4 साल से अटका किरायेदारी कानून , 3 पीएस बदले...किसी ने नहीं दिखाई दिलचस्पी

जनता के फायदे के कानून होते हैं, उनमें संशोधन या उन्हें लागू करने में अफसर रुचि नहीं दिखाते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में ना तो किरायेदारी अधिनियम को अपडेट किया गया है और ना ही केन्द्र के कानून को प्रदेश सरकार ने लागू किया।

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Marut raj
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MP Tenancy Law Madhya Pradesh द सूत्र
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रविकांत दीक्षित,भोपाल. कोई घटना हुई, कोई वारदात हुई या कोई और अनहोनी...बस फिर क्या आदेश जारी होते हैं और अफसर कानून बना डालते हैं। इनका कब पालन होता है, आम जनता को पता होता है कि नहीं? सब जीरो है। अफसर अपने नंबर बढ़ाने के लिए ड्राफ्ट तैयार करते हैं।

अखबारों, चैनलों में खबरें चलती हैं और हो जाती है इतिश्री। वहीं, जो जनता के फायदे के कानून होते हैं, उनमें संशोधन या उन्हें लागू करने में अधिकारी रुचि नहीं दिखाते हैं।
अब इसी कानून को देख लीजिए। केंद्र सरकार ने आदर्श किरायेदारी अधिनियम 2020 में लागू किया था, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार इसमें कुछ नहीं कर पाई।

स्थिति यह है कि प्रदेश में ना तो किरायेदारी अधिनियम को अपडेट किया गया है और ना ही केन्द्र के कानून को प्रदेश सरकार ने लागू किया। 

 इच्छा शक्ति की कमी और लापरवाही भी 

इसे इच्छा शक्ति की कमी कहें या लापरवाही, पर फिलहाल तो Tenancy Law Madhya Pradesh की फाइल चार साल से नगरीय प्रशासन विभाग में घूम रही है। इस बीच तीन प्रमुख सचिव बदल गए हैं, लेकिन दिलचस्पी किसी ने नहीं दिखाई। लिहाजा, सब भगवान भरोसे चल रहा है। यदि समय रहते किरायेदारी कानून में संशोधन कर उसे लाया जाए तो आमजन को कई मुसीबतों से छुटकारा मिल जाएगा। 

क्यों जरूरी है किरायेदारी कानून 

कई बार देखने में आता है कि लोग अपने घर को किराये पर देते हैं और किरायेदार रहते-रहते घर पर कब्जा कर लेते हैं। वहीं कई बार ऐसे केस भी आते हैं कि ​मकान मालिक किरायेदार को जबरन आधी रात को बाहर निकाल देते हैं। अब किरायेदारी कानून ऐसे ही मामलों के लिए है। इसमें किरायेदार और मकान मालिक दोनों के हितों का ध्यान रखा जाना है। 

असरकारक नहीं 14 साल पुराना अधिनियम 

आपको बता दें कि मध्यप्रदेश सरकार वर्ष 2010 में किरायेदार कानून ला चुकी है। इसे मध्यप्रदेश परिसर किरायेदारी अधिनियम-2010 नाम दिया गया था, लेकिन वह असरकारक नहीं है।

इसके बाद केन्द्र सरकार ने देश भर के लिए आदर्श किरायेदारी अधिनियम 2020 लागू कर दिया है, पर मध्यप्रदेश में यह कानून भी अमल में नहीं लाया जा रहा है। 

केंद्र सरकार पांच बार लिखी चुकी चिट्ठी 

केंद्र सरकार मॉडल किरायेदारी अधिनियम ( MTA ) को मंजूरी दे चुकी है। आवास और शहरी मंत्रालय की चिट्ठी के बाद भी देशभर में सिर्फ चार राज्यों ने इसे अपनाया है। बीते वर्ष मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर उन्हें मॉडल अधिनियम के लाभों की याद दिलाई थी। इसी के साथ उनसे कानून बनाने या इसके आधार पर मौजूदा  kiraayedaar kaanoon में संशोधन करने को कहा था, पर अब तक ऐसा नहीं हुआ। 

सिर्फ चार राज्यों में केंद्र के कानून को अपनाया 

2021 के बाद से केंद्रीय मंत्रालय की ओर से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कानून लागू करने के लिए पांच बार चिट्ठी लिखी जा चुकी है, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया है। ऐसे ही लापरवाह प्रदेशों में मध्यप्रदेश भी शामिल है। अब तक असम, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश ने ही किरायेदारी कानून को अपनाया है। 

खबर से जुड़ा जनरल नॉलेज भी जान लीजिए

दरअसल, मकान किराए पर देना और लेना, दोनों में परेशानी आती है।इसे लेकर केंद्र सरकार ने 2021 में मॉडल किरायेदारी एक्ट को मंजूरी दी थी। इस कानून को राज्य अपने रेंट कंट्रोल एक्ट में संशोधन कर या इसे ज्यों का त्यों यहां लागू कर सकते थे, पर सिर्फ चार राज्यों ने ऐसा किया है।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राज्यस्थान समेत कई प्रदेशों ने केंद्र के कानून में कोई रुचि नहीं दिखाई। 

मॉडल टेनेन्सी कानून क्या है?

देश में अभी किरायेदारी से जुड़े मामलों के लिए रेंट कंट्रोल एक्ट 1948 लागू है। इसी को आधार बनाकर राज्यों ने अपने कानून बनाए हैं। महाराष्ट्र में रेंट कंट्रोल एक्ट 1999 लागू है। दिल्ली में रेंट कंट्रोल एक्ट 1958 और चेन्नई में अपना तमिलनाडु बिल्डिंग (लीज एंड रेंट कंट्रोल) एक्ट 1960 लागू है।

मॉडल टेनेन्सी एक्ट की मूल भावना देश में किरायेदारी से जुड़े प्रकरणों के लिए एक दस्तावेज तैयार करने जैसा है, ताकि हर सभी वर्ग के लोगों को किराये पर मकान उपलब्ध हो सके। 

अब कानून के फायदे जान लीजिए

  • पुराने रेंट कंट्रोल कानूनों में ऊपरी सीमा होने से मकान मालिक बरसों बाद भी काफी कम किराया पा रहे हैं। नए कानून में किराये की सीमा तय नहीं की है, पर रेंट एग्रीमेंट अनिवार्य किया गया है। इसे जिले की रेंट अथॉरिटी में सबमिट करना होता है। 
  • किरायेदारी का एग्रीमेंट या कोई भी दस्तावेज जमा करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा, जो राज्य में प्रचलित भाषा में उपलब्ध होगा। यह एग्रीमेंट मकान मालिक और किरायेदार की भूमिका और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करेगा और विवादों को बचाएगा। मौखिक एग्रीमेंट्स को मान्यता नहीं दी जाएगी।
  •  किरायेदार को सिक्योरिटी डिपॉजिट देना होगा। दो महीने के किराये से अधिक नहीं होगा। गैर-आवासीय संपत्ति के लिए एक महीने का किराया डिपॉजिट हो सकता है।
  • अगर किरायेदार परिसर का दुरुपयोग करता है तो रेंट कोर्ट मालिक को प्रॉपर्टी पर फिर से कब्जा करने की अनुमति देगा। दुरुपयोग में अनैतिक या गैरकानूनी गतिविधि, समुदाय को नुकसान पहुंचाने या पड़ोसियों को परेशान करना शामिल है।
  • किरायेदार एग्रीमेंट की अवधि खत्म होने के बाद भी मकान खाली करने से इनकार करता है तो मकान मालिक पहले दो महीने दोगुना और उसके बाद चार गुना किराया वसूल सकता है।
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