संजय शर्मा, BHOPAL. विवादों से गहरा नाता जोड़ चुके MPPSC का नया कारनामा सामने आया है। इस बार सवाल मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के SET एग्जाम में बड़ी गड़बड़ी को लेकर हैं। MPPSC द्वारा आरक्षण के आधार पर पात्रता परीक्षा SET( SET exam ) का रिजल्ट घोषित किया गया है। ऐसा करने से 13% ओबीसी प्राविधिक और 13% सामान्य काल्पनिक फार्मूले से रिजल्ट होल्ड हो गया है। ऐसे में सैंकड़ों अभ्यर्थी असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति परीक्षा से वंचित हो रहे हैं। क्योंकि इस परीक्षा में शामिल होने SET एग्जाम में पास होना जरूरी है। इस उलझन में फंसे एक अभ्यर्थी ने जबलपुर हाईकोर्ट ( Jabalpur High Court ) में याचिका लगाकर MPPSC के निर्णय को चुनौती दी है। वहीं हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर एमपीपीएससी चेयरमैन ( MPPSC Chairman ) और प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर पूरी प्रक्रिया पर लिखित जवाब पेश करने का आदेश दिया है।
जारी रिजल्ट में नौकरियों की तरह आरक्षण रखा गया
अब आपको पूरा मामला बताते हैं कि आखिर MPPSC ने क्या कारनामा कर डाला है जिसको लेकर एक अभ्यर्थी को हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा। MPPSC ने 2017 के 6 साल बाद 2023 में SET एग्जाम लिया था। इसक रिजल्ट दिसम्बर में जारी किया गया। SET एक पात्रता परीक्षा है और ऐसी परीक्षाओं में किसी भी प्रकार के रिजर्वेशन का प्रावधान नहीं होता, लेकिन नियमों को बार-बार अपने हिसाब से बदलने वाली संस्था के रूप में पहचान बना चुके मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग इसमें भी अपनी कारगुजारी को अंजाम देना नहीं भूला। जो रिजल्ट जारी किया गया उसमें नौकरियों की तरह आरक्षण रखा गया। जिससे एससी-एसटी के अलावा ओबीसी के अभ्यर्थियों को 87-13 के अनुपात में मैरिट तैयार की गई। इस कैटेगरीवाइज रिजल्ट के कारण कई योग्य और अधिक नंबर अर्जित करने वाले अभ्यर्थी बाहर हो गए।
7 प्रमुख ग्राउंड तय कर उच्च न्यायालय में अपील की है
MPPSC द्वारा पात्रता परीक्षा का रिजल्ट नियुक्तियों की तरह आरक्षण के आधार पर जारी करने पर रीवा के अभ्यर्थी शिवेन्द्र कुमार ने हाईकोर्ट की शरण ली। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने MPPSC चेयरमैन और प्रमुख सचिव को नोटिस भेजकर एक सप्ताह में पूरी प्रक्रिया पर जवाब तलब किया है। शिवेन्द्र कुमार की ओर से याचिका लगाने वाले वकील दिनेश सिंह चौहान ने बताया कि मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के SET एग्जाम के रिजल्ट में जो गड़बड़ी हुई है उसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई हो रही है। याचिका के 7 प्रमुख ग्राउंड तय कर उच्च न्यायालय से अपील की गई है।
NET, JRF के रिजल्ट आरक्षण देकर जारी नहीं किए जाते
दिनेश सिंह चौहान के अनुसार याचिका में संविधान में हर भारतीय नागरिक को दिए समानता के अधिकार को सबसे बड़ा आधार बनाया गया है। क्योंकि आरक्षण के आधार पर पर पात्रता परीक्षा का रिजल्ट जारी कर कई अभ्यर्थियों के इस अधिकार का हनन किया गया है। देश में नौकरियों में तो आरक्षण देने का प्रावधान है, लेकिन किसी भी पात्रता या चयन परीक्षा में आरक्षण के आधार पर रिजल्ट तैयार नहीं किया जाता। केंद्रीय योग्यता परीक्षाओं (NET, JRF) के रिजल्ट कैटेगरीवाइज आरक्षण देकर जारी नहीं किए जाते। SET एग्जाम केवल पात्रता के लिए है और इसमें आरक्षण के आधार के चलते रिजल्ट अधूरा जारी किया गया है। ऐसे में पूरा रिजल्ट जारी किए बिना असिस्टेंट प्रोफेसर या लायब्रेरियन के पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया कैसे शुरू की जा सकती है। क्या अधूरे रिजल्ट के कारण कई योग्य अभ्यर्थियों का हित प्रभावित नहीं होगा ।
असिस्टेंट प्रोफेसर परीक्षा में शामिल नहीं हो पा रहे युवा
याचिकाकर्ता शिवेन्द्र कुमार के अनुसार राज्य पात्रता परीक्षा (SET) में वे शामिल हुए थे, लेकिन रिजल्ट आने पर उन्हें पता चला कि इसमें भी आरक्षण लागू किया गया है। रिजल्ट में 13% अनारक्षित और 13% ओबीसी अभ्यर्थियों का रिजल्ट रोक दिया गया। जबकि इसी अधूरे रिजल्ट की मैरिट के आधार पर प्रदेश में असिस्टेंट प्रोफेसर और लायब्रेरियन के पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा रही है। MPPSC ने जानकारी के रूप में बताया है कि रिजल्ट होल्ड किया गया है। रिजल्ट 87-13 के फार्मूले पर जारी किया गया है। इसमें 13% ओबीसी प्राविधिक और 13% सामान्य काल्पनिक का रिजल्ट फिलहाल जारी नहीं किया जाएगा। जबकि MPPSC द्वारा घोषित असिस्टेंट प्रोफेसर की परीक्षा में शामिल होने के लिए SET एग्जाम पास करना जरूरी है। ऐसे में रिजल्ट होल्ड होने से बड़ी संख्या में युवा इसमें शामिल नहीं हो पा रहे हैं।
बड़ा सवालः रिजल्ट किस प्रावधान में आरक्षण के आधार पर जारी किया
वकील दिनेश सिंह चौहान का कहना है अब सवाल यह है कि आयोग ने पात्रता परीक्षा का रिजल्ट किस प्रावधान के तहत आरक्षण के आधार पर जारी किया है। 13% अभ्यर्थियों का काल्पनिक आधार पर रिजल्ट रोका गया तो यह कैसे तय होगा कि उनकी पात्रता का स्तर क्या था। हो सकता है वे अन्य अभ्यर्थियों से ज्यादा योग्यता रखते हों। कुल मिलाकर जब तक किसी परीक्षा का पूरा रिजल्ट घोषित किए बिना अभ्यर्थियों की योग्यता का पैमान कैसे कारगर साबित किया जा सकता है। इन्हीं बिंदुओं पर हाईकोर्ट की शरण ली गई है। क्योंकि सवाल प्रदेश के उन सैंकड़ों अभ्यर्थियों के भविष्य से जुड़ा है जो SET एग्जाम में शामिल हुए थे।