निर्वस्त्र इंदौर; जो आज साहिब-ए-मसनद हैं, कल नहीं होंगे, किराएदार हैं...

यह गुंडई नहीं, सिस्टम की नाकामी है। गुंडे तो वही करेंगे, जो उनकी औकात है। मगर सवाल यह है कि यह ताकत उन्हें मिली कैसे? कौन थे वो चेहरे, जो पर्दे के पीछे से हुक्म चला रहे थे? और जो सत्ता पर बैठे हैं, उनका सन्नाटा इतना गहरा क्यों था?... मध्यप्रदेश

author-image
The Sootr
एडिट
New Update
thesootr

Naked Indore today Photograph: (thesootr)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

@ रविकांत दीक्षित.

इंदौर क्या है? इंदौर कौन है? इंदौर कैसा है...? इन सवालों के जवाब खुद इंदौर ही देता है। यह लोकमाता मां अहिल्या का शहर है। यह राहत साहब के सपनों का शहर है। यह लता दीदी के गीतों का शहर है। यह सौहार्द का शहर है, यह एक दौर है...मगर चंद गुंडों ने देश के सबसे स्वच्छ शहर के माथे पर ऐसी कालिख पोत दी है, जिसे मिटाना संभव नहीं लगता। 
मगर गर्व यह है कि यह शहर जब ठान लेता है तो सिर्फ लक्ष्य हासिल नहीं करता, बल्कि इतिहास लिखता है। इंदौर की यही खासियत है। यहां के लोग, उनका साहस, उनका श्रम... जो कुछ भी किया जाता है, वह मंजिल तक पहुंचता है। फिर जब यह शहर आग में झुलसता है तो शेर के जैसे दहाड़ता है। यही हुआ, जब इंदौर में एक घटिया और अमानवीय घटना ने पूरे शहर को मानो सुलगा दिया। 

लानत है ऐसी पहलवानी पर...

एक लाल को, एक पोते को, एक भाई को यूं निर्वस्त्र कर लज्जित करना...लानत है ऐसी पहलवानी पर। ऐसे रौब पर और ऐसे रसूख पर। बिना दुश्मनी के यूं राजनीति तो नहीं चलती, पर क्या उसकी सजा परिवार को दी जानी चाहिए। इस घटना में सिर्फ एक बच्चा निर्वस्त्र नहीं हुआ, निर्वस्त्र हुई पूरी व्यवस्था। निर्वस्त्र हुई राजनीति। नग्न हुई देशभक्ति जनसेवा का बिल्ला लगाए घूमने वाली इंदौर की पुलिस कमिश्नरी। 

सोचिए, एक परिवार को सबके सामने बेज़ती की जंजीरों में बांधकर प्रताड़ित किया। वीडियो वायरल किया। यह एक घर भर नहीं था जो शर्मिंदा, शर्मसार हुआ। यह पूरे मोहल्ले, पूरे शहर, पूरी व्यवस्था और उस व्यवस्था को चलाने वाले हर व्यक्ति का चीरहरण थी। यह किसी दुश्मनी का बदला नहीं, बल्कि इंसानियत की हत्या है।

यह गुंडई नहीं, सिस्टम की नाकामी है। गुंडे तो वही करेंगे, जो उनकी औकात है। मगर सवाल यह है कि यह ताकत उन्हें मिली कैसे? कौन थे वो चेहरे, जो पर्दे के पीछे से हुक्म चला रहे थे? और जो सत्ता की कुर्सियों पर बैठे हैं, उनका सन्नाटा इतना गहरा क्यों था?

नेतानगरी का ऐसा सुशासन किस काम का जो, हफ्तेभर में जाग पाए। इंदौर मुख्यमंत्री के प्रभार वाला जिला है। दो वरिष्ठ मंत्री यहां से हैं। सांसद, विधायक, महापौर... और न जाने कितने ही पार्षद... और दीगर नेता। MP-09 का शोर मचाने वाले नेता कहां रहे इतने दिन... कर क्या रहे थे ये? हो हल्ला करने वाले विपक्ष ने भी तो कुछ उल्लेखनीय नहीं किया। सवाल तो बहुत हैं साहब?

अटलजी के नाम पर सुशासन की रोटियां सेकने वाले नेताओं को यह पता भी नहीं होगा कि वे इंदौर के लिए क्या सोचते थे... अटलजी कहते थे, 'इंदौर मेरे दिल के करीब है। यह एक शहर नहीं, एक संस्कार है, एक सभ्यता है। यहां के लोग हर परिस्थिति में प्रेरणा देने वाले हैं।' 
...तो क्या ऐसी प्रेरणा देंगे यहां के रसूखदार। जिस शहर में पोहे की खुबशू महकती हो, जहां रिश्तों में जलेबी सी मिठास घुली हो, जहां सौहार्द बहता हो... जहां लता मंगेशकर के गानों की धुन हो, जहां राहत साहब के शेर दहाड़ते हों, वहां एक हरकत ने समाज को झकझोर कर रख दिया।

मगर यह इंदौर है साहब...
यह वो शहर है, जिसने हर बार अन्याय को पैरों तले रौंदा है।
यह वो शहर है, जहां की मिट्टी में मां अहिल्या के न्यायप्रिय विचार बसे हैं।
यहां का हर बच्चा जानता है कि यदि जुर्म के खिलाफ खड़ा नहीं हुआ तो वह भी किसी भी दिन इस नंगे तांडव का शिकार हो सकता है।
सोशल मीडिया के जाबांज सिपाहियों और मीडिया ने जो बवाल काटा, वह एक मिसाल है। जनता ने साबित कर दिया कि इंदौर की आत्मा जाग चुकी है।

'द सूत्र' दाद देता है, इंदौर की जनता के संकल्प को, जनमानस के संस्कारों को, नागरिकों के साहस को, संबल को और शक्ति को... देर भले हुई पर जागी जनता ही...। इंदौर ने इस घटना पर एक बार फिर अपनी ताकत, एकता और जागरूकता से बता दिया, जता दिया कि यह शहर अन्याय बर्दाश्त नहीं करता। 

इंदौर ने बताया कि...
अगर खिलाफ हैं होने दो, जान थोड़ी है,
ये सब धुआं है, कोई आसमान थोड़ी है...।

इंदौर का आसमां अमन-ओ-चैन का है जनाब! हुक्मरानों ने अपराधियों की धरपकड़ कर ली। सरगना को हटा दिया, मगर यह बहुत नहीं है। बात तब बनेगी, जब वह सींखचों में होगा। उस मां के कलेजे को ठंडक तब मिलेगी, जब अपराधियों को कड़ा दंड मिलेगा। उस व्यवस्था के कान पर जू तब चलेंगे, जब एक्शन की नजीर पेश होगी। यूं किसी को सस्पेंड कर फिर नमक मत छिड़क देगा साहब... जनता पूरी और ठोस कार्रवाई चाहती है।

...और अपने आप को शेर समझने वाले राहत इंदौरी साहब की ही यह लाइन जरूर याद रखें कि 
जो आज साहिब-ए-मसनद हैं, कल नहीं होंगे,
किराएदार हैं, ज़ाती मकान थोड़ी है...।
कितने ही आए और चले गए... इंदौर जैसा था, वैसा ही रहेगा...हंसता, खिलखिलाता, चहकता, महकता।

(लेखक द सूत्र के एडिटर हैं )

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

इंदौर न्यूज निर्वस्त्र इंदौर इंदौर पार्षद जीतू यादव मध्यप्रदेश एमपी हिंदी न्यूज