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हिंदू-मुस्लिम एकता की कई मिसालें देखने को मिलती हैं, लेकिन इटारसी के एक मुस्लिम युवक का संत प्रेमानंद महाराज के प्रति श्रद्धा और उनका समर्थन एक नई मिसाल कायम कर रहा है। आरिफ खान चिश्ती ने संत प्रेमानंद महाराज को अपनी किडनी दान करने की इच्छा जाहिर की है। आरिफ इटारसी में ऑनलाइन कंसल्टेंसी चलाते हैं।
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आरिफ कैसे बने प्रेमानंद के अनुयायी?
आरिफ खान ने बताया कि करीब छह महीने पहले उन्होंने अपने मोबाइल फोन पर संत प्रेमानंद महाराज का प्रवचन सुना था। इस प्रवचन में कवि अमीर खुसरो के अपने गुरु के प्रति आस्था की कहानी थी। आरिफ खान ने महसूस किया कि प्रेमानंद महाराज वह वास्तविक संत हैं, जो समाज को जोड़ने का कार्य करते हैं। उनका विश्वास और प्रवचन ने उन्हें गहरे तौर पर प्रभावित किया। प्रवचन के दौरान ही उन्होंने जाना कि महाराज की दोनों किडनियां खराब हैं और उनका डायलिसिस चल रहा है, तब उन्होंने ठान लिया कि वह अपनी किडनी दान करेंगे।
हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
आरिफ खान का कहना है कि इस नफरत भरे माहौल में प्रेमानंद जैसे संतों का होना समाज और देश के लिए बेहद जरूरी है। उन्होंने पत्र में लिखा, "आप हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं। मैं स्वेच्छा से आपको अपनी किडनी दान करना चाहता हूं।" इस प्रकार, एक मुस्लिम युवक द्वारा संत प्रेमानंद महाराज को अपनी किडनी दान करने की इच्छा ने न केवल व्यक्तिगत श्रद्धा का संप्रेषण किया, बल्कि यह एक सशक्त संदेश भी दिया कि समाज को जोड़ने के लिए धर्म और संप्रदाय से परे जाकर काम किया जा सकता है।
संत प्रेमानंद को किडनी दान करने वाली खबर पर एक नजर
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मैं रहूं या न रहूं- आरिफ खान
आरिफ खान चिश्ती, जो एक सफल ऑनलाइन कंसल्टेंसी चलाते हैं, ने अपने जीवन में हर दिन नफरत और तकरार को देखकर महसूस किया कि समाज को जोड़ने के लिए प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज जैसे संतों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "मैं रहूं या न रहूं, लेकिन ऐसे संतों का रहना बहुत जरूरी है, जो हमें एकता का संदेश दें।"
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आरिफ खान के पत्र और उनके द्वारा दान की गई किडनी की इच्छा ने अब तक बहुत सी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त की हैं। यह कदम न केवल उनके आसपास के समाज में एक नई सोच को जन्म देता है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी एक प्रेरणा है जो धर्म, जाति और संप्रदाय के भेद-भाव में फंसे हुए हैं।
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