मध्य प्रदेश में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया किसी न किसी रूप में चर्चाओं में बनी ही रहती है। अब ताजा मामला स्कूल शिक्षा विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग की शिक्षक भर्ती से जुड़ा है। शिक्षक भर्ती नियम 2018 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट की शरण ली है।
इसमें कहा गया है कि स्नातकोत्तर यानी पीजी में 45 प्रतिशत अंक पाने वाले अभ्यर्थियों को शिक्षक नियुक्त कर दिया गया है। इसके उलट अधिक अंक वाले अभ्यर्थियों को अवसर ना देते हुए बाहर कर दिया गया। कहा जा रहा है कि ऐसा शिक्षक भर्ती के असंगत नियमों के चलते हुआ है।
हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा रिकॉर्ड
अब हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा एवं न्यायाधीश विनय सराफ की युगलपीठ ने सरकार को चार सप्ताह में शिक्षकों की भर्ती से संबंधित रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि ऐसे कितने अभ्यर्थी हैं, जिन्हें पीजी में 45 से 50 फीसदी अंक प्राप्त हैं और उन्हें नियुक्ति दी गई है। अगली सुनवाई 20 अगस्त को होगी।
यह है मामला
दरअसल, जबलपुर निवासी अवनीश त्रिपाठी, रायसेन के प्रदीप अहिरवार, राजस्थान के हुसैन मोहम्मद और सागर के हेमंत चौधरी ने याचिका दायर कर राज्य सरकार के शिक्षक भर्ती नियम 2018 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश में अलग-अलग विश्वविद्यालयों में द्वितीय व तृतीय श्रेणी में विभेद है। इसे लेकर अभ्यर्थी परेशान हैं।
राज्य सरकार का नियम एनसीटीई से अलग
याचिका में बताया कि कुछ विश्वविद्यालयों में 35 से 45 प्रतिशत को तृतीय श्रेणी और 45-50 फीसदी अंक को द्वितीय श्रेणी माना गया है। कुछ में 35 से 50 प्रतिशत को तृतीय और 50 से 59 फीसदी अंक को द्वितीय श्रेणी माना है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार का नियम एनसीटीई के नियम से अलग है। एनसीटीई के अनुसार संबंधित विषय में स्नातकोत्तर में 55 प्रतिशत अंक और बीएड पास ही हाईस्कूल शिक्षक की पात्रता रखता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया है।
thesootr links