मध्यप्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग पर नहीं बढ़ेगा एमएसपी, भारतीय किसान संघ से बात करेगी मोहन सरकार

गर्मी की मूंग कभी मध्यप्रदेश की फसल नहीं रही है। इस पर सीएम मोहन यादव ने कहा कि भाकिसं के साथ जागरुकता अभियान चलाएंगे ताकि किसान अधिक पैदावार के लिए पेस्टीसाइड्स का उपयोग कर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न करे...

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Jitendra Shrivastava
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मध्यप्रदेश में कैबिनेट की बैठक में ग्रीष्मकालीन मूंग की न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर खरीदी को लेकर अनौपचारिक चर्चा हुई। मंत्रिपरिषद ने तय किया कि इसे लेकर सरकार भारतीय किसान संघ से बातचीत कर मूंग की पैदावार में पेस्टीसाइड्स का कम से कम उपयोग करने के लिए जनजागरुकता अभियान चलाने की पहल करेगी।

किसानों को पेस्टीसाइड्स का उपयोग का लालच दे रहे बिचौलिए

दरअसल, मामला गर्मी में उगाई जाने वाली मूंग की फसल पर एमएसपी घोषित करने को लेकर था। इस पर सीएम मोहन यादव को मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, मंत्री प्रहलाद पटेल और मंत्री राव उदयप्रताप सिंह ने बताया कि मुनाफा वसूली के लिए बिचौलिए किसानों को बेहिसाब पेस्टीसाइड्स उपयोग करने के लिए अपने झांसे में लेते हैं। गर्मी की मूंग कभी हमारे क्षेत्र की फसल नहीं रही है। इस पर सीएम ने कहा कि भारतीय किसान संघ के साथ जागरुकता अभियान चलाएंगे, ताकि लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो।

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रबी और खरीफ की एक फसल का विकल्प गर्मी की मूंग

गर्मियों की मूंग किसान के लिए अतिरिक्त आय बढ़ाने का माध्यम है। किसान रबी और खरीफ फसल की लगाता था। गर्मी के दो-तीन महीने खेत खाली रहते थे। गर्मी में नहरों से सिंचाई के लिए पानी मिलने से मूंग का उत्पादन बढ़ाना शुरू किया। इसे तीसरी फसल भी कहा जाता है। किसानों का मानना है कि रबी और खरीफ की किसी एक फसल में नुकसान होता है, तो मूंग की फसल से उसकी भरपाई हो जाती है।

सरकार के प्रोत्साहन से बढ़ा मूंग का रकबा

तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने मूंग के उत्पादन को लेकर प्रोत्साहित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि चार साल में मूंग का रकबा 50 फीसदी बढ़ गया। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब और हरियाणा सबसे ज्यादा ग्रीष्मकालीन मूंग के उत्पादन करने वाले राज्य हैं। वहीं मध्यप्रदेश में नर्मदापुरम जिले में सबसे ज्यादा मूंग पैदा की जाती है। इस साल 2.85 लाख हेक्टेयर जमीन में 4 लाख 87 लाख मीट्रिक टन मूंग का उत्पादन हुआ है। सामान्य तौर पर हर साल यहां 4 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा ही उत्पादन होता है। इसमें से करीब 1.60 से 1.90 लाख हेक्टेयर मूंग समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है। बाकी मूंग को किसान मंडियों में बेचते हैं। मध्यप्रदेश में 2023 में करीब 10 लाख 79 हजार हेक्टेयर जमीन में मूंग लगाने का लक्ष्य रखा गया। इसमें उत्पादन करीब 15 लाख मीट्रिक टन हुआ, वहीं 2024 में 11 लाख 58 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में मूंग लगाने का लक्ष्य रखा गया है।

एमएसपी पर मूंग की खरीदी की ये है तीन लिमिट...

  1. कोई भी किसान समर्थन मूल्य पर 8 क्विंटल से ज्यादा मूंग नहीं बेच सकता। 
  2. एक खाते से एक दिन में 25 क्विंटल मूंग से ज्यादी नहीं बेच सकता। 
  3. एक खाते से कुल 100 क्विंटल मूंग से ज्यादा नहीं खरीदी जाएगी। 

ऐसे समझें प्रति हेक्टेयर 8 क्विंटल की खरीदी की लिमिट 

24 जून 2024 को प्रदेश सरकार ने मूंग खरीदी के लिए नई खरीदी नीति जारी की। मूंग पैदा करने वाले किसान समर्थन मूल्य पर प्रति हेक्टेयर 8 क्विंटल खरीदी की लिमिट तय करने से नाराज हैं, जबकि सरकार खुद मानती है कि प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल तक उत्पादन हुआ है। इधर लिमिट तय करने के पीछे सरकार के अपना तर्क है, जो किसानों को मंजूर नहीं हैं। उनका कहना है कि सरकार की नीति के कारण पूरी फसल समर्थन मूल्य पर बेचना संभव नहीं है। इससे नुकसान होना तय है। मध्यप्रदेश सरकार के नए निर्णय से वे समर्थन मूल्य 8,558 रुपए के भाव पर 44 क्विंटल ही बेच पाएंगे। बाकी मूंग उन्हें मंडी में 6,500 से 7,600 रुपए के भाव पर बेचना पड़ेगी। यानी उन्हें एक लाख रुपए तक सीधा नुकसान होगा। उनकी तरह मूंग की खेती करने वाले प्रदेश के दूसरे किसानों में गुस्सा है।

सीएम मोहन यादव शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में कैबिनेट बैठक ग्रीष्मकालीन मूंग