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मप्र लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा परीक्षा 2025 को लेकर दो याचिकाएं 9253 और 11444/2025 लगी हैं। इसमें मप्र राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 के रूल 4 के विविध प्रावधान की संवैधानिकता को ही चुनौती दी गई है। इसी के चलते हाईकोर्ट जबलपुर ने पीएससी 2025 की मेन्स पर स्टे किया है और इसी असमंजस के चलते पीएससी ने बाकी रिजल्ट भी होल्ड कर दिए हैं, जिसमें विविध कैटेगरी के पद हैं। इस मामले में पहले 6 मई को केस लगा था, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद संभावित तारीख 8 मई दिखाई गई। लेकिन अब यह केस 8 मई को भी लिस्टिंग सूची में नहीं है।
लाखों की संख्या में उम्मीदवार परेशान
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इस केस की वजह से जहां राज्य सेवा परीक्षा मेन्स 2025 जो नौ जून से प्रस्तावित है, उस पर असमंजस है क्योंकि हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया है।
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वहीं इसमें परीक्षा नियम 2015 को भी चुनौती होने से आयोग ने असमंजस के चलते अपने स्तर पर ही फैसला लेते हुए बाकी रिजल्ट होल्ड कर दिए हैं, जो 25 मार्च से होल्ड पर चल गए हैं। इसके चलते विविध परीक्षा दे चुके उम्मीदवार जहां रिजल्ट के इंतजार में अटके हुए हैं, जिसमें विविध विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसर 2022 की भर्तियां हैं तो वहीं आईटीआई, हैंडलूम जैसी कई परीक्षाओं के रिजल्ट भी अटके हुए हैं।
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उधर अगली परीक्षाओं पर भी संकट मंडरा रहा है क्योंकि सभी में नियम तो वही है परीक्षा नियम 2015 का।
असिस्टेंट प्रोफेसर 2024 को बढ़ाने की इसलिए उठ रही मांग
उधर एक और समस्या है जून में आयोग की असिस्टेंट प्रोफेसर 2024 भर्ती परीक्षा प्रस्तावित है, उधर नौ जून से राज्य सेवा परीक्षा 2025 प्रस्तावित है, अब कौन सी परीक्षा होगी, कौन सी नहीं होगी, किसी को कुछ नहीं पता। ऐसे में उम्मीदवारों की ओर से अब यह मांग भी आ रही है कि जब असिस्टेंट प्रोफेसर 2022 के ही रिजल्ट नहीं आए तो फिर एपी 2024 को अभी नहीं कराना चाहिए, क्योंकि जो एपी 2022 में चयनित होंगे, वह एपी 2024 में रिजल्ट पता नहीं होने के चलते बैठेंगे, ऐसे में अन्य योग्य उम्मीदवारों के लिए पद नहीं बचेंगे और रिक्त रह जाएंगे। इसलिए उम्मीदवारों की मांग है कि पहले आयोग 2022 की एपी का रिजल्ट जारी कर दे, फिर एपी 2024 का आयोजन करे।
शासन की यह जवाब देने की है तैयारी
इस मुद्दे पर कुछ दिन पहले ही द सूत्र ने विस्तृत रिपोर्ट पेश करते हुए बताया था कि सुप्रीम कोर्ट में भी यह मुद्दा उठ चुका है और वहां से इस नियम को मंजूर किया गया है। द सूत्र ने टीना डाबी सहित अन्य केस का उदाहरण दिया था। अब सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) भोपाल ने यही रिपोर्ट बनाई है और इसमें अधिवक्ताओं के जरिए यही पक्ष हाईकोर्ट में रखने जा रहा है। इसमें कहा जाएगा कि यदि आरक्षण का लाभ किसी स्तर पर एक बार ले चुके हैं तो फिर उसे अनारक्षित में मूव नहीं कर सकते हैं। जीएडी अधिकारियों ने द सूत्र को इसकी पुष्टि की है और कहा है सुप्रीम कोर्ट में चले विविध केस की जानकारी हम हाईकोर्ट में पेश करेंगे।
यह है परीक्षा सेवा नियम 2015 मप्र नियम
यह रूल कहता है कि यदि किसी उम्मीदवार ने आरक्षण संबंधी किसी तरह की छूट ली है (इसमें यात्रा व्यय लेना और परीक्षा शुल्क की छूट लेना शामिल नहीं) तो फिर उसे प्री, मेन्स, इंटरव्यू के बाद की मेरिट बनने के दौरान अपने संबंधित आरक्षण वर्ग यानी एसटी, एससी, ओबीसी में ही रखा जाएगा और उसे अनारक्षित कैटेगरी में मेरिट अंकों के आधार पर शिफ्ट नहीं किया जाएगा। इस नियम को ही चैलेंज कर दिया गया, जिसमें 25 मार्च 2025 को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट चीफ जस्टिस की बेंच ने प्री के रिजल्ट घोषित करने पर रोक लगा दी, फिर 2 अप्रैल को कैटेगरी वाइज कटआफ अंक मांगे और मेन्स पर स्टे लगा दिया और अब 15 अप्रैल को कैटेगरी अंक आने के बाद इस नियम को लेकर जवाब मांगा है और 6 मई को सुनवाई होगी।
खबर यह भी...MPPSC की राज्य सेवा परीक्षा 2025 का हाईकोर्ट में जो केस, वह यूपीएससी टॉपर टीना डाबी से लिंक
परीक्षा नियम आज का नहीं साल 2000 से है
मप्र राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 आज से नहीं दरअसल नवंबर 2000 में तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह की सरकार के समय यह नियम बना कि आरक्षित वर्ग को कई तरह की छूट दी जाती है (शुल्क व व्यय के अतिरिक्त उम्र की छूट, पास होने के कटआफ की छूट आदि), ऐसे में यदि एक आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार उम्र या कटआफ जैसी छूट भी लेता है (परीक्षा शुल्क व व्यय को छूट नहीं माना गया) तो फिर उसे मेरिट में अंकों के आधार पर अनारक्षित में नहीं जाना चाहिए। उसी वर्ग में रहना चाहिए। इसी नियम के आधार पर हमेशा भर्ती चली आ रही है।
टीना डाबी सहित कई अन्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई है मुहर
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टीना डाबी ने यूपीएससी 2015 में टॉप किया, लेकिन उन्हें इसके बाद भी एससी कैटेगरी की सीट मिली, अनारक्षित में नहीं शिफ्ट किया गया। इसका कारण है कि प्री 2015 के लिए अनारक्षित का कटआफ 107 था और एससी के लिए 94, टीना डाबी को प्री में 96.66 फीसदी अंक मिले और वह एससी कैटेगरी के कटआफ अंक छूट के साथ ही मेन्स के लिए पास हुई। हालांकि वह मेन्स में सबसे ज्यादा अंक हासिल कर टॉपर बनीं, उनके मेन्स में कुल 2025 अंक में से 1063 आए और वह टॉपर बनीं। लेकिन एससी कैटेगरी के तहत प्री में कटआफ छूट लेने के कारण वह अनारक्षित में शिफ्ट नहीं हुईं और उन्हें अपना होम टाउन भी नहीं मिला था। वह राजस्थान कैडर की आईएएस हुईं।
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इसी तरह दीपी विरुद्ध भारत सरकार का भी केस है, उन्होंने भी ओबीसी से अनारक्षित में जाने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि उन्होंने ओबीसी छूट का लाभ लिया है तो वह अनारक्षित में नहीं जा सकतीं।
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जितेंद्र सिंह विरुद्ध भारत सरकार केस में भी यही बात उठी और साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में भी यही कहा कि यदि आरक्षित वर्ग की कोई छूट ली तो फिर अनारक्षित में शिफ्ट नहीं कर सकते हैं।
डीओपीटी ने भी बना रखा है नियम
केंद्र के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनेल एंड ट्रेनिंग का भी यह नियम है कि एसटी, एससी, ओबीसी आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार यदि परीक्षा में किसी तरह की छूट कैटेगरी की लेते हैं, तो उन्हें अनारक्षित में शिफ्ट नहीं किया जाएगा। यही केंद्र का नियम मप्र सरकार ने भी लिया है।
इस तरह की छूट मिलती है
केंद्र की छूट की बात करें तो अनारक्षित कैटेगरी में परीक्षा देने के अवसर कम हैं, वहीं कैटेगरी में कितने बार भी दे सकते हैं। इसी तरह प्री कटआफ अंक, उम्र सीमा की छूट, योग्यता व अन्य छूट भी रहती है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है जब कोई छूट ली तो फिर उसी कैटेगरी में ही रहेंगे, क्योंकि इसी कैटेगरी में रहकर मेन्स दी, इंटरव्यू दिया और अंत में सफलता पाई।
हाईकोर्ट जबलपुर में नियम 2015 खत्म करने की मांग
वहीं हाईकोर्ट में लगी याचिका में परीक्षा नियम 2015 को ही चुनौती दी गई है और इसे खारिज करने की मांग उठी है। साथ ही नवंबर 2000 के गजट नोटिफिकेशन को भी खारिज करने की मांग इसमें की गई है। यही नहीं राज्य सेवा परीक्षा 2025 के लिए जारी नोटिफिकेशन जिसमें इस नियम 2015 का हवाला है, उसे ही रद्द करने की मांग की गई है।
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