नदियां हमें कितना कुछ देती हैं और हम उन्हें क्या देते हैं गंदगी, अतिक्रमण, अवैध खनन। अब देखिए न मध्यप्रदेश की 11 प्रमुख नदियों में हर दिन डेढ़ सौ से ज्यादा गंदे नाले गिर रहे हैं। ये स्थिति तब है, जब मध्यप्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है। यहीं नदियों की स्थिति खराब है। थोड़े पीछे चलें तो हम पाते हैं कि ये जीवनदायिनी नदियां कभी सभ्यता की धुरी हुआ करती थीं, पर आज खुद लाचार हैं।
नर्मदा से लेकर चंबल, ताप्ती से लेकर क्षिप्रा तक प्रदेश की 11 प्रमुख नदियों में हर रोज गंदे नाले बेशर्मी से घुल रहे हैं। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है। बोर्ड ने नर्मदा, चंबल, क्षिप्रा, बेतवा, सोन, टोंस, ताप्ती, कान्ह, माही, सिंध और बेनगंगा सहित प्रमुख नदियों का सर्वेक्षण किया था।
जांच में पता चला है कि इन नदियों में 158 नाले हर दिन गंदगी उड़ेल रहे हैं। हर दिन करीब 450 मिलियन लीटर घरेलू अपशिष्ट जल सीधे इन नदियों में बहाया जा रहा है। ये वही नदियां हैं, जिनके तटों पर श्रद्धा के दीप जलाए जाते हैं, जिनका नाम लेकर नेता जल संरक्षण के वादे करते हैं और जिनसे हजारों गांवों-कस्बों की जीवनरेखा जुड़ी हुई है।
सरकार ने उठाया कदम
अब इस बदहाली को सुधारने की दिशा में प्रदेश सरकार ने बड़ा ऐलान किया है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग प्रदेश में 869 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रति दिन) क्षमता के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) बनाएगा। दावा है कि इससे नदियों में जाने वाला गंदा पानी पहले साफ किया जाएगा, जिससे जल-प्रदूषण की विकराल होती स्थिति पर लगाम लगेगी।
सरकार की इस पहल को जल गंगा संवर्धन अभियान भी बल दे रहा है, जो इन दिनों प्रदेशभर में चलाया जा रहा है। इस 90 दिनी अभियान में प्रशासन, समाज और स्वयंसेवी संगठनों के समन्वय से जलस्रोतों का कायाकल्प किया जा रहा है।
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फिर बहने लगी घोड़ा पछाड़ नदी
जल संरक्षण के इन प्रयासों के बीच खंडवा जिले से अच्छी खबर भी सामने आई है। नर्मदा की सहायक घोड़ा पछाड़ नदी अंधाधुंध जल दोहन और लापरवाह भू-प्रबंधन के कारण सूख गई थी। फिर यहां 'रिज टू वैली' पैटर्न पर 33 किलोमीटर क्षेत्र में जल संरचनाओं का निर्माण किया गया। इसका परिणाम यह हुआ है कि यह नदी पुनर्जीवित हो गई है। अब नदी में साल भर जलप्रवाह की संभावना है।
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इंदौर की पहल: बावड़ियों को मिली सांस
देश की स्वच्छता राजधानी इंदौर ने एक बार फिर मिसाल पेश की है। यहां नगर निगम और सामाजिक संगठनों ने मिलकर 330 पारंपरिक कुएं और बावड़ियों का संरक्षण किया है। ये जलस्रोत अब वर्षा जल संग्रहण के केंद्र बनेंगे। साथ ही भूजल स्तर को भी स्थिर करेंगे। वैज्ञानिकों की मानें तो यदि इंदौर मॉडल को प्रदेश भर में अपनाया जाए तो आने वाले वर्षों में नदियों पर गंदे पानी का भार काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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