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MP News : मध्य प्रदेश सरकार पदोन्नति में आरक्षण की नौ साल पुरानी अड़चन खत्म करने का प्रयास कर रही है। नए नियमों का प्रारूप तैयार किया गया है। मुख्यमंत्री कर्मचारी संगठनों से इस पर बातचीत करेंगे। मानसून सत्र में प्रस्ताव पेश किए जाने की उम्मीद है। प्रदेश में नौ साल से रुकी पदोन्नति प्रक्रिया फिर से शुरू करने के लिए सरकार सक्रिय है। मुख्य सचिव अनुराग जैन की देखरेख में नए लोक सेवा पदोन्नति नियम बनाए गए हैं।
नौ साल से अटका प्रमोशन विवाद
एमपी में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर वर्षों से चला आ रहा आरक्षण विवाद अब हल की ओर बढ़ता दिख रहा है। मई 2016 से यह मुद्दा लंबित है, जब राज्य सरकार ने पदोन्नति से जुड़े आरक्षण नियम निरस्त किए थे। तब से अब तक न तो स्पष्ट नीति बनी, न ही न्यायिक गतिरोध पूरी तरह सुलझा।
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कर्मचारियों से संवाद की तैयारी
सीएम मोहन यादव ने इस जटिल मुद्दे को संवेदनशीलता से लेते हुए अब सभी प्रमुख कर्मचारी संगठनों के साथ बैठक करने का फैसला किया है। उनका उद्देश्य एक सर्वमान्य प्रारूप पर आम सहमति बनाना है, जिससे कि बाद में कोई कानूनी अड़चन न खड़ी हो और सभी पक्षों को संतुष्ट किया जा सके।
मुख्य सचिव की निगरानी में बना नया प्रारूप
नई पदोन्नति नीति का मसौदा मुख्य सचिव अनुराग जैन की निगरानी में तैयार किया गया है। इसमें न्यायिक दिशा-निर्देशों, पूर्व के अनुभवों और कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। प्रारूप को मानसून सत्र में विधानसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
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सेवानिवृत्त हो चुके हैं एक लाख से अधिक कर्मचारी
2016 से अब तक प्रदेश के एक लाख से अधिक अधिकारी और कर्मचारी बिना प्रमोशन के ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इस दौरान अस्थायी समाधान के रूप में उच्च पद का प्रभार देने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन यह नीति सीमित दायरे में ही लागू हो पाई, जिससे व्यापक असंतोष पैदा हुआ।
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पुरानी व्यवस्था ने बढ़ाई थी परेशानी
तत्कालीन शिवराज सरकार ने पदोन्नति विवाद का समाधान निकालने के लिए प्रयास जरूर किए थे। लेकिन नियमों के स्पष्ट अभाव और न्यायिक स्थगन के कारण सभी प्रयास निष्प्रभावी रहे। कई विभागों में कर्मचारियों को प्रमोशन की पात्रता होने के बावजूद अवसर नहीं मिला, जिससे शासन व्यवस्था भी प्रभावित हुई।
अब समाधान की उम्मीद
अब मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में सरकार इस मसले को स्थायी समाधान देने की ओर अग्रसर है। कर्मचारी संगठनों से संवाद, सर्वमान्य नीति और विधानसभा में प्रस्ताव रखने की प्रक्रिया यह संकेत देती है कि राज्य सरकार इस विवाद को समाप्त कर एक नई और पारदर्शी प्रणाली लागू करना चाहती है।
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