों को बांटा गया है इसमें हर कैटेगरी में एक्स सर्विसमैन 10 फीसदी, दिव्यांग एचजी 10 फीसदी, महिला 35 फीसदी का आरक्षण रखा गया है)
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अब इसमें आरक्षण संबंधी दो बातें सबसे अहम है
इस विज्ञापन में दो बातें सबसे अहम है। पहला परीक्षा नियम 2015 के तहत आरक्षित कैटेगरी से अनारक्षित में जाने के नियम को फिर मजबूती से दोहराया गया है। इसमें साफ कहा गया कि यदि आरक्षित कैटेगरी वालों ने उम्र, आयु, कटआफ अंक की छूट ली गई है तो फिर उन्हें मेरिट के बाद भी उन्हीं कैटेगरी में रखा जाएगा और अनारक्षित में शिफ्ट नहीं किया जाएगा।
इस मामले में अभी राज्य सेवा परीक्षा 2025 को चुनौती मिली है और केस हाईकोर्ट में लंबित है। हालांकि, सितंबर में ही सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुर हाईकोर्ट मामले में अपील पर फैसला दिया कि छूट का लाभ लिया है तो फिर अनारक्षित में शिफ्ट नहीं कर सकते हैं। (यह प्रावधान पेज 17 में बिंदु Xi के प्वाइंट क में साफ है- जिन्होंने उम्र, शैक्षणिक योग्यता, शारीरिक योग्यता में छूट का लाभ लिया तो वह आरक्षित कैटेगरी में ही रहेंगे)
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अब सबसे अहम बात इंद्रा साहनी केस की...
भर्ती विज्ञापन के पेज 14, 15 और 16 में आरक्षण के प्रावधान दिए हुए हैं। इसमें बिंदु vii में साफ लिखा है कि- आरक्षण के आधार पर चयन का आधार माननीय सुप्रीम कोर्ट के निम्न फैसलों पर आधारित है-
इंद्रा साहनी केस- 1992: यह केस आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को तय करता है और इसमें विशेष परिस्थितियों में ही आरक्षण सीमा क्रास करने की बात है)
अनिल गुप्ता विरूद्ध उत्तर प्रदेश केस- 1995: इस केस में मेडिकल सीटों में आरक्षण की सीमा 65 फीसदी होने का मुद्दा था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सीट अनारक्षित की बढाने का आदेश देकर समायोजित कराया था और इसमें भी इंद्रा साहनी केस का हवाला उठा।
रमेश राय विरूद्ध भारत संघ व अन्य- 2010: इसमें इस बात की चुनौती थी कि आरक्षित वर्ग का व्यक्ति यदि मेरिट पर अनारक्षित में जाता है तो भी क्या वह आरक्षित में वर्ग के उच्च पद को चुन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें उचित माना था।
राजेश कुमार डारिया विरूद्ध राजस्थान लोक सेवा आयोग- 2007: राजस्थान लोक सेवा, आयोग द्वारा महिला उम्मीदवारों को क्षैतिज आरक्षण (horizontal reservation) के तहत दी गई कुछ छूटों के आधार पर चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया, जिससे महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटें खाली रह गईं और पुरुष उम्मीदवारों को मौका मिला। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि राजस्थान लोक सेवा आयोग की चयन प्रक्रिया में कुछ ऐसे बिंदु थे जिसके कारण महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों की संख्या में कमी आ गई और शेष पदों को पुरुष उम्मीदवारों को दिया गया। इसमें आयोग को अपनी चयन प्रक्रियाओं में सुधार करने और महिला उम्मीदवारों को उनके आरक्षण के अनुसार सही अवसर देने का निर्देश दिया गया।
सत्य प्रकाश विरूद्ध भारत संघ- 2003: यह केस भी अनारक्षित और आरक्षित कैटेगरी में शिफ्टिंग को लेकर था
दीपा ईवी बनाम भारत संघ-साल 2003 केस: यह केस भी आरक्षित कैटेगरी की छूट से जुड़ा था लेकिन इसमें याचिकाकर्ता ने ओबीसी की उम्र छूट ली, इसके चलते के चलते याचिका खारिज हुई
सौरव यादव बनाम यूपी- 2018 केसः सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें हारिजेंटल और वर्टिकल आरक्षण के बीच संबंध को स्पष्ट करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया। फैसले में कहा कि हारिजेंटल आरक्षण के लिए पात्र समूहों को केवल इसलिए अनारक्षित में जाने से नहीं रोका जा सकता है क्योंकि वे अन्य वर्टिकल आरक्षण श्रेणियों से हैं। यानी योग्यता के आधार पर सभी श्रेणियों (वर्टिकल) की महिलाएं खुली श्रेणी के लिए विचार किए जाने के पात्र हैं। खुली श्रेणी की सीटें गैर-आरक्षित श्रेणियों के लिए कोटा नहीं हैं ।