INDORE. लोक सेवा आयोग (पीएससी) में साल 2017 में उच्च शिक्षा विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर के एक पद की लड़ाई सात साल तक चली और अब सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ता इसमें जीत सका। जब सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट में आखिरकार उच्च शिक्षा विभाग और मप्र शासन को फटकार पड़ी और उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी। शासन और उच्च शिक्षा विभाग के चलते पूरा खेल हुआ और इसमें मप्र लोक सेवा आयोग की कहीं कोई गलती नहीं थी, वह केवल परीक्षा कराने वाली एजेंसी थी।
यह है पूरा केस
साल 2017 में उच्च शिक्षा विभाग ने असिस्टेंट प्रोफेसर पद की भर्ती निकाली। इसमें एक पद एक्वाकल्चर विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर का भी था। यह अनारक्षित कैटेगरी का था। इसमें सारी प्रक्रिया हो गई, इसके बाद इसमें ज्वाइनिंग और सिलेक्शन ऐनवक्त पर रोक दिया गया। इसमें उच्च शिक्षा विभाग ने पद ही विलोपित कर दिया। विभाग ने कहा कि यह पद एसटी कैटेगरी के लिए था, अनारक्षित के लिए तो पद भरा हुआ है।
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एसटी के लिए तो कई आवेदन आए ही नहीं
पीएससी के लिए समस्या यह हुई कि जब पद अनारक्षित के लिए निकला तो इसमें एसटी के आवेदन ही नहीं मंगाए, न ही एसटी के लिए प्रक्रिया की गई। ऐसे में एसटी को पद देने का मामला था ही नहीं। हाईकोर्ट में मप्र शासन केस जीत गया, क्योंकि उन्होंने वहां नियमों का हवाला दिया कि वह पद भर्ती विज्ञप्ति की शर्तानुसार कभी भी पद की संख्या और अन्य शर्त में बदलाव कर सकती है। इसी के तहत हमने पद रोस्टर के हिसाब से एसटी के लिए रखा है और अनारक्षित को भर्ती देने की तो बात ही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में मानी गलती
जब फरियादी अमीन खान इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गया तो उच्च शिक्षा विभाग और मप्र शासन की खिंचाई हो गई। आखिर में शासन और विभाग ने माना कि यह हमसे चूक हुई है और हम यह पद अनारक्षित के लिए करेंगे और सारी प्रक्रिया की जाएगी। इसके बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आठ सप्ताह के भीतर पूरी विधिक प्रक्रिया नियमानुसार करने के आदेश देते हुए याचिका निराकृत कर दी।
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