विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधायकों ने डॉक्टर-स्वास्थ्य कर्मियों की कमी पर मांगा जवाब

स्वास्थ्य सेवाएं लड़खड़ा रही हैं। कहीं डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है, तो कहीं उपकरण और दवाइयों की कमी है। हाल ही में संपन्न हुए मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में जनप्रतिनिधियों ने भी चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था पर चिंता जताई थी।

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Sanjay Sharma
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MP Vidhansabha Winter Session Health system concern

MP Vidhansabha Winter Session Health system concern Photograph: (the sootr )

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मध्यप्रदेश में सरकार के दावों के बावजूद अंचल में स्वास्थ्य सेवाएं लड़खड़ा रही हैं। कहीं डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का संकट है तो कहीं उपकरण और दवाओं का टोटा। सरकार नए मेडिकल कॉलेज, अस्पताल भवन बनाने पर जोर दे रही है, लेकिन जिला अस्पताल से लेकर स्वास्थ्य केंद्र तक अव्यवस्था फैली है। अस्पतालों में हर दिन मरीजों की लंबी कतारें लगती हैं। ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्र और सिविल अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के कारण मरीज नर्स और कंपाउंडरों से इलाज कराने मजबूर हैं। हर जिले में मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशलिटी सेंटर खोलने के दावों के बीच अब भी अस्पतालों में एक्सरे-सोनोग्राफी और इसीजी जैसी जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। प्रदेश के बड़े शहर छोड़ दें तो ब्लॉक, तहसील स्तर के 70 फीसदी से ज्यादा कस्बों में रेडियोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट, गायनिक स्पेशलिस्ट जैसे पद खाली पड़े हैं। इन अस्पतालों में ब्लड बैंक और प्रसूति के भी पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। 

हाल ही में खत्म हुए मध्यप्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में जनता के प्रतिनिधियों ने भी चरमरा रही स्वास्थ्य व्यवस्था पर चिंता जताई थी। विपक्ष में बैठे कांग्रेस विधायकों से ज्यादा सवाल बीजेपी के विधायकों ने सदन में उठाकर सरकार से जवाब मांगा था। ये विधायक प्रदेश के अलग-अलग अंचलों से आते हैं। विधायकों ने खाली पड़ी अस्पताल, डॉक्टर-स्वास्थ्य कर्मियों की कमी, अफसरों की लापरवाही से लेकर प्रसूति संबंधी जरूरी सुविधा पर भी सवाल उठाए हैं। हालांकि सरकार की ओर से स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने जवाब पेश किए लेकिन ज्यादातर विधायक इनसे संतुष्ट नहीं हैं।

मेडिकल कॉलेज झेल रहे फैकल्टी की कमी 

सबसे पहले बात करते हैं प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों की। प्रदेश में भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा और सागर में पहले से मेडिकल कॉलेज संचालित हैं। इनके अलावा अब शहडोल, विदिशा, रतलाम, दतिया, खंडवा, शिवपुरी, छिंदवाड़ा, सतना, सिवनी, मंदसौर और नीमच में मेडिकल कॉलेज शुरू कर दिए गए हैं। इनमें से कुछ मेडिकल कॉलेज तो एक से दो साल में ही शुरू हुए हैं। नए कॉलेजों में फैकल्टी और संसाधनों की कमी होना सामान्य बात है लेकिन सागर, विदिशा, दतिया, खंडवा जैसे मेडिकल कॉलेज अब तक फैकल्टी की कमी झेल रहे हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे विदिशा, रायसेन, सीहोर के जिला अस्पतालों में भी डॉक्टरों की कमी है। इस वजह से ज्यादातर मरीजों को ओपीडी से ही जांच के बाद रवाना कर दिया जाता है। गंभीर रूप से बीमार मरीजों को या तो निजी अस्पतालों में महंगा इलाज कराना पड़ता है या फिर भोपाल जाना पड़ता है। जिला अस्पतालों की हालत संतोषजनक नहीं है जबकि सरकार यहां सुपरस्पेशलिटी सुविधा मुहैया कराने का दावा करती आ रही है। जब राजधानी से सटे जिलों की हालत ये है तो दूरस्थ अंचल और विशेष रूप से आदिवासी बाहुल्य जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

अब जानते हैं मध्य प्रदेश की जनता द्वारा चुने विधायकों ने स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर क्या-क्या सवाल उठाए हैं। इन पर सरकार की ओर से क्या जवाब दिया गया। इन सवालों को उठाने वाले विधायक प्रदेश के अलग-अलग जिलों और विधानसभा क्षेत्रों से हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि प्रदेश में 20 साल से बीजेपी सरकार है। यानी दो दशकों स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार के दावों की हवा सत्ता पक्ष के विधायक ही निकाल रहे हैं। विधानसभा में जहां कांग्रेस के केवल दो विधायकों ने स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठाए हैं वहीं 6 बीजेपी विधायकों ने सरकार को घेरा है।

आपको बताते हैं जनता के लिए जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर विधायकों ने क्या-क्या सवाल उठाए हैं। 

1. महेन्द्र नागेश, बीजेपी विधायक गोटेगांव नरसिंहपुर

झौंतेश्वर में भवन बना होने के बाद भी उपस्वास्थ्य केंद्र संचालित नहीं है। इसके जवाब में स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल केवल इतना जवाब ही दे सके कि डॉक्टर और कर्मचारियों की उपलब्धता नहीं होने के कारण उपस्वास्थ्य केंद्र का संचालन नहीं हो रहा। जल्द ही नियुक्ति कर इसे शुरू कराएंगे। 

2. मुकेश टंडन, बीजेपी विधायक विदिशा

एसडीएम की उपस्थिति में हुए निरीक्षण में जिला अस्पताल में कई अनियमितताएं सामने आई थीं। इसके लिए विधायक ने सिविल सर्जन की लापरवाही पर भी सवाल किया लेकिन अधिकारी और अस्पताल प्रबंधन की खामियों पर स्वास्थ्य मंत्री जानकारी न होने के कारण जवाब नहीं दे पाए। 

3. प्रदीप अग्रवाल, बीजेपी विधायक सेंवढ़ा, दतिया

दतिया मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्स कर्मचारियों का मामला उठाया। उन्होंने कर्मचारियों के भरे एवं खाली पदों के संख्या जानने के साथ ही अनियमितता की आशंका के साथ सरकार का ध्यान आकर्षित कराया। इसके विरुद्ध मंत्री द्वारा दिए गए जवाब से विधायक पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। 

4. राजेन्द्र पांडेय, बीजेपी जावरा, रतलाम

विधायक ने अपने विधानसभा क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल किया। स्वास्थ्य केंद्रों के भवन निर्माण के लिए जारी बजट, भवनों की स्थिति के साथ ही कमी को दूर करने के संबंध में भी जानकारी मांगी। वहीं स्वास्थ्य केंद्रों के गुणवत्ताहीन निर्माण पर कार्रवाई के बारे में भी सरकार से पूछा।

5. अर्चना चिटनीस, बीजेपी विधायक, बुरहानपुर

विधायक ने बुरहानपुर में संचालित पं.शिवनाथ शास्त्री आयुर्वेद कॉलेज की अनियमितताओं पर सवाल उठाया। 

6. शैलेन्द्र जैन, बीजेपी विधायक, सागर

मेडिकल कॉलेज में सुपर स्पेशलिटी की सेवा अब तक शुरू नहीं हो सकी है।, कब तक ये सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। 

7. अजय अर्जुन सिंह, कांग्रेस विधायक, चुरहट सीधी

कांग्रेस विधायक ने सीधी के साथ ही प्रदेश में उप स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति के साथ ही प्रसूव केंद्रों की जानकारी सरकार से मांगी। विधायक ने बिना डॉक्टर चल रहे प्रसूति केंद्रों का ब्यौरा भी मांगा।  इसके जवाब में उन्हें बताया गया कि उप स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर की नियुक्ति नहीं है। वहां एएनएम द्वारा प्रसव कराए जाते हैं।

8. सचिन यादव, कांग्रेस विधायक, कसरावद, खरगोन

कांग्रेस विधायक ने कसरावद क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार की जरूरत पर ध्यान आकर्षित कराते हुए इसके सिविल अस्पताल में उन्नयन पर सवाल किया।

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