मध्य प्रदेश के तीन IAS फंसे मुश्किल में, जुर्माना होगा या जेल…

SEIAA में 450 प्रोजेक्ट्स को बिना किसी नियम-कायदे के मंजूरी देने का मामला अब केंद्र तक पहुंच चुका है, लेकिन जैसे ही इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ, भोपाल में लीपापोती की कोशिशें तेज हो गईं।

author-image
The Sootr
New Update
mp-seiaa-corruption-project-approvals-scandal
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

मध्यप्रदेश राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (SEIAA) में 450 प्रोजेक्ट को मनमाने तरीके से अनुमति देने का मामला केंद्र तक पहुंच गया है। इधर मामला उजागर होने के बाद भोपाल में लीपापोती की तैयारी चल रही है। छोटी मछलियों पर कार्रवाई की तलवार चलाई जा रही है, क्यों? क्योंकि पेंच बुरी तरह फंस गया है। दरअसल “The Environment (Protection) Act, 1986” साफ कहता है कि पर्यावरण संबंधी मामलों में लापरवाही की तो सीधे पांच साल की जेल होगी। अब इस बड़े भ्रष्टाचार में तो सीधे तौर पर तीन IAS की संलिप्ता सामने आ रही है। कैसे? तो चलिए, शुरू से शुरू करते हैं…

क्या है ये सिया का भ्रष्टाचार

हाल ही में मध्यप्रदेश राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (SEIAA) में बड़ा भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। यह खेल भी कोई करोड़, दो करोड़ का नहीं, अरबों का हो सकता है। आरोप है कि नियमों को ताक पर रखकर, बिना बैठक और सामूहिक निर्णय के ही, सैकड़ों परियोजनाओं को अवैध रूप से पर्यावरणीय मंजूरी (EC) दे दी गई। इस प्रक्रिया में करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार, खनन माफिया और अधिकारियों की मिलीभगत, और पर्यावरणीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ के गंभीर आरोप लगे हैं। बता दें कि इन 450 मामलों में से 200 से ज्यादा खनिज विभाग से जुड़े हैं। अब इस मामले में कई अफसर सीधे तौर पर फंसते नजर आ रहे हैं। जिम्म्दारी की आंच प्रमुख सचिव से लेकर मुख्य सचिव तक पहुंच रही है।

चलिए थोड़ा विस्तार से समझते हैं कैसे हुआ घोटाला?

दरअसल पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के तहत 8 प्रकार के प्रोजेक्ट में पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य है। इनमें खनन, सिंचाई, सड़क-हाईवे आदि हैं। बता दें कि 250 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल के प्रोजेक्ट में ईसी जारी करने के अधिकार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और 250 हेक्टेयर से कम के प्रोजेक्ट में सिया के पास है। ऑफ द रिकार्ड सभी मानते हैं कि खनन, सिंचाई, सड़क-हाईवे आदि प्रोजेक्ट अरबों की लागत वाले होते हैं। इसलिए 25-50 लाख की दान- दक्षिणा के बिना कोई भी अनुमति इन प्रोजेक्ट को मिलती ही नहीं है।  

खुद चेयरमैन ने की शिकायत

इस गड़बड़ी को खुद सिया चेयरमैन शिवनारायण चौहान ने उजागर किया है। वे सभी जिम्मेदारों से लेकर केंद्र तक लगातार चिट्ठी- पत्री करते रहे हैं। उनका कहना है कि अथॉरिटी के अलावा किसी और को ईसी जारी करने का अधिकार नहीं है। फिर अस्थायी प्रभार संभालने के सिर्फ एक दिन बाद ही श्रीमन शुक्लाा को अनुमतियां जारी करने की ऐसी कौन सी जल्दी थी? 

सारा खेल 45 दिनों के नियम से किया… 

seiaa-environmental-clearance-scam-graphics
Photograph: (the sootr)

दरअसल इस मामले में भारत सरकार के EIA Notification 2006 के तहत, हर परियोजना की मंजूरी SEIAA की सामूहिक बैठक में होनी चाहिए थी। लेकिन जानबूझकर बैठकें ही नहीं बुलाई गईं, जिससे फाइलें लंबित रहीं। फाइलें लंबित रखने के पीछे “45 दिनों का नियम” है। इस नियम के मुताबिक, अगर 45 दिनों में किसी फाइल पर फैसला नहीं होता, तो EC (पर्यावरण मंजूरी) अपने आप मान ली जाती है। इसी का फायदा उठाकर, सचिव स्तर से अकेले ही सैकड़ों मंजूरियां जारी कर दी गईं।

फर्जी अनुमोदन कराया

इतना ही नहीं आरोप तो यहां तक है कि बिना तकनीकी मूल्यांकन, बिना चर्चा, बिना जरूरी दस्तावेजों के, परियोजनाओं को हरी झंडी मिल गई। कई मामलों में खनिज के नाम और मात्रा तक बदल दी गई। 

गड़बड़झाले की टाइमलाइन

       

अब जबकि मामला उजागर हो चुका है तो प्रदेश के अफसर इधर- उधर कर रहे हैं। दरअसल “The Environment (Protection) Act, 1986” पर्यावरण संरक्षण के लिए केंद्र सरकार को व्यापक अधिकार देता है। एक्ट उल्लंघन करने वालों के लिए सख्त दंड भी निर्धारित करता है, चाहे वे व्यक्ति हों, कंपनियां हों या सरकारी विभाग। दंड में जेल और जुर्माना दोनों शामिल हैं, और यदि उल्लंघन जारी रहता है तो दंड और बढ़ाया जा सकता है। कंपनियों और सरकारी विभागों के लिए भी जिम्मेदारी तय की गई है, ताकि पर्यावरण संरक्षण में लापरवाही न हो। 

यह खबर भी पढ़ें...SEIAA में पर्यावरण मंजूरी का भ्रष्टाचार: बिना बैठक के ही 450 प्रोजेक्ट को दी सीधे मंजूरी

(देखें- “The Environment (Protection) Act, 1986”  का सेक्शन)

हो सकती है जेल

नियम- कायदों का उल्लंघन करने पर एक्ट की (धारा 15) कहती है कि-

  1. जो कोई भी इस अधिनियम, नियम, आदेश या निर्देश का उल्लंघन करता है, उसे पांच वर्ष तक की जेल, एक लाख रुपए तक जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
  2. यदि उल्लंघन जारी रहता है, तो प्रतिदिन अतिरिक्त पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  3. यदि उल्लंघन एक वर्ष बाद भी जारी रहता है, तो सात वर्ष तक की जेल हो सकती है।

कैसे फंस रहे हैं कई IAS अफसर

1- उमा माहेश्वरी: नियम पालन में लापरवाही

सिया की नियमित सदस्य मेडकल लीव पर चली जाती हैं, मगर उससे पहले मीटिंग्स होती ही नहीं हैं। इन पर आरोप हैं कि इन्होंने 450 केस को दबाकर रखा, जबकि इन्हें मीटिंग करके मामलों पर निर्णय लेना था। या तो ये इन प्रोजेक्ट्स को अनुमति देतीं या फिर आपत्ति दर्ज करती या फिर केस खारिज करतीं, मगर ये फाइलों पर बैठी रहीं। जाहिर है इन्होंने  नियम पालन में घोर लापरवाही बरती…  जाहिर होता है कि इन्होंने 45 दिन गुजरने का इंतजार किया, ताकि केस डिबार हो जाएं। सिया की सदस्य होने के नाते इनको मालूम था कि 45 दिन गुजरते ही डीम्ड परमिशन मिल जाएगी। दूसरी तरफ उनके छुट्टी पर जाने के सिर्फ एक दिन बाद ही 450 प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिलने से इस बात का संदेह गहराता है कि इस सब में उनका लेना- देना या सहमति हो सकती है। 

2-  श्रीमन शुक्ला : नियमों का उल्लंघन

उमा माहेश्वरी के मेडिकल लीव पर जाने पर एप्को के कार्यकारी निदेशक श्रीमन शुक्लाा को सिया के सदस्य का प्रभार दिया गया था। जब भी किसी को प्रभार मिलता है तो सामान्य फैसले करने का ही उसके पास अधिकार होता है। अगर फैसला लेना ही था तो इनको भी नियमानुसार बैठक लेकर ही अनुमतियां जारी करना थीं। मगर यहां तो श्रीमन शुक्ला ने सीधे 450 प्रोजेक्ट अगले ही दिन OK कर दिए। है न अटपटी बात… बड़ा सवाल ये है कि क्या श्रीमन शुक्ला को पहले से ही यह सब करने की तैयारी करवाई गई थी? अन्यथा कैसे संभव है कि प्रभार संभालने के अगले ही दिन एक साथ 450 प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी गई…?

3- नवनीत मोहन कोठारी- न नियमों का पालन करवाया और उल्लंघन भी नहीं रोका

सिया के प्रमुख सचिव को मीटिंग्स न होने संबंधी पत्र बार– बार सिया चेयरमैन शिवनारायण चौहान लिख रहे थे, मगर मीटिंग नहीं हुईं। यह जिम्मेदारी सीधे तौर पर नवनीत कोठारी की थी, जो मीटिंग न होने के लिए उमा माहेशवरी को नोटिस जारी कर सकते थे। मगर इन्होंने चुप्पी साधे रखी। जैसे ही उमा माहेश्वरी मेडिकल लीव पर गईं तो उसके अगले ही दिन नवनीत मोहन कोठारी ने सभी प्रोजेक्ट का अनुमोदन कर दिया। यहां सवाल खड़ा होता है कि इतनी जल्दी नवनीत मोहन कोठारी ने अनुमोदन कैसे कर दिया? क्या पहले से ही ऐसा करने की तैयारी थी?-

सिर्फ ऐसे बचेंगे अफसर

तीन आइएएस से जुड़ा मामला होने से मध्यप्रदेश सरकार भी फंस गई है। क्योंकि इस लापरवाही की जानकारी मुख्य सचिव तक थी। प्रकरण अब भारत सरकार के पास है। इसलिए तय है कि भारत सरकार ही इस पर कार्रवाई करेगी। पहली बात तो यह है कि नियमानुसार कार्रवाई हुई तो इन तीनों अफसरों को जेल या जुर्माना तो तय है, लेकिन एक रास्ता बाकि है-  रेगुलाइज करने का, अगर भारत सरकार चाहे तो इन 450 मामलों को रेगुलाइज कर सकती है। ऐसे में तीनों अफसर बच सकते हैं, लेकिन इस बीच  कोई कोर्ट चला गया तो मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें

📢🔃 🤝💬👩‍👦👨‍👩‍👧‍👧

thesootr links

mp ias news | MP IAS | आईएएस नवनीत मोहन कोठारी | ias Shriman Shukla | आईएएस उमा महेश्वरी आर | आईएएस श्रीमन शुक्ला | MP News | Bhopal News 

Bhopal News MP News आईएएस श्रीमन शुक्ला मध्य प्रदेश आईएएस उमा महेश्वरी आर ias Shriman Shukla आईएएस नवनीत मोहन कोठारी MP IAS mp ias news SEIAA